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Sunday, March 17, 2019

प्रार्थना का अर्थ

घटना कबीर के जीवन में है। एक बाजार से गुजरते हैं। एक बच्चा अपनी मां के साथ बाजार आया है। मां तो शाक-सब्जी खरीदने में लग गई और बच्चा एक बिल्ली के साथ खेलने में लग गया है। वह बिल्ली के साथ खेलने में इतना तल्लीन हो गया है कि भूल ही गया कि बाजार में हैं; भूल ही गया कि मां का साथ छूट गया है; भूल ही गया कि मां कहां गई।


कबीर बैठे उसे देख रहे हैं। वे भी बाजार आए हैं, अपना जो कुछ कपड़ा वगैरह बुनते हैं, बेचने। वे देख रहे हैं। उन्होंने देख लिया है कि मां भी साथ थी इसके और वे जानते हैं कि थोड़ी देर में उपद्रव होगा, क्योंकि मां तो बाजार में कहीं चली गई है और बच्चा बिल्ली के साथ तल्लीन हो गया है। अचानक बिल्ली न छलांग लगाई। वह एक घर में भाग गई। बच्चे को होश आया। उसने चारों तरफ देखा और जोर से आवाज दी मां को। चीख निकल गई। दो घंटे तक खेलता रहा, तब मां की बिल्कुल याद न थी..क्या तुम कहोगे?


कबीर अपने भक्तों से कहतेः ऐसी ही प्रार्थना है, जब तुम्हें याद आती है और एक चीख निकल जाती है। कितने दिन खेलते रहे संसार में, इससे क्या फर्क पड़ता है? जब चीख निकल जाती है, तो प्रार्थना का जन्म हो जाता है।


तब कबीर ने उस बच्चे का हाथ पकड़ा, उसकी मां को खोजने निकले। तब कोई सदगुरु मिल ही जाता है जब तुम्हारी चीख निकल जाती है। जिस दिन तुम्हारी चीख निकलेगी, तुम सदगुरु को कहीं करीब ही पाओगे..कोई फरीद, कोई कबीर, कोई नानक, तुम्हारा हाथ पकड़ लेगा और कहेगा कि हम उसे जानते हैं भलीभांति; हम उस घर तक पहुंच गए हैं, हम तुझे पहुंचा देते हैं।

 
प्रार्थना का अर्थ हैः याद, कि अरे, मैं कितनी देर तक भूला रहा! प्रार्थना का अर्थ हैः स्मृति, कि अरे, मैंने कितनी देर तक विस्मरण किया! प्रार्थना का अर्थ हैः याद, कि अरे, क्या यह भी संभव है कि इतनी देर तक याद भूल गई थी! तब एक चीख निकल जाती है। तब आंखें आंसुओं से भर जाती हैं; हृदय एक नई अभीप्सा से! तब सारा संसार पड़ा रह जाता हैः रेत के घर-घुले हैं! फिर तो जब तक मां न मिल जाए, तब तक चैन नहीं।

अकथ कहानी प्रेम की 


ओशो


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