Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Saturday, March 21, 2020

कल के प्रवचन के दौरान भगवान ने कहा कि एक ही क्षण में पूर्ण पाप कट जाते हैं। लेकिन मैंने सुना है कि कि पूर्वजन्म का पाप, या कहें प्रारब्ध भोगना पड़ता है। भगवान कृपया शंका दूर करें।



भोगना चाहो, तो भोगना पड़ता है। भोगना न चाहो, तो कट सकता है। सब तुम पर निर्भर है। अगर हिसाबीकिताबी हो तो भोगना पड़ेगा। हिसाबकिताब जला दिया, अस्तित्व भी जला देता है। अस्तित्व को दर्पण है। तुम जैसे हो वैसे ही झलका देता है। अब बंदर अगर दर्पण में झाकेगा तो तुम यह मत समझना कि देवता की तस्वीर दिखायी पड़ेगी। बंदर दर्पण में झांकेगा तो बंदर ही दिखायी पड़ेगा। निश्चित तुमने जो सुना है, ठीक सुना है, लोग कहते रहे हैंहिसाबीकिताबी लोग, गणित की लकीर से चलनेवाले लोग। हिसाबकिताब में यह बात समझ में आती है कि बुरा किया है, तो भला करके बुरे को मिटाना पड़ेगा। तभी न्याय हो पाएगा। तभी हिसाबकिताब पूरा होगा। इसलिए उनको लगता है कि जन्मोंजन्मों तक बुरा किया, अब जन्मोंजन्मों तक भला करेंगे, तब कहीं छुटकारा हो पाएगा। ये हिसाबीकिताबी की दुनिया है।

अगर तुम ज्ञान के मार्ग पर चलोगे तो तुमने जो सुना है वह ठीक ही सुना है कि पूर्वजन्म के पाप कहें, या प्रारब्ध, उन्हें भोगना पड़ेगा। भोगना ही नहीं पड़ेगा, उनके प्रतिकार के लिए उतने ही शुभ कर्म करने पडेंगे। और यह तो अंतहीन प्रक्रिया होगी। इसमें से छूटोगे कैसे? कितने जन्मों तक तुमने पाप किये हैं? उतने ही जन्म लग जाएंगे उन्हें भोगने में। और इस बीच भी तुम खाली तो नहीं बैठे रहोगे। इस बीच भी कुछ तो करोगे। और कुछ भी करोगे तो पाप होता रहेगा। तुम यह मत सोचना कि पाप करने से ही पाप होता है। जीने मात्र से पाप हो जाता है। सांस लेने से पाप हो रहा है। देखते नहीं, तेरापंथी जैनमुनि नाक पर मुंहपट्टी बाधे रखता है। किसलिए? क्योंकि सांस की गर्म हवा हवा में तैरतेछोटेछोटे कीटाणुओं को मार डालती है। सांस ही लेने में पाप हो रहा है। एक श्वास में करीब एक लाख जीवाणुओं की हत्या हो जाती है।

अब तुम क्या करोगे, सांस तो लतै कम से कम! अपने खाट पर ही पड़े रहोगे, मगर सांस तो लोगे? भोजन तो करोगे? पानी तो पीओगे? जिओगे तो कुछ? चलोगेफिरोगे? हिलनेडुलने में पाप हो रहा है। जीने का अर्थ, कहीं न कहीं कुछ न कुछ होगा। तो ये इतने जन्म तुम्हें पुराने पाप काटने में लग जाएंगे, और इस बीच तुम बैठे नहीं रहोगे, गोबरगणेश बन कर बैठे नहीं रहोगे, कुछ न कुछ करोगे, उसे करने से फिर नया पाप होता रहेगा, फिर इस शृंखला का अंत कहा होगा? यह गणित बड़ा लंबा लंबा है। इस लंबे गणित में से बाहर आने का उपाय नहीं है। लेकिन जो बाहर आना नहीं चाहते, उनको यह गणित बड़ा सहारे का है। वे कहते हैं, हम करें भी क्या? प्रारब्ध तो भोगना पड़ेगा। यह प्रारब्ध को भोगने की बात उनकी तरकीब है। वे बाहर निकलना नहीं चाहते।


भक्ति का शास्त्र छलांग में भरोसा करता है। भक्ति का शास्त्र कहता है, तुम परमात्मा पर छोड़ दो इसी क्षण और तुम मुक्त हो गये। 


भक्त का अर्थ होता है कि उसने सब परमात्मा पर छोड़ दियाकि तूने जो करवाया, हुआ; तू जो करवा रहा है, होगा; जो आगे भी तू करवाता रहेगा, होता रहेगा। मैं अपने को विदा करता हूं। मैं अपने को नमस्कार करता हूं। मैं अपने को नमस्कार करता हूं। भक्त अपने अहंकार को अलविदा कह देता है। यह समर्पण है। इस समर्पण में ही क्रांति घट जाती है। फिर कौन कर्ता? जब कर्ता ही न बचा कर्म कैसे? कैसा प्रारब्ध?


तो तुम पूछते हो कि क्या प्रारब्ध भोगना ही पड़ता है? भोगना चाहो तो भोगना पड़ता है। भोगना चाहो, तो कर्म का सिद्धांत मानो। अगर न भोगना चाहो, तो भक्ति की ऊर्जा में उतर जाओ।


कर्म का सिद्धांत संकल्प पर आधारित है, भक्ति की क्रांति समर्पण पर। कर्म के सिद्धांत  में अहंकार केंद्र पर है। भक्ति के सिद्धांत में कोई अहंकार नहीं। एक ही परमात्मा सब चला रहा है। हम उसके ही हाथ में कठपुतलियां हैं। उसने जो करवाया, वह हुआ है। फिर कोई दंश नहीं है, कोई ग्लानि नहीं कोई अपराध नहीं।

अथातो भक्ति जिज्ञासा 

ओशो

No comments:

Post a Comment

Popular Posts