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Sunday, October 11, 2015

कथा प्रसंग २


मैं प्रत्येक बुद्धपुरुष के चैत्यों की पूजा किया करता था। और यह जो कुछ हुआ, उसी के विपाक से हुआ है। जो उस दिन किया था वह तो अल्प था, अत्यल्प था, लेकिन उसका ऐसा महान फल हुआ है। बीज तो होते भी छोटे ही हैं। पर इससे पैदा हुए वृक्ष, छोटे से बीज से पैदा हुए वृक्ष आकाश के साथ होड़ लेते हैं। थोड़ा सा त्याग भी, अल्पमात्र त्याग भी महासुख लाता है।

कुछ बड़ा मैंने त्याग भी न किया था उस जन्म में, इतना ही त्याग किया था, अपना पराया छोड़ दिया था। सभी जाग्रतपुरुषों को बेशर्त आदर दिया था।

समझते हो, यह धार्मिक आदमी का लक्षण है। छोटा मत समझना इसे, बुद्ध कितना ही कहें कि अल्पमात्र, यह छोटा नहीं है। तुम मस्जिद के सामने से ऐसे ही गुजर जाते हो जैसे मस्जिद है ही नहीं। तुम गुरुद्वारे के सामने से ऐसे निकल जाते हो जैसे गुरुद्वारा है ही नहीं। अगर तुम मुसलमान हो तो हिंदू का मंदिर तुम्हें दिखायी नहीं पड़ता। अगर तुम हिंदू हो तो जैन का मंदिर तुम्हें दिखायी नहीं पड़ता। यह धार्मिक होने का लक्षण न हुआ। यह तो राजनीति हुई। यह तो समूह और संप्रदाय और धारणा और सिद्धात से बंधे होना हुआ।

धार्मिक व्यक्ति को तो जहां भी दीए जले हैं, जिसके भी दीए जले हैं, वे सभी दीए परमात्मा के हैं। फिर नानक का दीया जला हो गुरुद्वारे में तो कोई फर्क नहीं पड़ता, वहा भी झुक आएगा। फिर राम का दीया जला हो राम के मंदिर में, वहा भी झुक आएगा। फिर कृष्ण का दीया हो, वहां भी झुक आएगा। फिर मोहम्मद का दीया हो, वहां भी झुक आएगा। धार्मिक व्यक्ति ने तो एक बात सीख ली है कि जब भी कहीं कोई दीया जलता है तो परमात्मा का ही दीया जलता है।

बुझे दीए संसार के, जले दीए भगवान के। बुझे बुझों में भेद होगा, जले जलों में कोई भेद नहीं है। बुझा दीया एक तरह का, दूसरा बुझा दीया दूसरे तरह का! मिट्टी अलग होगी, कोई चीनी का बना होगा, कोई लोहे का बना होगा, कोई सोने का बना होगा, कोई चांदी का बना होगा। स्वभावत:, मिट्टी के दीए और चांदी के दीए में बडा फर्क है। लेकिन जब ज्योति जलेगी तो ज्योति कहीं चांदी की होती है, कि सोने की होती है, कि मिट्टी की होती है! ज्योति तो सिर्फ ज्योति की होती है। ज्योति को जो देखेगा, उसको तो सभी जले दीयों में एक ही ज्योति का निवास दिखायी पड़ेगा। एक ही सूरज उतर आया है, एक ही किरण प्रविष्ट हो गयी है।

इसको बुद्ध तो कहते हैं अल्प, लेकिन मैं न कहूंगा अल्प। क्योंकि यह अल्प भी हो नहीं रहा है। लोग सोचकर जाते हैं, अपना मंदिर, अपना गुरु, अपना शास्त्र। दूसरे का मंदिर तो मंदिर ही नहीं है। दूसरे के मंदिर में जाना तो पाप। ऐसे शास्त्र हैं इस देश में…।

