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Friday, July 20, 2018

मैं जब आपसे बोल रहा हूं तो मैं आपको प्रभावित करने के लिए नहीं.....


... जो मुझे आनंदपूर्ण लगता है बोलना, वह बोल रहा हूं। और मेरी अपनी समझ यह है कि जो आपको प्रभावित करने के लिए बोल रहा है, वह आपको दुश्मन है, क्योंकि किसी भी तरह की प्रभावित करने की चेष्टा, बहुत गहरे में, दूसरे व्यक्ति को गुलाम बनाने की चेष्टा है।


सब प्रभाव बहुत आध्यात्मिक गुलामी हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि लोग प्रभावित करने के डर की वजह से, बोलेंगे नहीं, कहेंगे नहीं।


एक चित्रकार एक पेंटिंग बना रहा है। हो सकता है, वह सिर्फ प्रभावित करने के लिए बना रहा हो। यह भी हो सकता है कि दूसरों से कोई प्रयोजन की न हो। बनाना उसका आनंद हो और वह जब दूसरों को दिखा रहा है, तब भी सिर्फ अपने आनंद की अभिव्यक्ति की भांति। शब्द भी चित्र की भांति या रंगों की भांति अभिव्यक्ति हैं। आपको प्रभावित करने को नहीं, मुझे व्यक्त करने को। और इसलिए निरंतर आपसे निवेदन करता रहता हूं कि भूल से मुझसे प्रभावित न हों।


लेकिन ध्यान रहे, प्रभावित होने के दो ढंग हैं। मेरे पक्ष में प्रभावित होना है, मेरे विपक्ष में भी प्रभावित होना प्रभावित होना है। इसलिए इस खयाल में मत रहना कि जो मेरे पक्ष में हैं, वे मुझसे प्रभावित हो गए हैं वे प्रभावित नहीं हुए हैं। वे विपक्ष में हैं, वे भी मुझसे प्रभावित हैं। प्रभाव से बचना हो तो पक्ष-विपक्ष से बचना पड़ता है, नहीं तो प्रभाव पड़ ही जाता है। जो आदमी वेश्या के घर की तरफ जा रहा है, वह भी प्रभावित है, तो वेश्या के घर से बच कर दूसरे रास्ते से गुजर रहा है, वह भी प्रभावित है। असल में प्रभाव के दो ढंग हैं। अक्सर हमें लगता है कि पक्ष वाला प्रभावित है, विपक्ष वाला प्रभावित नहीं है। विपक्ष वाला भी उतना ही प्रभावित है।


लेकिन मैं कोई बड़ा आदमी नहीं हूं और मैं मानता हूं कि सब बड़े आदमियों ने दुनिया को नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि दूसरों को छोटा बनाए बिना, बड़ा होना असंभव है। तो दूसरों को छोटा बनाना ही पड़ेगा, बड़े होने के लिए। मैं कोई बड़ा आदमी नहीं हूं और मैं मानता हूं कि बड़े आदमी होने की जो आकांक्षा है, वही दूसरे को प्रभावित करने का रूप लेती है और बड़े आदमी होने की जो आकांक्षा है, वही दूसरे को प्रभावित करने का रूप लेती है और बड़े आदमी की जो आकांक्षा है, वह बहुत गहरे में किसी इंफिरिआरिटी कांप्लेक्स से, किसी हीनता की ग्रंथि से पैदा होती है। इसलिए सब बड़े आदमी, बहुत भीतर, हीन-ग्रंथि से पीड़ित होते हैं। वे दूसरे को प्रभावित करके, अंततः अपने को प्रभावित करना चाहते हैं कि मैं बड़ा आदमी हूं। इतने लोग मुझसे प्रभावित हैं, तो मैं बड़ा आदमी होना ही चाहिए। यह बहुत वाया मीडिया, दूसरों के जरिए, वे अपने को विश्वास दिलाना चाहते हैं।

देख कबीरा रोया 

ओशो



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