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Tuesday, September 24, 2019

भय क्या है?


एक मुसलमान बादशाह हुआ। सुबह ही सुबह वह अपने दरबार में जाकर बैठा था कि एक फकीर भीतर आया। पहरेदारों ने रोकने की कोशिश की, तो उसने कहा कि ' कौन मुझे रोक सकता है? कोई इसका मालिक नहीं है, कि मुझे रोक सके। ' वह इतना दबंग था फकीर, ऐसा प्रभावशाली था कि पहरेदार घबड़ाकर खड़े हो गये। ऐसा कोई आदमी नहीं आया था। उसने कहा, 'हट जाओ रास्ते से। कौन मुझे रोक सकता है? किसका है यह? यह किसी का भी नहीं। ' पहरेदारों ने खबर दी कि ऐसा फकीर आया है, बड़ा प्रभावशाली है और वह कहता है, किसी का मकान नहीं है। कोई मुझे भीतर जाने से रोक नहीं सकता। राजा ने कहा, 'उसे ले आओ।


'फकीर लाया गया। उसने राजा से कहा कि 'मैं इस सराय में कुछ दिन ठहरना चाहता हूं। कौन मुझे रोक सकता है?' उस राजा ने कहा, 'बिलकुल ही अशिष्ट बात बोल रहे हो। एक तो पहरेदारों के साथ तुमने दुर्व्यवहार किया, दूसरा अब तुम मेरे निवास को, मेरे महल को कहते हो सराय, धर्मशाला? शब्द वापस ले लो। ' फकीर बोला, 'मैं अपने शब्द वापस ले लूं? जो कि बिलकुल सच हैं! नहीं, मैं तुमसे कहूंगा, अपने शब्द वापस ले लो। क्योंकि मैं इसके पहले आया, तो तुम यहां नहीं थे; तब कोई और था, जो इसका मालिक बना था। इस सिंहासन पर पहले भी यही झंझट हो चुकी है। ' राजा ने कहा, 'वे कोई नहीं थे, मेरे पिता थे। ' और उसने कहा कि 'उसके पहले भी मैं आया हूं और तब भी झंझट हो चुकी है। तब वे नहीं थे, कोई और थे। ' राजा ने कहा, 'वे उनके पिता थे। ' और फकीर ने कहा, 'ऐसा मैं बहुत बार आया हूं। जब भी यहां आया, तो दूसरे आदमी को पाया हूं। मैं तुमसे पक्का कहता हूं कि जब मैं दुबारा आऊंगा, तब तुम नहीं रहोगे। तो मैं इसको सराय कहने लगा, क्योंकि यहां तो आदमी बदलते रहते हैं! यहां मालकियत किसी की नहीं। तुम अपना शब्द वापस ले लो कि यह निवास है। यह सराय है। यहां तुम आये हो, ठहरे हो, चले जाओगे।


'राजा ने सुना। उसने दरबारियों से कहा, 'मैं अपने शब्द ही वापस नहीं लेता, अपना जीवन भी वापस लेता हूं। ' वह फकीर के पीछे हो गया। उसे दिखायी पड़ गया कि सराय है। वह निवास कभी नहीं था। 


लेकिन सराय को अगर हम अपना निवास समझें, तो फियर होगा। चाहे हम ऊपर से कितने ही समझे रहें कि यह हमारा निवास है, लेकिन आप धर्मशाला में ठहरे हुए हैं और आप यह समझे रहें कितने ही कि मेरा मकान है, फिर भी भीतर किसी तल पर आप झुठला नहीं सकते। आप जानते हैं कि यह मकान नहीं है। यहां ठहरा हुआ हूं। घबराहट लगी रहेगीकब निकल जाऊं। कब अलग कर दिया जाऊं! कब बेघर हो जाऊं! यह डर बना ही रहेगा, क्योंकि जहा आप ठहरे हुए हैं, वह घर है ही नहीं। फियर पैदा होता है, भय पैदा होता है। भय इसलिए पैदा होता है कि जहा घर नहीं है, वहा घर समझे हुए थे।


यह भय बुरा नहीं है। मेरी दृष्टि से जिसमें यह भय नहीं है, वही बात बुरी है। यह भय बुरा नहीं है, क्योंकि जड़बुद्धि में यह भय नहीं होगा। इसलिए जितनी सतेज बुद्धि होगी, उतनी भयभीत होगी। क्योंकि सब तरफ उसे लगेगा, जहाजहा पैर रखे हुए हैं, वहा जमीन है ही नहीं। उसे दिखायी पड़ेगा न, अंधा आदमी नहीं है। जिसके पास आंख है, बोध है, उसे हर चीज भयभीत करती हुई मालूम पड़ेगी। उसका जीवन धीरेधीरे बिलकुल ही भय से भर जायेगा। वह कैपने लगेगा पत्ते की तरह। सब भयभीत हो जायेगा भीतर। लेकिन, इसी भय से अभय पैदा होगा। इसी बोध सेजब कि हर एक चीज उसे आश्वासन देने में असमर्थ हो जायेगी। जब कोई भी चीज उसे ऐसी नहीं रह जाएगी जो अभय दे सके। जिसको दे रही है अभय, वह नासमझ है।

चल हंसा उस देश 

ओशो

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