जैन शास्त्रों में लिखा है ऐसा ही हिंदूशास्त्रों में भी लिखा है कि अगर कोई पागल हाथी तुम्हें रास्ते पर मिल जाए, जैनशास्त्र कहते हैं, और तुम मरने की हालत में आ जाओ, और पास में ही हिंदुओं का देवालय हो, तो हाथी के पैर के नीचे मर जाना बेहतर, लेकिन हिंदुओं के देवालय में शरण मत लेना। ऐसा ही हिंदू के शास्त्र भी कहते हैं ठीक यही का यही। पागल हाथी के पैर के नीचे दबकर मर जाना बेहतर है, लेकिन जैनमंदिर में शरण मत लेना। अगर जैनमंदिर के पास से निकलते हो और जैन गुरु कुछ समझा रहा हो तो अपने कानों में अंगुलियां डाल लेना, सुनना मत।

ये धार्मिक आदमी के लक्षण हैं? तो फिर अधार्मिक के क्या लक्षण होंगे?

बुद्ध कहते हैं कुछ और मेरी विशिष्टता न थी, जब मैं शंख नामक ब्राह्मण था किसी जन्म में, तो मेरी इतनी ही विशिष्टता थी छोटी ही समझो, बीजमात्र  कि मैं सभी बुद्धपुरुषों को नमस्कार करता था, सभी चैत्यों में जाता, सभी शिवालयों में जाता और प्रार्थना कर आता था, पूजा कर आता था। मैंने कोई भेदभाव न रखा था। उस अभेद दृष्टि से यह धीरे धीरे बीज फैला।

जो अभेद को देखेगा, वह एक दिन अभेद को उपलब्ध हो जाएगा। जिसने मिट्टी के दीयों का हिसाब रखा, वह दीयों में ही पड़ा रहेगा। जिसने ज्योति देखी, वह एक दिन ज्योतिर्मय हो जाएगा। तुम जो देखते हो वही हो जाते हो। दृष्टि एक दिन तुम्हारे जीवन की सृष्टि हो जाती है।

तो बुद्ध कहते हैं, आज यह जो चमत्कार हुआ, इसका बीज बड़ा छोटा है। अब समझना। मैंने इसलिए कहा कि दो तल पर यह कथा है। एक तल पर तो बुद्ध का आना महामारी से भरी हुई वैशाली में, वह एक तल है। फिर दूसरा तल है, भिक्षुओं का बुद्ध से पूछना। बुद्ध कोई अवसर नहीं चूकते। उन्होंने अपने भिक्षुओं को भी संदेश दे दिया कि कैसा भाव होना चाहिए। अगर कभी तुम अमृत को उपलब्ध करना चाहते हो, मृत्यु के विजेता होना चाहते हो, वस्तुत: जिन होना चाहते हो, तो भेद मत करना। सभी बुद्धपुरुष, सभी जाग्रतपुरुष एक ही सत्य को उपलब्ध हो गए हैं इस बीज को अपने भीतर जितने गहराई में डाल सको डाल देना। इसी से किसी दिन वृक्ष पैदा होगा, फूल लगेंगे। ठीक समय, ठीक अवसर पर तुम्हारे जीवन में बसंत आ जाएगा। तब न केवल तुम्हारे भीतर बसंत आएगा, तुम जहां से गुजर जाओगे वहा भी बसंत की हवा बहेगी। तुम जिनके साथ खड़े हो जाओगे, उनके भीतर भी ज्योति पैदा होगी। तुम जिनका हाथ पकड़ लोगे, उनका जीवन से छुटकारा होना शुरू हो जाएगा। तुम्हारा जो सहारा पकड़ लेंगे, तुम उनके लिए नाव बन जाओगे।

‘थोड़े सुख के परित्याग से यदि अधिक सुख का लाभ दिखायी दे तो धीरपुरुष अधिक सुख के खयाल से अल्पसुख का त्याग कर दे। ‘


एस धम्मो सनंतनो

ओशो 

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