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Monday, July 27, 2015

मुमुक्षा

एक और—जिससे संबंध है हमारा—एक और भी दिशा है खोज की, उसे हम कहते हैं, मुमुक्षा। जानने की फिक्र नहीं है, जीने की फिक्र है। जानने की फिक्र नहीं है, होने की फिक्र है। यह सवाल नहीं है कि ईश्वर है, सवाल यह है कि क्या मैं ईश्वर हो सकता हूं? अगर ईश्वर हो भी और मैं ईश्वर न हो सकूं तो कोई सार नहीं है। सवाल यह नहीं है कि मोक्ष है, सवाल यह है कि क्या मैं भी मुक्त हो सकता हूं? अगर मैं मुक्त हो ही न सकूं और मोक्ष हो भी कहीं, तो क्या अर्थ है? यह बात नहीं है कि आत्मा है भीतर या नहीं, हो या न हो, सवाल असली यह है कि क्या मैं आत्मा हो सकता हूं?

मुमुक्षा है होने की खोज। और जब कोई होना चाहता है, तब दाव पर लगना पडता है। इसलिए कहता हूं, धर्म है जुआरियों का काम। वही कहूंगा जो मैं जानता हूं जो जीया है। अगर आप तैयार हुए दाव पर लगाने को, तो जो मेरा अनुभव है वह आपका अनुभव भी बन सकता है। अनुभव किसी के नहीं होते, जो भी लेने को तैयार हो, उसी के हो जाते हैं। सत्य पर किसी का कोई अधिकार नहीं। जो भी मिटने को राजी है, वही उसका मालिक हो जाता है। सत्य तो उसका है, जो भी उसे मागने की तैयारी दिखलाता है; जो भी अपने हृदय के द्वार खोलता है और उसे पुकारता है।

इस उपनिषद को इसीलिए चुना है। यह उपनिषद अध्यात्म का सीधा साक्षात्कार है। सिद्धात इसमें नहीं हैं, इसमें सिद्धों का अनुभव है। इसमें उस सब की कोई बातचीत नहीं है जो कुतूहल से पैदा होती है, जिज्ञासा से पैदा होती है। नहीं, इसमें तो उनकी तरफ इशारे हैं जो मुमुक्षा से भरे हैं, और उनके इशारे हैं जिन्होंने पा लिया है।
कुछ ऐसे लोग भी हैं कि जिन्होंने नहीं पाया, लेकिन फिर भी मार्ग—दर्शन देने का मजा नहीं छोड़ पाते। मार्ग—दर्शन में बड़ा मजा है। सारी दुनिया में अगर सबसे ज्यादा कोई चीज दी जाती है, तो वह मार्ग—दर्शन है! और सबसे कम अगर कोई चीज ली जाती है, तो वह भी मार्ग—दर्शन है! सभी देते हैं, लेता कोई भी नहीं है! जब भी आपको मौका मिल जाए किसी को सलाह देने का, तो आप चूकते नहीं। जरूरी नहीं है कि आप सलाह देने योग्य हों। जरूरी नहीं है कि आपको कुछ भी पता हो, जो आप कह रहे हैं। लेकिन जब कोई दूसरे को सलाह देनी हो, तो शिक्षक होने का मजा छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है।

शिक्षक होने में मजा क्या है? आप तत्काल ऊपर हो जाते हैं मुफ्त में और दूसरा नीचे हो जाता है। अगर कोई आपसे दान मांगने आए, तो दो पैसे देने में कितना कष्ट होता है! क्योंकि कुछ देना पडता है जो आपके पास है। लेकिन सलाह देने में जरा भी कष्ट नहीं होता; क्योंकि जो आपके पास है ही नहीं, उसको देने में कष्ट क्या! आपका कुछ खो ही नहीं रहा है। बल्कि आपको कुछ मिल रहा है। मजा मिल रहा है। अहंकार मिल रहा है। आप भी सलाह देने की हालत में हैं आज, और दूसरा लेने की हालत में है। आप ऊपर हैं, दूसरा नीचे है। इसलिए कहता हूं कि इस उपनिषद में कोई सलाह, कोई मार्ग—दर्शन देने का मजा नहीं है, बड़ी पीड़ा है। क्योंकि उपनिषद का ऋषि जो दे रहा है, वह जान कर दे रहा है। वह बांट रहा है कुछ—बहुत हार्दिक, बहुत आतरिक। संक्षिप्त इशारे हैं, लेकिन गहरे हैं। बहुत थोड़ी सी चोटें हैं, लेकिन प्राण—घातक हैं। और अगर राजी हों, तो तीर सीधा हृदय में चुभ जाएगा और जान लिए बिना न रहेगा। जान ही ले लेगा।

ओशो 

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