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Tuesday, January 19, 2016

शरीर को आज्ञा देना

ध्यान करते वक्त चक्र को हम शिथिल होने का आदेश देंगे कि मूलाधार, शिथिल हो जाओ। पूरे मन से और पूरी आज्ञा देनी चाहिए कि मूलाधार, शिथिल हो जाओ।

आप सोचेंगे, हमारे कहने से क्या होगा? आप सोचते होंगे, हम कहेंगे, पैर शिथिल हो जाओ, पैर शिथिल कैसे हो जाएंगे! हम कहेंगे कि शरीर जड़ हो जाओ, शरीर जड़ कैसे हो जाएगा!
 
आप थोड़े सोच-समझ के अगर हों, तो इतना आपको खयाल नहीं आता! जब आप कहते हैं, हाथ रूमाल उठाओ, तो हाथ रूमाल कैसे उठाता है? और जब आप कहते हैं, पैर चलो, तो पैर चलते कैसे हैं? और जब आप कहते हैं कि पैर मत चलो, तो पैर रुक कैसे जाते हैं? यह शरीर का अणु-अणु आपकी आज्ञा मानता है। अगर यह आज्ञा न माने, तो शरीर चल ही नहीं सकता। आप आंखों से कहते हैं, बंद हो जाओ, तो आंखें बंद हो जाती हैं। भीतर विचार होता है कि आंख बंद हो जाए और आंख बंद हो जाती है। क्यों? विचार में और आंख में कोई संबंध नहीं होगा? नहीं तो आप भीतर बैठे सोच ही रहे हैं कि आंख बंद हो जाओ और आंख बंद नहीं हो रही है! और आप सोच रहे हैं कि पैर चलो, और पैर बैठे हुए हैं!

 
मन जो कहता है, वह तत्क्षण शरीर तक पहुंच जाता है। अगर हमको थोड़ी समझ हो, तो हम शरीर से कुछ भी करवा सकते हैं। यह जो हम करवा रहे हैं, केवल प्राकृतिक है। लेकिन क्या आपको पता है कि यह भी एकदम प्राकृतिक नहीं है, इसमें भी सुझाव काम कर रहे हैं। क्या आपको पता है, अगर एक आदमी के बच्चे को जानवरों के बीच पाला जाए, तो वह सीधा खड़ा होगा? वैसी घटनाएं घटी हैं।


वहां पीछे लखनऊ के पास जंगलों में एक घटना घटी। एक लड़का पाया गया, जिसे भेड़ियों ने पाला। भेड़ियों का शौक है कि बच्चों को गांव से उठा ले जाना और कभी-कभी भेड़िए उनको पाल भी लेते हैं। ऐसी जमीन पर कई घटनाएं घटी हैं। अभी पीछे चार वर्ष पहले जंगल से एक चौदह-पंद्रह वर्ष का लड़का लाया गया, जो भेड़ियों ने पाला है। छोटे बच्चे को गांव से उठा ले गए और फिर उन्होंने उसको दूध पिलाया और पाल लिया।


वह चौदह वर्ष का लड़का बिलकुल भेड़िया था। वह चार हाथ-पैर से चलता था, सीधा खड़ा नहीं होता था। और वह भेड़ियों की तरह आवाज निकालता था और खूंखार था और खतरनाक था। और आदमी को पा जाए, तो कच्चा खा सकता था। लेकिन वह कोई भाषा नहीं बोलता था।



ओशो ने प्रवचन में कहा है वह लड़का रामु

पंद्रह वर्ष का बच्चा भाषा क्यों नहीं बोलता? और अगर आप उससे कहें कि बोलो, बोलने की कोशिश करो, तो भी क्या करेगा! और पंद्रह वर्ष का बच्चा सीधा खड़ा क्यों नहीं होता? उसे सुझाव नहीं मिले सीधे खड़े होने के, उसे खयाल नहीं मिला सीधा खड़े होने का।


