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Monday, February 15, 2016

जीवन का पुनर्जन्‍म

जिसने कभी एक को प्रेम नहीं किया। उसके जीवन में परमात्‍मा की कोई शुरूआत ही नहीं हो सकती, क्‍योंकि प्रेम के ही क्षण में पहली दफा कोई व्‍यक्‍ति परमात्‍मा हो जाता है। वह पहली झलक है प्रभु की। फिर उसी झलक को आदमी बढ़ता है, और एक दिन वही झलक पूरी हो जाती है। सारा जगत उसी रूप में स्थांतरित हो जाता है। लेकिन जिसने पानी की कभी बूंद नहीं देखी। वह कहता है पानी की बूंद से मुझे कोई मतलब नहीं है। पानी की बूंद का मैं क्‍या करूंगा। तुमने पानी की बूंद भी नहीं देखी, पानी की बूंद भी नहीं जानी, नहीं समझी, नहीं चखी। और चले हो सागर को खोजने। तो तूम पागल हो। क्‍योंकि सागर क्‍या है? पानी की अनंत बूँदों का जोड़।


परमात्‍मा क्‍या है? प्रेम की अनंत बूँदों का जोड़ हे। तो प्रेम की अगर एक बूंद निंदित है तो पूरा परमात्‍मा निंदित हो गया। फिर हमारे झूठे परमात्‍मा खड़े होंगे, मूर्तियां खड़ी होंगी। पूजा पाठ होंगे,सब बकवास होगी। लेकिन हमारे प्राणों का कोई अंतर संबंध उससे नहीं हो सकता। और यह भी ध्‍यान में रख लेना जरूरी है कि कोई स्‍त्री अपने पति को प्रेम करती है, जीवन साथी को प्रेम करती है, तभी प्रेम के कारण पूर्ण प्रेम के कारण ही वह ठीक अर्थों में मां बन पाती है। बच्‍चे पैदा कर लेने मात्र से कोई मां नहीं बन जाती। मां ता कोई स्‍त्री तभी बनती है और पिता कोई पुरूष तभी बनता है जब कि उन्‍होंने एक दूसरे को प्रेम किया हो।


जब पत्‍नी अपने पति को प्रेम करती है, अपने जीवन साथी को प्रेम करती है तो बच्‍चे उसे अपने पति का पुनर्जन्‍म मालूम पड़ते है। वह फिर वही शक्‍ल है,फिर वही रूप है। फिर वहीं निर्दोष आंखे है। जो उसके पति में छिपी थी। फिर प्रकट हुई है। उसने अगर अपने पति को प्रेम किया है। तो वह बच्‍चे को प्रेम कर सकती है। बच्‍चे को किया गया प्रेम, पति को किया गया प्रेम की प्रतिध्‍वनि है। यह पति ही फिर वापस लौट आया है। बच्‍चे का रूप लेकर। बच्‍चे को किया गया प्रेम, पति फिर पवित्र और नया हो कर वापस लोट आया है।


लेकिन अगर पति के प्रति प्रेम नहीं है तो बच्‍चे के प्रति कैसे हो सकता है।


बाप भी तभी कोई बनता है जब वह अपनी पत्‍नी को इतना प्रेम करता है। कि पत्‍नी भी उसे परमात्‍मा दिखाई देती है। तब बच्‍चा फिर से पत्‍नी का ही लोटा हुआ रूप है। पत्‍नी को जब उसने पहली बार देखा था। तब वह जैसी निर्दोष थी, तब वह जैसी शांत थी। तब जैसी सुंदर थी, तब उसकी आंखे जैसी झील की तरह थी। इस बच्‍चे में वापस लोट आई है। इन बच्‍चों में फिर वही चेहरा वापस लौट आया है। ये बच्‍चे फिर उसी छवि में नये होकर आ गये है जैसे पिछले बसंत में फूल खिले थे। पिछले बसंत में पत्‍ते आये थे। फिर साल बीत गया। पुराने पत्‍ते गिर गये है। फिर नयी कोंपलें निकल आयी है। फिर नये पत्‍तों से वृक्ष भर गया है। फिर लौट आया है बसंत। फिर सब नया हो गया है। लेकिन जिसने पिछले बसंत को ही प्रेम नहीं किया था। वह इस बसंत को कैसे प्रेम कर सकेगा।


जीवन निरंतर लोट रहा है। निरंतर जीवन का पुनर्जन्‍म चल रहा है। रोज नया होता चला जाता है। पुराने पत्‍ते गिर जाते है। नये आ जाते है। जिसने पिछले बसंत को प्रेम नहीं किया इस बसंत को कैसे कर सकता है?

संभोग से समाधी की ओर 

ओशो 

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