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Sunday, November 11, 2018

हिंदुस्तान एक हजार साल क्यों गुलाम रहा? हिंदुस्तान कमजोर था? हिंदुस्तान की कम संख्या थी?


हिंदुस्तान एक हजार साल गुलाम रहा। हमने कोई पाठ नहीं सीखा। हमने क्या पाठ सीखा कि हिंदुस्तान क्यों गुलाम रहा? हिंदुस्तान से पूछो कि तुमने एक हजार साल की गुलामी से पाठ क्या सीखा? तो आप हैरान होंगे, जो पाठ सीखना था वह हिंदुस्तान ने सीखा ही नहीं। क्योंकि वह जो बातें कर रहा है, वे बताती हैं कि वह उन्हीं बातों को फिर दोहरा रहा है जिनकी वजह से वह एक हजार साल गुलाम रहा।

हिंदुस्तान एक हजार साल क्यों गुलाम रहा? हिंदुस्तान कमजोर था? हिंदुस्तान कम संख्या थी? हिंदुस्तान में जो दुश्मन आए, वे बहुत बड़ी तादाद में थे? हिंदुस्तान की जमीन पर आकर दुश्मनों ने हराया। हम तो कहीं लड़ने नहीं गए। तो हमारे पास तो बड़ी संख्या थी, दुश्मन कितना आ सकता था! लेकिन बात क्या थी?

एक बात थी कि हिंदुस्तान टेक्नॉलॉजी में हमेशा पीछे रहा। इसके सिवाय हिंदुस्तान की गुलामी का कोई भी कारण नहीं। अगर कोई कहे तो बेईमान है।

जब हिंदुस्तान पर सिकंदर ने हमला किया, तो सिकंदर तो घोड़ों पर सवार आया और पोरस हाथियों पर लड़ने गया। पोरस सिकंदर से जरा भी कमजोर आदमी नहीं था। बल्कि अगर दोनों अकेले सामने मैदान में लड़ते, तो सिकंदर दो कौड़ी का साबित होता। पोरस बहुत अदभुत आदमी था। लेकिन टेक्नॉलॉजी गलत थी और पिछड़ी हुई थी। हाथी शादी-विवाह में, बारात वगैरह में ठीक है। बारात निकालनी हो, बड़ा अच्छा है। किसी साधु महाराज का जुलूस निकालना हो, बहुत अच्छा है। लेकिन हाथी युद्ध के मैदान पर बेमानी है। हाथी, हारना हो तो युद्ध के मैदान पर ठीक है। और घोड़ों के सामने! घोड़ा तेज है। टेक्नॉलॉजिकली, युद्ध में घोड़ा ज्यादा सबल और सक्षम है। थोड़ी जगह घेरता है, तेजी से भागता है, जल्दी रुख बदलता है, कहीं भी निकल कर, बच कर भाग सकता है। हाथी बहुत सुस्त है एक अर्थों में। हाथी पर लड़ा पोरस--ताकत ज्यादा थी। घोड़ों पर लड़ा सिकंदर--ताकत उतनी न थी। लेकिन सिकंदर जीता और पोरस हारा।


फिर आए मुसलमान। और मुसलमान बारूद लेकर आए। और हिंदुस्तान में बारूद की कोई ईजाद न थी। और हिंदुस्तान अपना वही तीरत्तरकस और तलवार लिए खड़ा रहा। बारूद के सामने तीरत्तरकस नहीं जीतते। मुसलमान नहीं जीते, हिंदुस्तान नहीं हारा; तीरत्तरकस हारे, बारूद जीती। टेक्नॉलॉजी जीतती है। विकसित टेक्नॉलॉजी हमेशा अविकसित टेक्नॉलॉजी से जीत जाती है। 


फिर अंग्रेज आए। वे और बढ़िया तोपें लेकर आए थे। और हम वही पुराना, जैसे चिड़िएं वगैरह भगाने का सामान हो खेत में, उस तरह की चीजें लिए बैठे थे। अंग्रेज कितनी थोड़ी ताकत लेकर आया था, लेकिन उसके पास तोपें थीं। और तोपों ने हमें मुश्किल में डाल दिया। हमारी समझ के बाहर हो गया, हम क्या करें।


हिंदुस्तान एक हजार साल गुलाम रहा, क्योंकि हिंदुस्तान वैज्ञानिक रूप से कम विकसित रहा। और कोई कारण नहीं है। हिंदुस्तान अब भी वैज्ञानिक रूप से कम विकसित है और कम विकसित ही रहेगा। क्योंकि हिंदुस्तान के समझाने वाले लोग हिंदुस्तान को एंटी-टेक्नॉलॉजिकल बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं और एंटी-साइंटिफिक बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। वे कहते हैं, विज्ञान की क्या जरूरत है? तकनीक की क्या जरूरत है? हम तो चर्खात्तकली कात लेंगे और हमारा काम हो जाएगा।


तुम कातो चरखा, लेकिन दुनिया इसकी फिक्र नहीं करती कि आप चरखा कात रहे हैं, इसलिए आपको बड़ा आदर दिया जाए, कि आपको स्वतंत्र रखा जाए! यह सब नहीं होने वाला है। 


और इस मुल्क का मस्तिष्क जो है, वह इस तरह ढाला गया है पांच-छह हजार सालों में कि जब भी हमें कुछ विकसित बात कही जाए, तो हमारी समझ के बाहर होती है; अविकसित बात कही जाए, तो हमारी समझ में एकदम से आती है। अगर कोई एलोपैथी की बात कहे, तो हम कहेंगे यह...। अगर कोई आयुर्वेद की बात कहे, तो हम कहेंगे, यह बिलकुल ठीक है, ऋषि-मुनियों का विज्ञान है। सवाल एलोपैथी और आयुर्वेद का नहीं है, सवाल आधुनिक और पुरातन का है। नया जीतेगा, पुराना हारेगा। और जो पुराने को पकड़े रहेगा, उसके साथ वह भी हारेगा, वह बच नहीं सकता।


इस जगत में निरंतर नये की जीत है। और नये की जीत स्वाभाविक है। क्योंकि नये का अनुभव पुराने से ज्यादा है। नये का प्रयोग ज्यादा है। नये की प्रक्रिया और भी अनुभवों में से गुजर चुकी है। नया जीतता है, पुराना हारता है। 

चेत सके तो चेत  

ओशो

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