Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Friday, May 4, 2018

आचरण किसी दूसरे व्यक्ति के लिए आदर्श नहीं है और न हो सकता है।


 
सारी दुनिया में जो कठिनाई पैदा हुई है वह इसलिए पैदा हुई है कि व्यक्तियों के आदर्श हमने सामूहिक आदर्श बना लिए हैं। एक व्यक्ति के लिए जो ठीक था वह हमने आदर्श बना लिया है सबके लिए। वह सबके लिए ठीक नहीं है और न हो सकता है। इस कारण एक जबरदस्ती जीवन में अनुभव होती है। महावीर के लिए जो ठीक है, बुद्ध के लिए जो ठीक है, क्राइस्ट के लिए जो ठीक है वह मेरे और आपके लिए ठीक नहीं भी हो सकता है। लेकिन जब हम क्राइस्ट को पकड़ लेंगे और ठीक उन जैसे होने की कोशिश करेंगे तो अपने जीवन में आत्महिंसा शुरू हो जाएगी, हम अपने साथ जबरदस्ती शुरू कर देंगे। क्योंकि हम उनका अनुसरण करेंगे और उनके पीछे होने की कोशिश करेंगे। उसमें व्यक्तित्व मरेगा, विकसित नहीं होगा। मनुष्य की पूरी जाति इस भूल के कारण व्यक्तित्व की हत्या में लगी हुई है।


कभी विचार करें, दूसरा क्राइस्ट पैदा हुआ? कभी विचार करें, दूसरा महावीर पैदा हुआ? दूसरा बुद्ध पैदा हुआ? दो हजार साल होते हैं क्राइस्ट को मरे, दो हजार साल में कितने लोगों ने क्राइस्ट जैसे बनने की कोशिश की है, कोई दूसरा व्यक्ति क्राइस्ट जैसा पैदा हुआ? कोई दूसरा महावीर हम पैदा कर सके? कोई दूसरा बुद्ध, कोई दूसरा कृष्ण हम पैदा कर सके? नहीं कर सके, तो यह स्मरण होना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति बिलकुल अद्वितीय है। प्रत्येक व्यक्ति बिलकुल बेजोड़ है। और कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की नकल होने को पैदा नहीं हुआ है, कोई किसी की टुकॉपी होने को पैदा नहीं हुआ है। और अगर यह हम कोशिश करें कि हम उन जैसे हो जाएं, तो इस होने में उन जैसे तो हम हो नहीं पाएंगे। 


हमें सिखाया जाता है महावीर जैसे बनो। हमें शिक्षा दी जाती है कृष्ण जैसे बनो। हमें बताया जाता है राम जैसे बनो। यह शिक्षा बिलकुल झूठी है। शिक्षा यह होनी चाहिए, अपने जैसे बनो। तुम जो बन सकते हो, तुम्हारे भीतर जो बीज छिपा है उसे विकसित करो। कोई किसी दूसरे जैसा नहीं बन सकता है। और बनने की कोई आवश्यकता भी नहीं है। और अगर बनने की कोशिश करेगा तो जीवन में केवल पाखंड होगा, दमन होगा, जबरदस्ती होगी, उसमें जीवन के सहज फूल विकसित नहीं हो पाएंगे। 


अगर कोई राम जैसा बनने की कोशिश करेगा, तो रामलीला का राम बन जाएगा, असली राम नहीं। और रामलीला के रामों की बिलकुल भी जरूरत नहीं है। उनकी वजह से तो जीवन में हिपोक्रेसी, पाखंड फैला है। 


नाटक नहीं है जीवन कि हम दूसरे जैसे बन सकें। नाटक में भर दूसरे जैसा बना जा सकता है। नाटक में तो यहां तक हो सकता है कि असली राम हार जाएं रामलीला के राम से। इसमें कोई कठिनाई नहीं है।

जीवन में कोई दूसरे जैसा नहीं हो सकता है। और अगर हम नाटक के ही नियमों से जीवन को चलाएंगे तो जीवन नाटकीय हो जाएगा, सच्चा नहीं हो सकता। जो भी आदमी किसी दूसरे जैसा होने की कोशिश करता है उसका व्यक्तित्व नाटकीय हो जाता है, झूठा हो जाता है, सच्चा नहीं रह जाता। वह अपनी आत्मा का घात कर रहा है।  

धर्म और आनंद 

ओशो

No comments:

Post a Comment

Popular Posts