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Thursday, March 12, 2020

भीड़ का हिस्सा


इंडीवीजुअल होना, व्यक्ति होना, आत्मा की खोज का पहला सोपान है। आत्मा को आप कभी नहीं पहुंच सकते हैं, जब तक आप व्यक्ति ही नहीं हैं। अभी तो आप भीड़ के एक हिस्से हैं। अभी तो आप भीड़ के एक अंश हैं। अभी आपका अपना होना, आपका बीइंग, अभी नहीं है। अभी आप एक बड़ी मशीन के कल-पुर्जे हैं। वह बड़ी मशीन जैसी चलती है, वैसे आप चलते हैं। अभी आपकी अपनी कोई निजी सत्ता नहीं है। तो जीवन और ताजगी कहां से संभव हो सकती है? अभी हम एक यंत्र के हिस्से हैं, हम यांत्रिक हैं। अभी हम मनुष्य भी अपने को नहीं कह सकते हैं।


मनुष्य होने की पहली शुरुआत भीड़ से मुक्ति है।


बचपन से भीड़ पकड़ना शुरू कर देती है। बच्चा पैदा होता है और भीड़ उसे पकड़नी शुरू कर देती है। वह जो क्राउड है हमारे चारों तरफ, वह डरती है कि बच्चा कहीं छिटक न जाए, उसके फोल्ड से, उसके घेरे से। वह उसको शिक्षा देनी शुरू कर देती है--धर्म, शिक्षा और जमानेभर की शिक्षाएं! और उसे अपने घेरे में बांध लेने के सब प्रयास करती है। इसके पहले कि उस बच्चे में सोच-विचार पैदा हो, भीड़ उसके चित्त को सब तरफ से जकड़ लेती है। फिर जीवनभर उसी भीड़ के शब्दों में वह बच्चा सोचता है, और जीता है। अर्थात वह कभी भी नहीं सोचता और कभी भी नहीं जीता। उसके भीतर स्वयं का चिंतन, स्वयं का विचार, स्वयं का अनुभव, जैसा कुछ भी नहीं रह जाता है।


क्या यह हम सोचेंगे नहीं कि हम भीड़ के एक हिस्से हैं?


जब आप कहते हैं मैं जैन हूं, तो आप क्या कहते हैं? जब आप कहते हैं, मैं मुसलमान हूं, तो आप क्या कहते हैं? जब आप कहते हैं मैं कम्यूनिस्ट हूं, तो आप क्या कहते हैं? आप यह कहते हैं, मैं नहीं हूं, एक भीड़ है, जिसका मैं हिस्सा हूं। और क्या कहते हैं आप? आप इनकार करते हैं अपने होने को और भीड़ के होने को स्वीकार करते हैं। कहते हैं--मैं हिंदू हूं, ईसाई हूं, पारसी हूं। आप क्या कह रहे हैं? इससे ज्यादा अपमान की कोई और बात हो सकती है कि आप पारसी हैं, हिंदू हैं, ईसाई हैं। आदमी नहीं हैं--आप आप नहीं हैं। आप एक भीड़ की, भीड़ के एक हिस्से हैं। और बड़े गौरव से इस बात को कहते हैं कि मैं वह भीड़ हूं। और वह भीड़ जितनी पुरानी होती है आप और गौरव से चिल्लाते हैं कि मेरी भीड? बड़ी प्राचीन है; मेरी संस्कृति, मेरा धर्म बड़ा पुराना है। मेरी भीड़ की संख्या बहुत ज्यादा है। और आपको पता भी नहीं चलता कि आप अपना आत्मघात कर रहे हैं, आप स्युसाइड कर रहे हैं।


जो आदमी भीड़ का हिस्सा है, वह आत्मघाती है।


आपको स्मरण होना चाहिए--आप आप हैं। आप एक व्यक्ति हैं। आप एक चेतना हैं, और चेतना किसी का हिस्सा नहीं होती, और न हो सकती है। यंत्र, जड़ता हिस्सा होता है। चेतना किसी का हिस्सा नहीं होता। चेतना एक स्वतंत्रता है। लेकिन सुरक्षा के पीछे हम स्वतंत्रता को खो देते हैं।

असंभव क्रांति 

ओशो


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