जब आपके घर में एक छोटा बच्चा पैदा होता है, आपको सबको चलते देखकर उसे यह सुझाव मिलता है कि चला जा सकता है। उसे यह खयाल मिलता है कि दो पैर पर सीधा खड़ा हुआ जा सकता है। यह विचार उसको मिल जाता है, यह उसके अंतस-चेतन में प्रविष्ट हो जाता है। और तब वह चलने की हिम्मत करता है और कोशिश करता है। और सब तरफ लोगों को चलते देखता है, तो हिम्मत बढ़ती है और वह धीरे-धीरे चलना शुरू कर देता है। दूसरों को बोलते देखता है, तो उसे खयाल होता है कि बोला जा सकता है। और फिर वह चेष्टा करता है। और उसकी वे ग्रंथियां, जो बोल सकती हैं, सक्रिय हो जाती हैं।


हमारे भीतर बहुत-सी ग्रंथियां हैं, जो सक्रिय नहीं हैं। अभी मनुष्य का पूरा विकास नहीं हुआ है, स्मरण रखें। जो शरीर के विज्ञान को जानते हैं, वे यह कहते हैं कि मनुष्य के मस्तिष्क का बहुत छोटा-सा हिस्सा सक्रिय है। शेष हिस्सा बिलकुल इनएक्टिव पड़ा हुआ है। उसकी कोई क्रिया नहीं है। और वैज्ञानिक असमर्थ हैं यह जानने में कि वह शेष हिस्सा किस काम के लिए है। उसका कोई काम ही नहीं है अभी। आपकी खोपड़ी का बहुत-सा हिस्सा बिलकुल बंद पड़ा हुआ है। योग का कहना है कि वह सारा हिस्सा सक्रिय हो सकता है।


और नीचे उतरें आदमी से, तो जानवर का और भी थोड़ा हिस्सा सक्रिय है, उसका और ज्यादा हिस्सा निष्क्रिय है। और नीचे उतरें, तो जितने नीचे उतरते हैं, उतने ही जानवर जितने नीचे तबके के हैं, उनके मस्तिष्क का उतना ही हिस्सा निष्क्रिय पड़ा हुआ है।


काश, हम महावीर और बुद्ध का दिमाग खोल पाते, तो हम पाते कि उनका सारा हिस्सा सक्रिय है, उसमें निष्क्रिय कुछ भी नहीं है। उनका पूरा मस्तिष्क काम कर रहा है, पूरा। और हमारा छोटा-छोटा टुकड़ा काम कर रहा है।


अब जो शेष काम नहीं कर रहा है, उसके लिए उसे सजग करना होगा, सुझाव देने होंगे, चेष्टा करनी होगी। योग ने चक्रों के माध्यम से मस्तिष्क के उसी हिस्से को सक्रिय करने के उपाय किए हैं। योग विज्ञान है और एक वक्त आएगा कि दुनिया का सबसे बड़ा विज्ञान योग ही होगा।


यह जो पांच चक्रों की मैंने बात कही, इन पांच चक्रों पर ध्यान को केंद्रित करके सुझाव देने से वे-वे अंग तत्क्षण शिथिल हो जाएंगे। मूलाधार को हम सुझाव देंगे और साथ में भाव करेंगे कि पैर शिथिल हो रहे हैं। पैर शिथिल हो जाएंगे। फिर ऊपर बढ़ेंगे। नाभि के पास स्वाधिष्ठान चक्र को सुझाव देंगे और नाभि के आस-पास का सारा यंत्र-जाल शिथिल हो जाएगा। फिर और ऊपर बढ़ेंगे और हृदय के पास अनाहत को, अनाहत चक्र को सुझाव देंगे, हृदय का सारा संस्थान शिथिल हो जाएगा। फिर और ऊपर बढ़ेंगे और आंखों के बीच आज्ञा चक्र को सुझाव देंगे, तो चेहरे के सारे स्नायु शिथिल हो जाएंगे। और ऊपर बढ़ेंगे और चोटी के पास सहस्रार चक्र को सुझाव देंगे, तो मस्तिष्क की सारी अंतस की, अंदरूनी सारा का सारा यंत्र शिथिल होकर शांत हो जाएगा।


इसको जितनी परिपूर्णता से भाव करेंगे, उतनी परिपूर्णता से यह बात घटित होगी और कुछ दिन निरंतर अभ्यास करने से परिणाम आने शुरू होंगे।


ध्यान सूत्र

ओशो 





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