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Sunday, July 26, 2015

पूजा का अर्थ

पूजा का अर्थ है: आकार में आमंत्रण निराकार को।
और अगर तुमने कभी पूजा की है तो तुम जानोगे, तुम्हारे बुलाने के पहले गतइr साधारण पत्थर का टुकड़ा है।
रामकृष्ण पूजा करते थे। अनेक दिन बीत गये। वे रोज रोते, घंटों पूजा करते, फिर एक दिन गुस्से में आ गये। तलवार टंगी थी काली के मंदिर में मूर्ति के सामने, तलवार उतार ली, और कहा, बहुत हो गया! इतने दिन से बुलाता हूं! अगर तू प्रगट नहीं होती तो मैं अप्रगट हुआ जाता हूं। या तो तू दिखायी दे, तू हो, या मैं मिटता हूं। तलवार खींच ली। एक क्षण और, और गर्दन पर मारे लेते थे, कि सब कुछ बदल गया। मूर्ति जीवंत हो उठी! वहां काली न थी। मातृत्व साकार हो उठा! ओंठ जो बंद थे, पत्थर के थे, मुस्कराये! आक्षें जो पत्थर की थीं, और जिनसे कुछ दिखायी न पड़ता था, उन्होंने रामकृष्ण में झांका। तलवार झनकार के साथ फर्श पर गिर गयी।
रामकृष्ण छह दिन बेहोश रहे। भक्त घबड़ा गये। मित्र परेशान हुए। हर तो पहले ही था कि यह आदमी थोड़ा पागल-सा है, यह अब और क्या हो गया! छह दिन की बेहोशी के बाद जब बेहोशी में भेजती है? इतने दिन होश में रखा छह दिन–अब, क्‍यों बेहोशयी में भेजती है? फिर से बुला ले! जा मत! रुक! “
इतना विराट था, इतना प्रगाढ़ था अनुभव कि अपने को संभाल न सके। डगमगा गये! बूंद में जब सागर उतरे तो ऐसा होगा ही। तुम्हारे आगन में जब पूरा आकाश उतर आये तो तुम्हारे आगन की दीवारलें कहां तक संभली रहेंगी, गिर जाएंगी
उन छ: दिनों रामकृष्ण ने चिन्मय का जलवा देखा। वे छ: दिन सतत परमात्मा के साक्षसत्कार के दिन थे। वह उनकी पहली समाधि थी।
लेकिन पूजा का अर्थ यही है: पहले परमात्मा को आमंत्रित करो, फिर अपने को उसके चरणों में चढ़ा दो रामक्रष्ण जैसे, कि कह दो कि तू ही है, अब मैं नहीं!
तुम जितनी दूर तक परमात्‍मा को बुलाते हो, जितनी गहराई तक बुलाते हो, उतनी दूर तक, उतनी गहराई तक वह आता है। तुम जब अपने को मिटाने को भी तत्पर हो जाते हो तो तुम्हारे अंतरतम को छू लेता है। तुम्हारी बिना आकाश के वह तुम में प्रवेश न करेगा। वह तुम्हारा सम्मान करता है। वह कभी भी किसी की सीमा में आक्रमण नहीं करता। बिन बुलाया मेहमान परमात्मा कभी नहीं होता। तुम बुलाते हो, मनाते हो, समझाते-बुझाते हो, तो मुश्किल से आता है।
भक्ति खो गयी है जगत से, क्योंकि भक्ति की कला बड़ी कठिन है–सब कुछ दांव पर लगाने की कला है, जुआ है। बड़ी हिम्मत चाहिए। आंख के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए।

ओशो 

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