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Friday, March 1, 2019

ओमकार




यह सुबह, यह वृक्षों में शांति, पक्षियों की चहचहाहट... या कि हवाओं का वृक्षों से गुजरना, पहाड़ों का सन्नाटा... या कि नदियां का पहाड़ों से उतरना... या सागरों में लहरों की हलचल, नाद... या आकाश में बादलों की गड़गड़ाहटयह सभी ओमकार है


ओमकार का अर्थ है : सारध्वनि; समस्त ध्वनियों का सारओमकार कोई मंत्र नहीं, सभी छंदों में छिपी हुई आत्मा का नाम हैजहां भी गीत है, वहां ओमकार हैजहां भी वाणी है, वहां ओमकार है जहां भी ध्वनि है, वहां ओमकार है

और यह सारा जगत ध्वनियों से भरा हैइस जगत की उत्पत्ति ध्वनि में हैइस जगत का जीवन ध्वनि में है; और इस जगत का विसर्जन भी ध्वनि में है
         
ओम से सब पैदा हुआ, ओम में सब जीता, ओम में सब एक दिन लीन हो जाता हैजो प्रारंभ है, वही अंत हैऔर जो प्रारंभ है और अंत है, वही मध्य भी हैमध्य अन्यथा कैसे होगा!
       
       
इंजील कहती है : प्रारंभ में ईश्वर था और ईश्वर शब्द के साथ था, और ईश्वर शब्द था, और फिर उसी शब्द से सब निष्पन्न हुआवह ओमकार की ही चर्चा है
       
       
मैं बोलूं तो ओमकार हैतुम सुनो तो ओमकार हैहम मौन बैठें तो ओमकार हैजंहा लयबद्धता है, वहीं ओमकार हैसन्नाटे में भीस्मरण रखनाजंहा कोई नाद नहीं पैदा होता, वहा भी छुपा हुआ नाद हैमौन का संगीत का संगीत शून्य का संगीतजब तुम चुप हो, तब भी तो एक गीत झरझर बहता हैजब वाणी निर्मित नहीं होती, तब भी तो सूक्ष्म में छंद बंधता हैअप्रकट है, अव्यक्त है; पर है तो सहीतो शून्य में भी और शब्द में भी ओमकार निमज्जित है

       
ओमकार ऐसा है जैसे सागरहम ऐसे हैं जैसे सागर की मछली

इस ओमकार को समझना इस ओमकार को ठीक से समझा नहीं गया हैलोग तो समझे कि एक मंत्र है, दोहरा लियायह दोहराने की बात नहीं हैयह तो तुम्हारे भीतर जब छंदोबद्धता पैदा हो, तभी तुम समझोगे ओमकार क्या हैहिंदू होने से नहीं समझोगेवेदपाठी होने से नहीं समझोगेपूजा का थाल सजाकर ओमकार की रटन करने से नहीं समझोगेजब तुम्हारे जीवन में उत्सव होगा, तब समझोगेजब तुम्हारे जीवन में गान फूटेगा, तब समझोगेजब तुम्हारे भीतर झरने बहेगे, तब समझोगे

अथातो भक्ति जिज्ञासा 

ओशो



 

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