Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Wednesday, April 3, 2019

चिंता का अर्थ क्या है?

चिंता का अर्थ ही यह है कि बोझ मुझ पर है। पूरा कर पाऊंगा? नहीं; तुम साक्षी हो जाओ।

कृष्ण ने गीता में यही बात अर्जुन से कही है कि तू कर्ता मत हो। तू निमित्त-मात्र है; वही करने वाला है। जिसे उसे मारना है, मार लेगा। जिसे नहीं मारना है, नहीं मारेगा। तू बीच में मत आ। तू साक्षी भाव से जो आज्ञा दे, उसे पूरी कर दे।

परमात्मा कर्ता है--और हम साक्षी। फिर अहंकार विदा हो गया। न हार अपनी है, न जीत अपनी है। हारे तो वह, जीते तो वह। न पुण्य अपना है, न पाप अपना है। पुण्य भी उसका, पाप भी उसका। सब उस पर छोड़ दिया। निर्भार हो गए। यह निर्भार दशा संन्यास की दशा है।

 
जा घट चिंता नागिनी, ता मुख जप नहिं होय।और जब तक चिंता है, तब तक जप नहीं होगा। तब तक कैसे करोगे ध्यान? कैसे करोगे हरि-स्मरण? चिंता बीच-बीच में आ जाएगी। तुम किसी तरह हरि की तरफ मन ले जाओगे, चिंता खींच-खींच संसार में ले आएगी।

तुमने देखा न कि जब कोई चिंता तुम्हारे मन में होती है, तब बिल्कुल प्रार्थना नहीं कर पाते। बैठते हो, ओठ से राम-राम जपते हो और भीतर चिंता का पाठ चलता है।
 
चिंता और प्रभु-चिंतन साथ-साथ नहीं हो सकते। चिंता यानी संसार का चिंतन।

 
व्यर्थ का कूड़ा-कचरा तुम्हारे मन को घेरे रहता है। तो उस कूड़े-कचरे में तुम परमात्मा को बुला भी न सकोगे। उसके आने के लिए तो शांत और शून्य होना जरूरी है। और शांत और शून्य वही हो जाता है, जिसने कर्ता का भाव छोड़ दिया।

जा घट चिंता नागिनी ता मुख जप नहिं होय।

जो टुक आवै याद भी, उन्हीं जाय फिर खोय।।

और कभी क्षणभर को--टुक--जरा सी याद भी परमात्मा की आती है खिसक-खिसक जाती है। फिर मन संसार में चला जाता हैै। फिर सोचने लगता है कि ऐसा करूं, वैसा करूं? क्या करूं, क्या न करूं? ऐसा होगा--नहीं होगा?

इतना ही नहीं, मन इतना पागल है कि अतीत के संबंध में भी सोचता है कि ऐसा क्यों न किया? ऐसा क्यों कर लिया?

अब अतीत तो गया हाथ के बाहर। अब कुछ किया भी नहीं जा सकता। किए को अनकिया नहीं किया जा सकता। अब अतीत में कोई तरमीम, कोई सुधार, कोई संशोधन नहीं हो सकता। मगर मन उसका भी सोचता है कि फलां आदमी ने ऐसी बात कही थी, काश! हमने ऐसा उत्तर दिया होता!
अब तुम क्यों समय गंवा रहे हो? वक्त जा चुका। जो उत्तर दिया--दिया। जो कहना था--हो गया। जो करना था--हो गया। अब तुम क्या कर सकते हो? अतीत को बदला नहींं जा सकता। लेकिन आदमी अतीत की भी चिंता करता है।

बैठे हैं लोग; सोच रहे हैं कि ऐसा किया होता, वैसा किया होता। इस स्त्री से विवाह न किया होता, उस स्त्री से विवाह कर लिया होता। और उस स्त्री से किया होता, तो भी तुम यही सोचते होते। कोई फर्क न पड़ता।

अतीत की चिंता तो बिल्कुल व्यर्थ है। क्योंकि जो हो ही चुका--हो ही चुका। उसकी क्या चिंता? और भविष्य की चिंता भी व्यर्थ है, क्योंकि जो अभी नहीं हुआ--अभी हुआ ही नहीं--उसकी क्या चिंता? उसकी चिंता से क्या होगा?

तुम्हारे हाथ में क्या है? एक श्वास भी तुम्हारे हाथ में नहीं। कल सूरज उगेगा भी कि नहीं उगेगा--इसका भी कुछ पक्का नहीं। कल सुबह होगी भी या नहीं होगी--इसका भी कुछ पक्का नहीं। तुम होओगे कल या नहीं होओगे--कुछ पक्का नहीं। मगर बड़ी योजनाएं, बड़ी चिंताएं, कर्ता के भाव के साथ-साथ चली आती है।

नहीं साँझ नहीं भोर 

ओशो

1 comment:

Popular Posts