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Thursday, January 14, 2016

भारतीय ध्यान में उतरना नहीं चाहता..

 भारतीय ध्यान में उतरना नहीं चाहता, क्योंकि उसे यह खयाल है वह जानता ही है ध्यान क्या है। दूसरा अगर उतरने को भी राजी होता है, तो दिन दो दिन मे ही आकर खड़ा हो जाता है कि अभी तक नहीं हुआ। और उसे बेचैनी होती है कि पश्चिम से आए लोगों को हो रहा है मालूम होता है, क्योंकि वे इतने प्रसन्न और इतने आनंदित! उनके प्रसन्न और आनंदित होने का कारण है कि उनके मन में लोभ नहीं है ध्यान का। धन का लोभ था, धन पा लिया पश्चिम ने और वह लोभ टूट गया और देख लिया कि उस लोभ में कोई सार नहीं था। अभी ध्यान का लोभ पैदा नहीं हुआ है जल्दी पैदा हो जाएगा, भारतीय साधु संत सारे अमरीका और पश्चिम में तैर रहे हैं, यहा से लेकर वहा तक;वह जल्दी ही लोभ पैदा करवा देंगे। क्योंकि उनकी भाषा लोभ की है। महर्षि महेश योगी लोगों से कहते है ध्यान करने से पारलौकिक लाभ तो होता ही है, सांसारिक लाभ भी होता है। धन भी बढ़ेगा, पद भी बढ़ेगा, परमात्मा भी मिलेगा।
एक बहुत आश्चर्यजनक घटना है। विवेकानंद ने भारतीय साधु संतों के लिए अमरीका का दरवाजा खोला। विवेकानंद से लेकर अब तक, सिर्फ कृष्णमूर्ति को छोड़कर, जितने लोग भारत से अमरीका गये हैं, उन्होंने अमरीका को नहीं बदला, अमरीका ने उन्हें बदल दिया। वे अमरीका की ही भाषा बोलने लगते है। क्योंकि उन्हें दिखायी पड़ता है कि अगर अमरीकन लोगो को प्रभावित करना है, तो वही भाषा बोलो जो वे समझते है। अमरीका धन की भाषा समझता है।
 अमरीका पूछता है धन इससे कैसे मिलेगा? तो भारतीय तुम्हारा महात्मा भी धन की भाषा बोलने लगता है। वह कहता है  ध्यान से मन की शक्ति बढ़ेगी, सिद्धि मिलेगी। ध्यान करने से क्या नहीं हो सकता! फिर तुम जो चाहोगे वही पा सकोगे, तुम्हारे विचार इतने शक्तिशाली हो जाएंगे। 
मैंने ऐसी किताबें देखी हैं जो कहती है कि अगर तुमने ठीक से ध्यान किया और कहा कि कैडिलक कार मिलनी चाहिए, तो मिलेगी। ध्यान की किताबें! कैडिलक कार मिलनी चाहिए, इसको अगर ध्यानपूर्वक सोचा, तो जरूर मिलेगी! और तुमने कहा यह जो स्त्री जा रही है, यह मुझे मिलनी चाहिए, अगर तुमने पूरे संकल्प से, पूरी एकाग्रता से विचार किया, तो यह घटना घटकर रहेगी। क्योंकि विचार में शक्ति है। और एकाग्र विचार में बड़ी शक्ति है।
ये अगर तुम्हारे ऋषिमुनि कब्रों से निकल आएं, तो सिर ठोंक लें, कि ये हमारे महात्मा अमरीका में जाकर क्या समझा रहे है! मगर अमरीका को समझाना हो तो अमरीका की भाषा बोलनी पड़ती है। उसी भाषा के बोलने में सब व्यर्थ हो जाता है। इसलिए मैंने तय किया कि मैं पश्चिम नहीं जाऊंगा;जिसको आना है, यहा आए। मैं अपनी भाषा बोलूंगा, जिसको समझ पड़नी हो, समझ सकता हो, वह मेरी भाषा समझे और यहा आए, मुझे कहीं जाना नहीं है। मैं कोई समझौते के लिए राजी नहीं हूं।
भारतीय मन सदियो से सुनते सुनते ध्यान की बात लोभी हो गया है। धन का जो लोभ है उसी लोभ को भारतीय मन ने आत्मा के लोभ पर निरूपित कर दिया, आरोपित कर दिया। पद का जो लोभ है, वही उसने धार्मिक दिशा में संक्रमित कर दिया है, भेद नहीं है। कोई यहां पद पाना चाहता है, वह वहा पद पाना चाहता है। फिर अड़चन होगी। फिर तुम मुझे न समझ पाओगे। और फिर मुक्ति खड़ी ही खड़ी रह जाओगी। यह तुम्हारे हाथ में है। यह समय चूक भी सकती हो। चूकने का मतलब सिर्फ इतना ही कि इस समय में डूबो नहीं तो चूक जाओगी। मैं रोज यहा मौजूद हूं;मेरे द्वार खुले हैं, तुम डुबकी लो;तो मेरे जाने के पहले घटना घट जाएगी। आज घट सकती है, कल का भी कोई सवाल नहीं है, कभी भी घट सकती है, क्योंकि परमात्मा सदा मौजूद है। जिस क्षण तुम्हारा लोभ लाभ गया, उसी क्षण मिलन हो जाता है।
अथतो भक्ति जिज्ञासा 
ओशो 

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