Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Wednesday, December 26, 2018

एक धारणा है कि परमात्मा मनुष्य की देह धर कर अवतरित होता है। और दूसरी धारणा है कि मनुष्य का आत्यंतिक विकास परमात्मा में होता है। इसमें से कौन सी धारणा सत्य के ज्यादा करीब है?




पहली बात, कोई भी धारणा सत्य के करीब नहीं होती। धारणा-मात्रा सत्य से दूर होती है।
 
सत्य ऐसा है कि किसी धारणा में समाता नहीं; समा जाये, तो सत्य नहीं। धारणा तो छोटा सा आंगन है--और सत्य हैः विराट आकाश। न तो इस आंगन में समाता है; न उस आंगन में समाता है। ऐसा नहीं है कि झोपड़े के आंगन में नहीं समाता; राजमहल के आंगन में भी नहीं समाता। आंगन में ही नहीं समाता। जो समा जायेआकाश ही नहीं; जो न समाये वही आकाश है।

तो पहली तो बातः कोई धारणा सत्य के करीब नहीं होती। सभी धारणाएं सत्य की तरफ इशारे हैं। जैसे मैं अंगुली से चांद को दिखाऊं; कोई दूसरा किसी और उपाय से चांद को दिखाए; कोई तीसरा किसी और उपाय से चांद को दिखाए। लेकिन सब उपाय चांद से दूर हैं। कोई उपाय चांद नहीं है। मेरी अंगुली चांद नहीं है। और जो अंगुली को पकड़ लेगा, वह चांद से चूक जायेगा। शब्द से सावधान रहना। धारणा तो शब्दों में होती है और सत्य मौन में। उनकी यात्रा विपरीत है।

 
शब्द से परिभाषा हो जाती है; लेकिन जिसे मौन में जाना हो, उसकी परिभाषा शब्द से कैसे होगी? जिसे शब्द को छोड़ कर जाना जाता हो, उसे शब्द में तुम कैसे भरोगे? इसलिए न तो हिंदू, न मुसलमान, न ईसाई, न जैन किसी की धारणा सत्य नहीं है। धारणा सत्य होती ही नहीं।
 
अब तुम पूछते होः कौन सी धारणा करीब है?

इसका मतलब यह हुआ कि कोई चीज सत्य के थोड़े ज्यादा करीब हो सकती है, कोई चीज सत्य से थोड़े ज्यादा दूर हो सकती है। इसका अर्थ हुआ कि कोई झूठ सत्य के ज्यादा करीब हो सकता है; एक झूठ सत्य से ज्यादा दूर हो जाता है। लेकिन तब तो दो झूठों में फर्क हो जाएगा। और झूठों में फर्क नहीं होता। झूठतो झूठ है।

या तो कोई चीज सत्य होती है या नहीं होती; करीब का सवाल ही नहीं है। करीब से करीब भी जो होगा, वह भी तो असत्य ही होगा! और सत्य आंशिक नहीं होता है; जब भी होता हैपूर्ण होता है।

 
सत्य के टुकड़े नहीं हो सकते। तुम ऐसा नहीं कह सकते कि मेरे पास आधा सत्य है; कि मेरे पास पाव सत्य है; कि मेरे पास तो तोला भर है! सत्य के टुकड़े नहीं होते; सत्य अखंड है। टुकड़े नहीं होते; विभाजन नहीं होते।

तो एक धारणा पास, एक धारणा दूर, तो इसका अर्थ होगाः एक धारणा में सत्य थोड़ा ज्यादा और एक धारणा में सत्य थोड़ा कम है! सत्य के खंड हो जायेंगे। और सत्य के खंड नहीं होते। तो या तो सत्य होता हैया सत्य नहीं होता।

सभी धारणाएं असत्य हैं; उपयोगी हैं जरूर, लेकिन असत्य हैं। असत्य का भी उपयोग है। और कभी-कभी समझदार आदमी हो, तो असत्य का उपयोग भी सत्य की तरफ जाने में कर ले सकता है।

 
जैसे एक सूफी कहानी है। एक आदमी घर लौटा बाजार से थका-मांदा और देखाः उसके घर में आग लग गई है। चार-दीवारी पर आग फैल गई है और उसके बच्चे भीतर खेल रहे हैं। स्वभावतः वह चिल्लायाः बच्चो, बाहर आ जाओ। छोटे बच्चे हैं, कोई पांच साल का, कोई चार साल का, कोई छह साल का। वह चिल्लाया कि बाहर आ जाओ; घर में आग लगी है। लेकिन बच्चे अपने खेल में मस्त हैं। उन्होंने अपने बाप की सुनी-अनसुनी कर दी। बाप भीतर जा भी नहीं सकता; आग खतरनाक है। शायद लौट भी न पाए बाहर। बाहर से ही चिल्ला सकता है।

अब बाप क्या करे? उसे सूझी, उसे ख्याल आया। बच्चों ने उससे कहा था कि जब बाजार से आओ, तो खिलौना-गाड़ी ले आना। तो वह चिल्लाया कि अरे पागलो, कर क्या रहे हो! खिलौना-गाड़ी मैं ले आया हूं। ऐसा सुनते ही बच्चे भाग कर बाहर आ गए। बाप खिलौना-गाड़ी लाया नहीं है। यह बात सरासर झूठ थी। लेकिन झूठी खिलौना-गाड़ी ने बच्चों को आग से बचा लिया।

 
ऐसी ही धारणाएं हैं सब।

धारणा कोई भी सत्य नहीं है। जिन्होंने देखा कि तुम्हारे घर में आग लगी हैऔर तुम मशगूल हो खेलों में; और तुम अंधे हो, और तुम्हें आग की लपट दिखाई नहीं पड़तीं; जिन्होंने देखा कि तुम्हारा घर धू-धू कर जल रहा है और तुम्हें पुकारना चाहा और तुम्हें बचाना चाहा, उन्होंने कुछ खिलौनों की बातें कहीं। उन्होंने उन खिलौनों की बातें कहीं, जिनमें तुम्हारा रस है; क्योंकि तुम उन्हीं के कारण बाहर आ सकोगे।

 
सत्य तो कहा नहीं जा सकता। और सत्य कहा भी जाए, तो तुम समझ न पाओगे। तुम जहां हो, वहां तो झूठ पर ही तुम्हारी सारी पकड़ है। तुम जहां हो, वहां तो झूठ की भाषा ही समझ में आती है! तुमसे तो झूठ ही बोलना होगा।

नहीं साँझ नहीं भोर 

ओशो

No comments:

Post a Comment

Popular Posts