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Friday, July 24, 2015

साधु और संत

यह बहुत आसान है दुनिया में साधु बन जाना; संत बनना कठिन है। और संत और साधु का फर्क यही है। साधु का मतलब : बाहर, जो सबके लिए साधु हो गया है। जिसके कारण बाहर की दुनिया में अब कोई असाधुता नहीं होती। लेकिन भीतर साधु हुआ कि नहीं? क्योंकि यह हो सकता है तुम बाहर हत्या न करो और भीतर हत्या के विचार करो। अकसर तो ऐसा होता है जो बाहर हत्या नहीं करते वे भीतर हत्या के बहुत विचार करते हैं। जो बाहर हत्या कर लेते हैं शायद भीतर विचार भी नहीं करते। अब विचार करने की क्या जरूरत रही जब कर ही लिया? अकसर ऐसा हो जाता है।
मैं जेलों में बहुत दिन तक जाता रहा। कारागह के कैदियों से मेरे लंबे नाते—रिश्ते बने। मैं चकित हुआ यह बात जानकर कि कारागह में जो कैदी हैं——कोई हत्यारा है, कोई चोर है, कोई कुछ है, कोई जीवनभर के लिए कैद में पड़ा है——उनकी आंखों में एक तरह की सरलता दिखाई पड़ती है, जो कि तथाकथित सज्जनों की आंखों में नहीं दिखायी पड़ती। एक तरह का भोलाभालापन मालूम पड़ता है। और मैंने उनसे पूछा, क्योंकि मेरा रस मनोविज्ञान में है, मैं उनसे बार— बार पूछा कि अपने सपने कहो। अनेक कैदी तो मुझे कहे कि हमें सपने आते ही नहीं। किसी ने कहा, कभी— कभी आते हैं।

ओशो

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