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Friday, September 25, 2020

संबोधि का स्वप्न





अभी उस दिन ही मैं एक सुंदर कथा पढ़ रहा था:

एक पादरी के पास एक तोता था और उसे बोलना सिखाने के हर संभव प्रयत्न और प्रयास के बाद भी वह तोता चुप ही रहा। इस बात का जिक्र पादरी ने एक दिन एक वृद्धा से किया, जो उस से मिलने के लिए आई थी। उसे वृद्धा को कुछ दिलचस्पी हुई इस बात में और उसने तुरंत कहा: ‘मेरे पास भी एक तोता है जो कि बोलता नहीं। यह अच्छा रहेगा यदि हम इन दोनों पक्षियों को साथ-साथ रख दें और फिर देखे कि क्या होता है।

और फिर उन दोनों ने ऐसा ही किया। दोनों तोतो को एक बड़े पींजड़े में रख दिया गया, और दोनों कुछ दूरी पर जाकर बैठ गए जहां से वह उनकी बात को सून सके। शुरू में तो कुछ देर शांति छाई रही, उसके बाद कुछ पंख पड़फड़ाने की आवाज आई, और फिर वृद्ध महिला के तोते को कहते सूना गया, ‘कुछ थोड़ा सा प्रेम-श्रेम के विषय में क्या इरादा है, प्रिय आपका? जिसके उत्तर में पादरी के तोते ने कहा, ‘इसी सबके लिए तो मैं वर्षों से मौन प्रतीक्षा और प्रार्थना करता आया हूं--आज मेरा सपना पूरा हुआ। आज मैं बोल सकता हूं।’

यदि तुम प्रेम और प्रसिद्धि के लिए प्रतीक्षा और प्रार्थना कर रहे हो, सपने देख रहे हो, एक दिन यह घटना घटेगी ही। यह कोई मुश्किल बात नहीं है। बस जरा सी हठधर्मिता चाहिए...और यह होता है। व्यक्ति बस प्रयत्न करता जाए, करता ही चला जाए...यह घटेगी ही, क्योंकि यह तुम्हारा सपना है। आखिर तुम कोई न कोई ऐसा स्थान पा ही लोगे जहां तुम इसका प्रक्षेपण कर सको और तुम इसे देख सकते हो, और मानों कि यह सच ही हो गया है।

जब तुम किसी स्त्री या पुरुष के प्रेम में पड़ते हो, तुम सच में कर क्या रहे हो? तुम एक सपना अपने भीतर संजो रहे हो, उस सपने को लिए चल रहे हो, अब अचानक यह स्त्री एक पर्दे का काम करती है। और आप को लगता है कि आपका स्वप्न पूरा हुआ है। यदि तुम सपने देखते ही जाओ, एक न एक दिन तुम्हें कोई पर्दा मिल ही जाएगा, कोई न कोई तुम्हारे लिए पर्दा बन ही जाएगा और तुम्हारा सपना वहां चित्रित बन उभर आयेगा। एक सजीव सी प्रतिछाया मात्र।

परंतु संबोधि कोई सपना नहीं है। यह तो सब सपनों को छोड़ना है। इसलिए कृपया संबोधि के विषय में सपना मत देखो। प्रेम सपने के द्वारा संभव है, सच तो यह है कि यह केवल सपने के द्वारा ही देखा जा सकता है, उसी के द्वारा ही संभव है। प्रेम स्वप्नदर्शियों के लिए ही है। परंतु संबोधि सपने के द्वारा संभव नहीं है--सपने के कारण ही तो यह असंभव हो जाती है।

संबोधि का सपना देखा और आप इससे चुकते चले जाते हो। इसके लिए प्रतीक्षा करो और तुम इससे चूक जाओगे। फिर तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें करना यह चाहिए कि तुम सपने की कार्य विधि को ठीक से समझ लो। तुम संबोधि को तो अलग ही उठा कर रख दो। यह तुम्हारा काम नहीं है। तुम तो बस सपनों की कार्य प्रणाली को ठीक से समझ लो। और तुम यह देखो कि सपने किस से काम करते हैं। उसकी समझ ही तुम्हारे भीतर एक तरह की स्पष्टता लाएगी। उस स्पष्टता में तुम्हारे सपने धीरे-धीरे कम होते चले जाएंगे, और एक दिन वह अदृश्य हो जाते है।

जब सपना नहीं होता, हमारा मन सफटिक परदर्शी होता है, हमारी आंखें निर्मल हाती है, तब संबोधि का कमल खिलता है। 

 

तंत्र विज़न 

 

ओशो 

 

 

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