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Sunday, May 3, 2020

प्रेम और घृणा



जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है, कुछ भी स्थायी हो नहीं सकता। किसी भी चीज को स्थायी बनाना तुम्हारे हाथ में नहीं है। केवल मृत चीजें स्थायी हो सकती हैं। कोई भी चीज जितनी ज्यादा जीवंत है, उतनी ही ज्यादा क्षणभंगुर होगी।


आज प्रेम है कल की किसे खबरः रह भी सकता है, नहीं भी रह सकता। उसका नियंत्रण करना तुम्हारे हाथ में नहीं है। वह एक घटना है तुम कुछ भी कर नहीं सकते; तुम उसे पैदा नहीं कर सकते यदि वह न हो। या तो वह होता है अथवा वह नहीं होता है- तुम बस असहाय हो। पत्थर स्थायी हो सकते हैं, फूल नहीं हो सकते। और प्रेम पत्थर नहीं है। वह एक फूल है, और अनूठी गुणवत्ता वाला।
हृदय द्वंद्व का अतिक्रमण है। हृदय चीजों को स्पष्टता से देखता है और प्रेम उसका स्वाभाविक गुण है- ऐसी चीज नहीं जिसमें प्रशिक्षण लेना हो और इस प्रेम में घृणा उसके प्रतिपक्ष के रूप में उपस्थित नहीं रहती।


तुम प्रेम-घृणा रूपी द्वंद्व के पार जाने में समर्थ हो।


अभी वे तुम्हारे जीवन में साथ-साथ चलते हैं। तुम उसी व्यक्ति से प्रेम करते हो जिससे तुम घृणा करते हो। तो सुबह घृणा है, शाम को प्रेम है- और यह बड़ी चकराने वाली बात है। तुम जान ही नहीं पाते कि तुम इस व्यक्ति से प्रेम करते हो या घृणा करते हो, क्योंकि अलग-अलग समयों पर तुम दोनों ही करते हो।


लेकिन यही मन के काम करने का ढंग है; वह विरोधाभासों के जरिए काम करता है। विकास भी विपरीत के माध्यम से काम करता है; लेकिन वे विपरीतताएं अस्तित्त्व के लिए विरोधाभास नहीं हैं, वे परिपूरक हैं।


घृणा भी एक तरह का प्रेम है- शीर्षासन करता हुआ।


जो प्रेम मन से आता है वह हमेशा प्रेमघृणा होता है। ये दो शब्द नहीं हैं, यह एक शब्द हैः प्रेमघृणा”- उनके बीच संयोजक चिन्ह भी नहीं है। और प्रेम, जो तुम्हारे हृदय से आता है, वह सभी द्वंद्वों के पार है।


हर व्यक्ति उसी प्रेम की खोज में है जो प्रेम और घृणा के पार जाता है- लेकिन मन के द्वारा, खोज रहे हैं, इसीलिये दुखी हैं। प्रत्येक प्रेमी असफलता महसूस करता है, धोखा हुआ, विश्वासघात हुआ महसूस करता है लेकिन इसमें किसी का दोष नहीं है। असलियत यह है कि तुम गलत उपकरण का उपयोग कर रहे हो। यह ऐसे ही है जैसे कोई व्यक्ति आंखों का उपयोग संगीत सुनने के लिये कर रहा हो, और फिर विक्षिप्तता प्रगट करता है कि कहीं कोई संगीत नहीं है लेकिन आंखों का काम सुनना और कानों का काम देखना नहीं है। मन अति व्यापारी किस्म का, हिसाबी-किताबी यंत्र है; उसका प्रेम से कोई लेना-देना नहीं।


प्रेम एक अराजकता होगी। वह मनका सब कुछ अस्त-व्यस्त कर देगा। हृदय का व्यापार से कोई लेना-देना नहीं- वह सदा ही छुट्टी पर है। वह प्रेम कर सकता है और ऐसा प्रेम कर सकता है जो घृणा में कभी नहीं बदलता; उस के पास घृणा के जहर नहीं हैं।


हर व्यक्ति इसी की खोज कर रहा है, लेकिन बस गलत उपकरण से; इसीलिये जगत में असफलता है। और धीरे-धीरे लोग, यह देखकर कि प्रेम केवल दुख लाता है, बंद हो गये हैं प्रेम बकवास है।वे प्रेम के विरोध में बड़ी दीवारें खड़ी कर लेते हैं। लेकिन वे जीवन के समस्त आनंदों को चूकेंगे, वे जो भी जीवन में मूल्यवान है उस सबको चूकेंगे।

जीवन के विभिन्न आयाम 

ओशो

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