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Saturday, January 23, 2016

सदगुरु कौन?

सदगुरु कौन? एक विरोधाभास है सदगुरु। हुलक। झीणा पातला! हल्का है, इतना कि पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण उसे खींच नहीं जाता। चलता है जमीन पर और जमीन से उसके पैर नहीं छूते। हुलक। झीणा पातला! इतना महीन है, इतना सूक्ष्म है कि अगर तुम स्थूल हिसाब से नापोगे तो कभी नहीं पहचान पाओगे। स्थूल हिसाब से नापने वाला चूक जाएगा।

जैसे कोई बुद्ध के पास गया। अब अगर स्थूल हिसाब लेकर गया तो बुद्ध वस्त्र पहने बैठे हैं, उसने अगर स्थूल हिसाब बौध रखा है कि जो जिन हो जाता है उसे नग्न होना चाहिए, दिगंबर होना चाहिए, और बुद्ध दिगंबर नहीं अभी तक, तो जिन नहीं हैं। इसलिए जैन बुद्ध को बुद्ध नहीं मानते, महात्मा मानते हैं,; अच्छे आदमी हैं, मगर अभी पहुंचे नहीं हैं। क्योंकि उनकी एक धारणा है कि उन्हें नग्न होना ही चाहिए, तो ही तीथ कर का पद हो सकता है, तो ही जिन का पद हो सकता है।

कृष्ण के साथ तो उनको बहुत दिक्कत है। बुद्ध कम-से -कम कपड़े पहने हैं ठीक है, चलो चलने दो; थोड़ी-सी बात हैं, कपड़े छुट जाएंगे। ये कृष्ण तो और भी उपद्रव व हैं। ये तो पीताबर और मोर -मुकुट बाधे और बासुरी बजा रहे हैं। और पैर में घुंघरू बांधे हैं और गोपिया नाच रही हैं। अब जो जैन की धारणा लेकर गया है वह तो एकदम आंख बंद कर लेगा कि यह मैं कहां आ गया, यह कहां उपद्रव में पड़ गया!

अगर तुमने स्थूल धारणाएं बना ली हैं, तुम कठिनाई में पड़ जाओगे। ऐसा ही उसके साथ होगा, जिसने कृष्ण के साथ धारणा बना ली हैं, तुम कठिनाई में पड़ जाओगे। ऐसा ही उसके साथ होगा, जिसने कृष्ण के साथ धारणा बना ली है। वह महावीर के पास जाकर देखेगा नंगधडंग खड़े हैं, दिमाग खराब है? होश में है यह आदमी? बासुरी कहां है? पीताबर कहां है? मोर-मुकुट कहां है? बिना उसके कैसे कोई परमात्मा को उपलब्ध हो सकता है?

जिन्होंने भी धारणाएं बना ली हैं -स्थूल धारणाएं -वे नहीं पहचान पाएंगे। सदगुरु दो एक जैसे नहीं होते। इसलिए बड़ी सूक्ष्म दृष्टि चाहिए। जब भी नया सदगुरु पैदा होगा जगत में, तब तुम्हें नयी दृष्टि पैदा करनी होगी। तुम्हारी पुरानी धारणाएं काम न आएंगी।

हुलका झीणा पातला, जमीं सूं चौड़ा।

इतना हल्का, इतना झीना, इतना नाकुछ जैसा कि न उसका बोझ पड़ता, न उसके चलने से आवाज होती; फिर भी पृथ्वी से बड़ा विस्तीर्ण है। ऐसा विरोधाभास! सदगुरु सदा विरोधाभासी होगा, क्योंकि उसके भीतर सारे द्वंद्व समाप्त हो गये हैं और निद्व द्व का जन्म हुआ है। दो मिलकर एक हो गये हैं। वह स्त्री जैसा कोमल, पुरुष जैसा कठोर। वह कमल जैसा कोमल और पत्थर जैसा कठोर; दोनों एक साथ होगा। वह छोटे- से -छोटा और बड़े -से बड़ा।

 हंसा तो मोती चुने 

 ओशो 

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