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Saturday, February 13, 2016

बच्चो के लिए उपाय

मेरे एक अमरीकी संन्यासी हैं एक बन्दूक लिये घूमते थे। और उसको छिपाए रखते थे। मगर बड़ी बन्दूक थी, लाख छिपाए तो भी दिखाई पड़ जाती थी लोगों को। और छिपाने की कोशिश के कारण और लोगों को सन्देह हुआ कि बात क्या है? बन्दूक छिपानी क्यों? अगर रखनी है तो रखो मगर छिपाने की क्या कोशिश? वह एक बड़े झोले में उस बन्दूक को रखकर कन्धे पर लटकाए रखते थे। लेकिन किसी ने झांककर देख लिया। और उसने देखा कि वह बाजार में भी जाते हैं तो बन्दूक झोले में लटकाए रखते हैं। उन मित्रों ने शीला को खबर की कि यह आदमी खतरनाक मालूम होता है। यह आदमी बन्दूक लिये चलता है। शीला ने उस बेचारे संन्यासी को बुलाया और कहा कि भई, दिन रात बन्दूक रखने का क्या प्रयोजन है?  तब भी वह झोला अपने कन्धे पर लटकाए थे। वह आदमी कहने लगा, मैं ऐसी मुसीबत में हूं कि जिसका हिसाब नहीं। न लटकाऊं तो बनती नहीं, लटकाऊं तो मुसीबत है। ये मेरे छोटे छोकरे को देखती हो? यह असली बन्दूक नहीं है, खिलौना है निकालकर उन्होंने बन्दूक बतायी, खिलौना है मगर इतनी बड़ी है कि इससे ढोयी नहीं जाती। और यह दुष्ट बिना इस बन्दूक के हिलता नहीं! जब तक यह बन्दूक साथ न हो, यह चलनेवाला नहीं। और मैं फंस गया हूं इसको यहां ले आया हूं! मैंने सोचा था कि इसकी भी यात्रा हो जाएगी, मगर यह मेरी जान लिये ले रहा है! रात को भी उठ उठकर देख लेता है कि बन्दूक इसके बिस्तर पर लेटी है कि नहीं? और बन्दूक इतनी बड़ी है कि खुद तो लेकर चल सकता नहीं, सो मुझे लेकर चलना पड़ रहा है। बाजार में भी लोग देखते हैं गौर से मुझे कि यह आदमी बन्दूक क्यों लिए है? और चूंकि लोग गौर से देखते हैं, मैं छिपाता हूं। मैं छिपाता हूं तो लोग और गौर से देखते हैं। और मैं छिपाता हूं तो यह छोकरा झोले में झांक झांककर देखता है कि बन्दूक है या नहीं?


बुद्ध ने कहा : सद्गुरुओं का एक ही काम है बच्चों के लिए उपाय खोजना डिवाइसेज। वे उपाय उतने ही झूठ होते हैं जितने बच्चों के खिलौने। जैसे एक कांटे से हम दूसरे कांटे को निकाल लेते हैं और फिर दोनों काटो को फेंक देते हैं, वैसे ही एक झूठ एक दूसरे झूठ को निकाल जाता है और फिर दोनों को फेंक दिया जाता है।


अब मां को तो पता है कि बोझ ही ढो रहा है यह बच्चा! मगर करो क्या! इस बच्चे को अभी यह समझाना कि यह सिर्फ खिलौना है, गलत होगा, बेमानी होगा; इसे समझ में न आएगा, यह रोएगा; इसके लिए तो कोई उपाय खोजना पडेगा।


लगन मुहूरत सब झूठ 

ओशो 

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