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Thursday, January 28, 2016

अंतरयात्रा में उपवास की उपयोगिता

उपवास करने की कोई जरूरत नहीं है। तुम रोज ही भूख को अनुभव कर सकते हो। लेकिन कठिनाइयां है। और इसीलिए उपवास उपयोगी हो सकता है। सामान्‍यत: हम भूख लगने के पहले ही अपने को भोजन से भर लेते है। आधुनिक संसार मे भूख लगने की जरूरत ही नहीं पड़ती है। तुम्‍हारे भोजन के समय निश्‍चित है। और तुम भोजन कर लेते हो। तुम कभी नहीं पूछते कि शरीर को भूख लगी है। या नहीं; निश्‍चित समय पर तुम भोजन कर लेते हो। नहीं तुम कहोगे की जब एक बजता है तो मुझे भूख लग जाती है। वह झूठी भख हो सकती है। वह इसलिए लगती है क्‍योंकि यह तुम्‍हारे खाने का समय है, एक बजा है। किसी दिन एक खेल करो; अपनी पत्‍नी या अपने पति को कहो कि घड़ी का समय बदल दे। अभी बाहर बजा है और घड़ी एक का समय बता रही है। तुम्‍हें तुरंत भूख लग जाती है। तुम्‍हें घड़ी देख कर भूख लगती है। यह कृत्रिम भूख है। झूठी भूख है; यह भूख सच्‍ची नहीं है। 


इसीलिए उपवास सहयोगी हो सकता है। अगर तुम उपवास करोगे तो दो तीन दिन तक झूठी भूख मालूम होगी। तीसरे या चौथे दिन के बाद ही सच्‍ची भूख का पता चलेगा। तब वह मांग तुम्‍हारे शरीर की होगी। मन की नहीं। जग मन मांग करता है। तो वह झूठी मांग है, शरीर की मांग ही सच्‍ची होती है। और जब तुम सच्‍ची भूख के प्रति सजग होते हो तो अपने शरीर से सर्वथा भिन्‍न हो जाते हो। भूख एक शारीरिक घटना है। और जब एक बार तुम जान लेते हो कि भूख मुझसे भिन्‍न है, मैं उसका साक्षी हूं, तो तुम शरीर के पार चले गए।


लेकिन तुम किसी भी चीज का उपयोग कर सकते हो। ये तो उदाहरण मात्र है। यह विधि अनेक ढंगों से प्रयोग में लाई जा सकती है। तुम अपना अलग ढंग भी निर्मित कर सकते हो। लेकिन किसी एक ही चीज पर सतत प्रयोग करते रहो। अगर तुम भूख के साथ प्रयोग कर रह हो तो कम से कम तीन महीने तक भूख के साथ प्रयोग करो। तो ही तुम किसी दिन शरीर से तादात्‍म्‍य तोड़ सकेत हो। रोज-रोज विधि मत बदलों, क्‍योंकि विधि का गहरे जाना जरूरी है। तीन महीने के लिए किसी विधि को चुन लो और उससे लगन से लगे रहो। विधि का प्रयोग करो; और प्रयोग जारी रखो।


और सदा स्‍मरण रखो कि आरंभ में बोधपूर्ण होना है। बीच में बोधपूर्ण होना बहुत कठिन होगा। क्‍योंकि इस तादात्‍म्‍य के स्‍थापित होते ही कि मैं भूखा हूं। तुम उसे फिरा बदल नहीं सकोगे। मन के तल पर तुम बदलाहट कर सकत हो, तुम कह सकते हो कि नहीं , मैं भूख नहीं हूं, साक्षी हूं। लेकिन वह झूठ होगा। वह मन ही बोल रहा है। वह तुम्‍हारे प्राण नहीं बोल रहे हे। और यह भी स्‍मरण रहे कि तुम्‍हें यह कहना नहीं है कि मैं भूख नहीं हूं। यह भी मन का धोखा देने का ढंग है। तुम कह सकते हो: ‘’भूख है, लेकिन मैं भूखा नहीं हूं। मैं शरीर नहीं हूं। मैं ब्रह्म हूं।‘’ 


तुम्‍हें कुछ भी कहना नहीं है। तुम जो भी कहोगे गलत होगा। क्‍योंकि तुम गलत हो। यह दोहराना कि मैं शरीर हूं। किसी काम का नह है। तुम कहते रहो कि मैं शरीर हूं, क्‍योंकि तुम जानते हो कि मैं शरीर हूं। किसी काम का नहीं है। अगर तुम सच ही जानते हो कि मैं शरीर नहीं हूं, तो यह कहने की क्‍या जरूरत है। कोई जरूरत नहीं है, यह मूढ़ता मालूम होगी। बोधपूर्ण होओ,और तब उस बोध में यह भाव प्रगाढ़ होगा कि मैं शरीर नहीं हूं। यह विचार नहीं होगा, भाव होगा। यह तुम्‍हारे सिर की नहीं, तुम्‍हारे पूरे प्राणों की अनुभूति होगी। तुम दूरी महसूस करोगे। कि शरीर बहुत दूर है। और मैं उससे बिलकुल भिन्‍न हूं। और दोनों के मिश्रण की संभावना भी नहीं है। तुम दोनों को मिला नह सकते हो। शरीर-शरीर है, पदार्थ है; और तुम चैतन्‍य हो। वे दोनों साथ रह सकते है1 लेकिन एक दूसरे में घुल मिल नहीं सकते है। उनका मिश्रण नहीं हो सकता है।

विज्ञान भैरव तंत्र 

ओशो 

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