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Sunday, November 11, 2018

जीवन की समस्या


जीवन की समस्याओं पर कुछ कहूं, उसके पहले एक छोटी सी बात निवेदन कर दूं। मेरे देखे जीवन में कोई समस्या नहीं होती है। समस्याएं होती हैं, मनुष्य के चित्त में। जीवन में कोई समस्या नहीं है, समस्याएं होती हैं, चित्त में, मन में। जो मन समस्याओं से भरा होता है, उसके लिए जीवन भी समस्याओं से भर जाता है।


 जो मन समस्याओं से खाली हो जाता है, उसके लिए जीवन में भी कोई समस्या नहीं रह जाती। फिर भी उन्होंने मुझसे कहा कि जीवन की समस्याओं पर कुछ कहूं, तो मैं थोड़ी अड़चन में पड़ गया हूं। क्योंकि जीवन तो यही है, कुछ लोग इसी जीवन में इस भांति जीते हैं, जैसे कोई समस्या न हो, और कुछ लोग इसी जीवन को अत्यंत उलझी हुई समस्याओं में बदल लेते हैं।

इसलिए मूलतः सवाल, मूलतः प्रश्न व्यक्ति के चित्त और मन का है। फिर भी कैसे चित्त में समस्याएं जन्म लेती हैं, और कैसे मनुष्य के जीने की विधि, सोचने के ढंग, जीवन का दृष्टिकोण, उसके विचार की पद्धतियां; कैसे जीवन को निरंतर उलझाती चली जाती हैं, और बजाय इसके कि जीवन एक समाधान बने, अंततः, अंततः हम पाते हैं, जीवन के सारे धागे उलझ गए। बचपन से ज्यादा सुखद समय फिर जीवन में दोबारा नहीं मिलता। इससे ज्यादा दुखद और कोई बात नहीं हो सकती। क्योंकि बचपन तो प्रारंभ है, अगर प्रारंभ ही सबसे ज्यादा सुखद है, तो शेष सारा जीवन क्या होगा?

अगर जीवन सम्यकरूपेण जीआ जाए, तो अंत सुखद होना चाहिए। बचपन से बुढ़ापा ज्यादा आनंदपूर्ण होना चाहिए। अगर जीवन सम्यकरूपेण ठीक-ठीक दिशा में गति करे, तो हर आने वाला दिन, जाने वाले दिन से ज्यादा आनंद को लाने वाला होना चाहिए। तभी तो हम कहेंगे कि हम जीए। अभी तो जिसे हम जीवन कहते हैं, उचित होगा यही कहना कि हमने कुछ खोया, और हम मरे। क्योंकि हर दिन और दुख, और पीड़ा से भरता जाए, यहां इतने मित्र उपस्थित हैं, अगर वे सोचेंगे तो उन्हें दिखाई पड़ेगा, बचपन के दिन सर्वदा सर्वाधिक सुख के और आनंद के दिन थे। बड़े-बड़े कवियों ने गीत गाए हैं, बड़े-बड़े विचारकों ने बचपन के गौरव में, गरिमा में गीत, स्वागत में बातें कहीं हैं, लेकिन शायद ही कोई यह विचार करता हो कि बचपन की इतनी प्रशंसा किस बात का प्रमाण है? इस बात का प्रमाण कि बाद का जीवन गलत जीया जाता है। अन्यथा बचपन तो प्रारंभ है जीवन का, निरंतर और आनंद की, और संगीत की और भी सुख की दिशाएं उन्मुक्त होनी चाहिए। लेकिन जरूर कुछ गलत विधियों से हम जीते होंगे, जरूर ही कुछ हम ऐसा करते होंगे कि जिससे जीवन एक संगीत नहीं बन पाता, वरन चिंताओं और बोझों और ऐसी दूभर समस्याओं का भार बन जाता है, कि हम तो टूट जाते हैं और समस्याएं नहीं टूट पातीं, हम समाप्त हो जाते हैं और समस्याएं बनी रह जाती हैं।

सुख और दुःख 

ओशो

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