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Sunday, July 26, 2015

ओम्

जब कोई अस्तित्व में गहरे जाता है जड़ों तक, बहुत गहरे, तो वहां विचार नहीं होते। विचार करने वाला भी वहां नहीं होता। विषय-बोध भी वहां नहीं होता, और न कर्ता का बोध ही होता है, परन्तु फिर भी, सब कुछ होता है। उस विचारशून्य, कर्ताशून्य क्षण में, एक ध्वनि सुनाई पड़ती है, वह ध्वनि ओम की ध्वनि से मिलती है–मात्र मिलती है। वह ओम नहीं है इसीलिए वह मात्र एक संकेत है। हम उसे फिर से उत्पन्‍न नहीं कर सकते। वह करीब-करीब मिलती-जुलती ध्वनि है। इसलिए वह कितनी ही ध्वनियों का समस्वर है, परन्तु सदैव ही ओम के सबसे अधिक पास है।
मुसलमानों व ईसाइयों ने उसे आमीन की तरह पहचाना है। वह ध्वनि जो कि सुनाई देती है, जब कि सब कुछ खो जाता है और केवल ध्वनि गूंजती रह जाती है ओम् से मिलती-जुलती होती है वह आमीन से भी मिल सकती है। अंग्रेजी में बहुत से शब्द हैं–ओम्निप्रजेंट, ओम्निशियन्ट, ओम्निपोटेंट–यह ओम्नि मात्र ध्वनि है। वास्तव में ओम्निशियन्ट का अर्थ होता हैः वह जिसने कि ओम् को देखा हो, और ओम् सब के लिए ही संकेत है। ओम्निपोटेंट का अर्थ होता है वह जो कि ओम् के साथ एक हो गया है, क्योंकि वही सब से बड़ी संभावना है सारे ब्रह्म की ध्वनि में भी मौजूद है। और वह ध्वनि सब को चारों तरफ से घेरे है, सर्व के उपर से बह रही है। ओमनिशियेन्ट, ओम्निप्रजेंट व ओम्निपोटेंट में जो ओम्नि है वह ओम् है। आमीन भी ओम् है। अलग-अलग साधक, अलग-अलग लोग भिन्‍न-भिन्‍न पहचान को पहुंचे हैं। परन्तु वे सब किसी भी प्रकार से ओम् से मिलते-जुलते हैं।

ओशो 

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