Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Wednesday, May 16, 2018

मनुष्य सजग हो तो उसके हाथों में सारी शक्तियां ही मंगलदायी हैं..

क्योंकि मूर्छा और बेहोशी के अतिरिक्त और कोई अमंगल नहीं है। शक्तियां तो सदा ही तटस्थ हैं, और निष्पक्ष हैं। उनसे क्या होगा यह उन पर नहीं, उनके उपयोग करनेवाले मनुष्य पर ही पूर्णतः निर्भर है।

 
धर्म में प्रतिष्ठित मानवीय चेतना के लिए विज्ञान की अग्नि भी आत्मविनाशी नरक नहीं, वरन आत्म-सृजन, स्वर्ग बन सकती है। धर्म से संयुक्त होकर विज्ञान एक बिलकुल ही अभिनव मनुष्यता का जन्म बन सकता है।
 
एक बादशाह ने किसी वृद्ध फकीर से पूछा था, मैं सुनता हूं कि बहुत सोना बुरा है लेकिन मुझे नींद बहुत आती है। आपकी राय क्या है? वह वृद्ध फकीर बोला था, अच्छे लोगों का सोना बुरा होता है लेकिन बुरे लोगों का सोना ही अच्छा होता है। क्योंकि वे जितनी देर जागते हैं, संसार को उतना नरक बनाने के लिए श्रमरत रहते हैं।


शांति के केंद्र पर शक्ति की परिधि शुभ होती है। किंतु अशांति के केंद्र पर तो अशक्ति ही शुभ है। धर्म के हाथों में विज्ञान शुभ है। किंतु अधर्म के हाथों में उसे कैसे शुभ माना जा सकता है? ज्ञान के साथ शक्ति शुभ है। लेकिन अज्ञान और शक्ति का मिलन तो दुर्घटना बनेगी ही! मनुष्य ऐसी ही दुर्घटना में फंस गया है। विज्ञान ने दी है शक्ति, लेकिन वह शांति कहां है, जो उसका सम्यक उपयोग कर सके? शांति नहीं होगी तो होगा विनाश। और शांति होगी तो जीवन के और सृजन के अभूतपूर्व मार्ग प्रशस्त हो सकते हैं? मनुष्य के बाहर है शक्ति और भीतर है अशांति। गणित बिलकुल सीधा और साफ है? यह संयोग ही संकट है। 


अशांत और दुखी चित्त दूसरों को भी दुखी और अशांत करने में सुख का अनुभव करता है। दुखी चित्त के लिए इसके अतिरिक्त और कोई सुख होता ही नहीं है। वस्तुतः जो हमारे पास होता है उसे ही तो हम दूसरों को दे सकते हैं


जो दुखी है, वह दूसरों को सुख में देख कर और दुख में पड़ जाता है। उसका सुख तो यही होता है कि कोई सुख में न हो। यही हो रहा है, यही होता रहा है। और दुखी, अशांत और अंधकार से भरे मनुष्य के हाथों में विज्ञान ने ऐसी शक्ति रख दी है, जो कि समग्र जीवन का विनाश भी बन सकती है।


मनुष्यता को आत्मघात के लिए पूर्ण उपकरण उपलब्ध हो गए हैं। और अब जो महामृत्यु के लिए समारोहपूर्वक तैयारी चल रही है, उसे आकस्मिक नहीं कहा जा सकता है। हम सब किस कार्य में संलग्न हैं? यह विराट श्रम किस दिशा में हो रहा है? हम किसलिए जी रहे हैं और मर रहे हैं? मृत्यु को लाने के लिए! महामृत्यु को लाने के लिए!


पहले तथाकथित धार्मिक लोग जीवन से छुटकारे के लिए व्यक्तिगत रूप से श्रम और साधना करते थे। अब विज्ञान ने सामूहिक और सार्वजनिक रूप से जीवन से छुटकारे के लिए द्वार खोल दिए हैं। इस बहती गंगा में कौन हाथ न धो लेना चाहेगा? मृत्यु के इस अदभुत समारोह में हम सभी एक-दूसरे के लिए सहयोगी और साथी हैं। जीवन के लिए जो साथी और सहयोगी नहीं हैं, वे भी एक-दूसरे को मृत्यु में भेजने के लिए स्वयं को मिटाने के लिए भी सहर्ष तैयार हैं। अदभुत है बलिदान की यह भावना, त्याग की यह वृत्ति! जीवन में जो शत्रु हैं, मृत्यु के महायज्ञ में वे सब संगी-साथी हो गए हैं।


क्या मैं कहूं कि मनुष्य विक्षिप्त हो गया है? शायद यह कहना ठीक नहीं है। क्योंकि इससे यह भ्रम पैदा होता है कि जैसे वह पहले स्वस्थ था! मनुष्य तो वैसा ही है, जैसा सदा से था। सिर्फ वे शक्तियां जो पहले उसके हाथ में नहीं थीं अब उसके हाथ में आ गई हैं, और उसने ही उसकी छिपी विक्षिप्तता प्रकट कर दी है। शक्ति और सामथ्र्य पाकर कोई पागल नहीं होता है। बस शक्ति की सुविधा पाकर जो पागलपन अप्रकट होता है वही प्रकट हो जाता है। 

शिक्षा में क्रांति 

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts