Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Friday, April 7, 2017

अशांत होने की विधि



एक आदमी मेरे पास आया और उसने मुझे आकर कहा, कि मैं बहुत अशांत हूं। शांति का कोई रास्ता बताइए। मेरे पैर पकड़ लिए। मैंने कहा, पैर से दूर रखो हाथ। क्योंकि मेरे पैरों से तुम्हारी शांति का क्या संबंध हो सकता है? सुना नहीं कहीं और मेरे पैर को कितने ही काटो-पीटो, कुछ पता नहीं चलेगा कि तुम्हारी शांति मेरे पैर में कहां। मेरे पैर का कसूर भी क्या है? तुम अशांत हुए तो मेरे पैर ने कुछ बिगाड़ा तुम्हारा?


वह आदमी बहुत चौंका। उसने कहा, आप थे, क्या बात कहते हैं! मैं ऋषिकेश गया वहां शांति नहीं मिली। अरविंद आश्रम गया वहां शांति नहीं मिली। अरुणाचल हो कर आया। रमण के आश्रम में चला गया वहां शांति नहीं मिली। कहीं शांति नहीं मिली। सब ढोंग-धतूरा चल रहा है। किसी ने मुझे आपका नाम लिया, तो मैं आपके पास आया हूं।


मैंने कहा, तुम उठो दरवाजे के एकदम बाहर हो जाओ। नहीं तो तुम जाकर कल यह भी कहोगे, वहां भी गया, वहां भी शांति नहीं मिली। और मजा यह है कि जब तुम अशांत हुए थे, तुम किस आश्रम में गए थे? किस गुरु से पूछने गए थे अशांत होने के लिए? तुमने किससे शिक्षा ली थी अशांत होने की? मेरे पास आए थे? किसके पास गए थे पूछने कि मैं अशांत होना चाहता हूं? गुरुदेव, अशांत होने का रास्ता बताइए? अशांत सज्जन आप खुद हो गए थे, अकेले काफी थे। और शांत होने, दूसरे के ऊपर दोष देने आए हो। अगर नहीं हुए तो हम जिम्मेवार होंगे। आप अगर शांत नहीं हुए तो हम जिम्मेवार हुए होंगे जैसे कि हमने आपको अशांत किया हो। आप हमसे पूछने आए थे?


नहीं-नहीं, आपसे तो पूछने नहीं आया। किससे पूछने गए थे? किसी से पूछने नहीं गए। तो मैंने कहा, ठीक से समझने की कोशिश करो, कि खुद अशांत हो गए हो, कैसे हो गए हो, किस बात से हो गए हो, उसकी खोज करो। पता चल जाएगा, इस बात से हो गए। वह बात करना बंद कर देना। शांत हो जाओगे। शांत होने की कोई विधि थोड़े ही होती है।


अशांत होने की विधि होती है। और अशांत होने की विधि जो छोड़ देता है, वह शांत हो जाता है। मुक्त होने का कोई रास्ता थोड़े ही होता है। अमुक्त होने का रास्ता होता है। बंधने की तरकीब होती है। जो नहीं बंधता, वह मुक्त हो जाता है। 

जीवन संगीत

ओशो 


मैं मुट्ठी बांधे हुए हूं। जोर से बांधे हुए हूं। और आपसे पूछूं कि मुट्ठी कैसे खोलूं? तो आप कहेंगे, खोल लीजिए, इसमें पूछना क्या है। बांधिए मत कृपा करके, खुल जाएगी। मुट्ठी खोलने के लिए कुछ और थोड़े ही करना पड़ता है, सिर्फ मुट्ठी को बांधो मत। बांधते हो तो मुट्ठी बंधती है। मत बांधो खुल जाती है। खुला होना मुट्ठी का स्वभाव है। बांधना चेष्टा है, श्रम है। खुला होना, सहजता है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts