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Thursday, January 28, 2016

एक मित्र ने पूछा है कि यदि ध्यान से समाधि में जाया जा सकता है और समाधि से परमात्मा को जाना जा सकता है तो फिर आजकल के मंदिरों में जाना व्यर्थ है? और उन्हें हटा देना चाहिए?

मंदिरों में जाना तो व्यर्थ है, हटाने की कोशिश भी उतनी ही व्यर्थ है। जिनमें भगवान है ही नहीं, उनको हटाने की झंझट में भी किसी को नहीं पड़ना चाहिए। वे बेचारे जहां, हैं, हैं। उन्हें हटाने का क्या सवाल है? और अक्सर यह दिक्कत होती है। जैसे कि मोहम्मद ने लोगों को कहा कि मूर्ति में परमात्मा नहीं है। तो मुसलमानों ने सोचा कि मूर्तियों को मिटा डालना चाहिए। और तब एक बड़े मजे का काम शुरू हुआ दुनिया में—स्व तरफ मूर्तियों को बनाने वाले पागल हैं और दूसरी तरफ मूर्तियों को मिटाने वाले पागलों की जमात खड़ी हो गई। अब मूर्ति को बनाने वाला मूर्ति को बनाने में परेशान है और मूर्ति को मिटाने वाला दिन रात इस उधेड़बुन में लगा है कि मूर्ति को कैसे मिटा दें।


अब कोई पूछे कि मोहम्मद ने यह कब कहा था कि मूर्ति के तोड़ देने में भगवान है। मूर्ति में न होगा, लेकिन मूर्ति के तोड़ देने में है, यह किसने कहा? और अगर मूर्ति के तोड़ देने में भगवान है तो फिर मूर्ति के होने में भी क्या कठिनाई है? उसमें भी भगवान हो सकता है। अगर न होगा, तो तोड्ने में कैसे हो जाएगा।


मैं नहीं कहता हूं कि मंदिरों को हटा देना चाहिए। मैं यह कहता हूं कि इस सत्य को जानना चाहिए कि वह सब जगह है। और जब हम इस सत्य को जानेंगे, तो सब कुछ ही उसका मंदिर हो जाएगा। तब मंदिर और गैरमंदिर को अलग करना मुश्किल होगा। तब जहां, हम खड़े होंगे वहां, उसका मंदिर होगा, जहां, आंख उठाएंगे वहां, उसका मंदिर होगा, जहां, बैठेंगे वहां, उसका मंदिर होगा। तब दुनिया में तीर्थ न रह जाएंगे, क्योंकि पूरी दुनिया उसका तीर्थ होगी। तब उसकी अलग अलग मूर्तियां डालना व्यर्थ हो जाएगा, क्योंकि तब जो भी है, उसकी ही मूर्ति होगी। मैं जो कह रहा हूं वह यह नहीं कह रहा हूं कि जाकर मंदिर मिटाने में लगें, या मंदिर हटाने में लगें, या किसी को समझाने जाएं कि मंदिर मत जाओ। क्योंकि मैंने यह कभी नहीं कहा कि मंदिर में भगवान नहीं है। मैं सिर्फ यह कह रहा हूं कि जो मंदिर में ही देखता है, उसे भगवान का कोई पता नहीं है।

जिसे भगवान का पता होगा, उसे तो सब जगह भगवान होगा। मंदिर में भी, नहीं मंदिर हैं वहा भी। तब वह फर्क कैसे करेगा कि कौनसा मंदिर है और कौनसा मंदिर नहीं है। क्योंकि मंदिर हम उसे कहते हैं, जहां, भगवान है। और जब सब जगह भगवान है, तो सभी जगह मंदिर है। फिर अलग से मंदिर बनाने की जरूरत न रह जाएगी। और मंदिर तोड्ने की भी कोई जरूरत न रह जाएगी।

मैं मृत्यु सिखाता हूँ 

ओशो 

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