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Friday, April 7, 2017

मोक्ष के पश्चात कभी जन्म नहीं होता, इसकी क्या गारंटी है?





कोई गारंटी नहीं है। तुम किसी बैंक में आ गए!

इसको मैं कहता हूं, लोभ से भरा हुआ मन। ऐसा मन साधक नहीं हो सकता। गारंटी की बात क्या है? कौन किसको गारंटी देगा? और वह भी मोक्ष के बाद जन्म नहीं होता, इसकी गारंटी? अगर मैं लिखकर भी दे दूं, तो भी किस काम पड़ेगी? फिर तुम मुझे कहां खोजोगे? तुम मेरी लिखी चिट्ठी कहां ले जाओगे?

मोक्ष के बाद दुबारा जन्म नहीं होता इसकी गारंटी चाहिए--क्यों? क्योंकि यदि करोड़ों वर्षों के बाद नई सृष्टि में जन्म लेना होता है, तो इस मोक्ष का फायदा ही क्या?

इसको मैं कहता हूं, लाभ और लोभ की दृष्टि।

साधना का जन्म ही शुरू से गलत हो गया। वह बच्चा मरा ही पैदा हुआ। अब तुम इसको कितना ही सजाओ, संवारो, कितने ही बहुमूल्य वस्त्रों में रखो, दुर्गंध ही आएगी। यह बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ। यह तो गर्भपात हो गया। साधक पैदा ही नहीं हो पाया। तुम दुकानदार ही रहे, बाजार में ही रहे। मंदिर तो बाजार में न आ पाया, तुम बाजार को मंदिर में ले आए। तुम गारंटी पूछते हो; कोई गारंटी नहीं है।

और साधक गारंटी पूछता ही नहीं। साधक असल में कल की बात ही नहीं उठाता। साधक कहता है, आज काफी है। यह क्षण पर्याप्त है। इस क्षण में अगर मैं मुक्त हूं, तो...

इस बात को थोड़ा समझने की कोशिश करो। अगर इस क्षण में मैं मुक्त हूं, तो दूसरा क्षण पैदा कहां से होगा? इसी क्षण से पैदा होगा। क्षण में से क्षण लगते हैं। जैसे गुलाब पर गुलाब का फूल लगता है, ऐसे मुक्त क्षण में मुक्त का फूल लगता है। गुलाम क्षण में गुलामी का फूल लगता है। तुम अगर आज गुलाम हो, तो कल भी गुलाम रहोगे। आज का दिन तुम्हारी गुलामी को और मजबूत कर जाएगा। कल तुम और ज्यादा गुलाम हो जाओगे, परसों और ज्यादा गुलाम हो जाओगे।

अगर आज तुम मुक्त हो, तो कल आएगा कहां से? कल घड़ी में से थोड़े ही आता है! कल तो तुम्हारे जीवन में से ही आता है। तुम्हारा कल, तुम्हारा कल है: मेरा कल मेरा कल होगा। उतने ही समय हैं, जितने लोग हैं। समय कोई एक थोड़े ही है। मेरे समय में और तुम्हारे समय में क्या नाता है, क्या संबंध है? तुम्हारा समय तुम्हारे भीतर से निकल रहा है।

जो आदमी सुबह क्रोध से भरा था, उसकी दोपहर में क्रोध की छाया होगी। जो आदमी सुबह प्रार्थना किया है, पूजा किया है, अहोभाव से भरा था, उसकी दुपहर पर अहोभाव की भनक, धुन, सुगंध होगी। तुम्हारा क्षण तुम्हारे ही भीतर से उग रहा है। क्षण ऐसे लगता है तुममें, जैसे वृक्षों में पत्ते लगते हैं। कल की बात ही क्या करनी है? अगर आज का क्षण मेरा मुक्त है, तो वहीं छिपी है गारंटी! क्योंकि कल का क्षण आएगा कहां से? इसी क्षण से निकलेगा--और भी मुक्त होगा। क्योंकि इतना समय मुक्ति के लिए और भी मिल चुका होगा। फिर परसों उस क्षण से निकलेगा।

इसलिए हम कहते हैं, मोक्ष से कोई वापिस नहीं आता। क्योंकि मोक्ष बड़ा होता जाता है, बढ़ता जाता है; वापिस कैसे लौटोगे? वापिस तो वही लौटता है, जिसकी गुलामी बढ़ती जाती है। 

पिव पिव लागी प्यास 

ओशो 

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