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Tuesday, April 18, 2017

दुख का भाव क्या है, और आनंद का भाव क्या है?




पहली बात--एक बड़े रहस्य की बात, अगर मैं एक फल लेकर आपके पास आऊं, बहुत सुंदर फूल लेकर आपके पास आऊं, एक बहुत सुंदर फूल लेकर आपके पास आऊं, एक गुलाब का फूल लेकर आप के पास आऊं और अगर आप जीवन को दुख से दुखने के आदी हो गए हैं, और मैं आपसे कहूं कि कितना सुंदर फूल है! आप कहेंगे छोड़ो भी। यह फूल सुंदर नहीं हो सकता, इस फूल में इतने कांटे होते हैं, जिसका कोई हिसाब नहीं। यह फूल सुंदर कैसे हो सकता है? गुलाब सुंदर कैसे हो सकता है? गुलाब में कितने कांटे हैं! कांटे देखो और कांटों की गिनतियां करो। तो करोड़ कांटे हैं तब कहीं एक फूल है। फूल सुंदर नहीं हो सकता लेकिन अगर आप आनंद के भाव में दीक्षित हो गए हैं तो मैं एक गुलाब का कांटा भी लेकर आपके पास आऊं तो आप कहेंगे, धन्य है यह कांटा क्योंकि इस कांटे के बीच यह गुलाब का फूल पैदा होता है। तो आप कहेंगे, यह कांटा भी कांटा नहीं हो सकता क्योंकि यह गुलाब का कांटा है। 

एक दुखी व्यक्ति देखता है, हजारों कांटों की गिनती कर लेता है। और तब कहता है कि इतने कांटे इतने कांटे, कि एक फूल की कीमत नहीं है कोई। एक फूल का--हो या न हो, बराबर है। लेकिन आनंद के भाव से देखने वाले दिखाई पड़ता है। कितनी अदभुत है यह दुनिया! जहां इतने कांटे हैं वहां एक फूल भी पैदा होता और जब कांटों में फूल पैदा हो सकता है तो कांटे हमारे देखने के भ्रम होंगे क्योंकि जिन कांटों के बीच फूल पैदा हो जाता है वे कांटे भी फूल सिद्ध हो सकते हैं। जो कांटों की गिनती करता है उसके लिए फूल भी कांटा दिखायी पड़ने लगता है और जो फूल के आनंद को अनुभव करता है उसके लिए धीरे-धीरे कांटे भी फूल बन जाते हैं। 

अमृत द्वार 

ओशो
एक दुखी और निराश और उदास चित्त से अगर हम पूछें कि आनंद के भाव में डूबे आदमी से हम पूछें कि कैसी पायी तुमने दुनिया? वह कहेगा बड़ी अदभुत थी। दो उजाले से भरे दिन होते थे, तब बीच में एक छोटी सी अंधेरी रात होती थी। रात में भी है, दिन भी हैं। कांटे भी हैं फूल भी हैं। लेकिन हम क्या देखते हैं, हमारी दृष्टि क्या है इस पर पूरी की पूरी जीवन की दिशा और जिन का आयाम। निधार्रित होगा। और आश्चर्य तो यह है कि हम जो देखना शुरू करते हैं, धीरे धीरे उसके विपरीत जो था उसी में परिवर्तित होता चला जाता है। वह भी उसी में परिवर्तित होता चला जाता है। कांटे फूल बन सकते हैं। फूल कांटे बन सकते हैं। हमारी दृष्टि पर निर्भर है कि हम किस भांति देखना शुरू करते हैं।

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