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Thursday, July 14, 2016

कल्पवृक्ष

मैंने सुना है, एक आदमी भटकता हुआ, भुला-चुका कल्पवृक्ष के नीचे पहुंच गया। उसे पता नहीं कि कल्पवृक्ष है। थका-मांदा था तो लेटने की इच्छा थी, थोड़ा विश्राम कर ले। मन में ऐसा खयाल उठा कि काश इस समय कहीं कोई सराय होती, थोड़ी गद्दीत्तकिया मिल जाता! ऐसा उस का सोचना था कि तत्क्षण सुंदर शैया, गददीत्तकिए अचानक प्रकट हो गए! वह इतना थका था कि उसे सोचने का भी मौका नहीं मिला, उस ने यह भी नहीं सोचा कि ये कहां से आए, कैसे आए अचानक! गिर पड़ा बिस्तर पर सौ गया। जब उठा ताजा-स्वस्थ थोड़ा हुआ, सोचा कि बड़ी भूख लगी है, वहीं से भोजन मिल जाता। ऐसा सोचना था कि भोजन के थाल आ गए। भूख इतनी जोर से लगी थी कि अभी भी उसने विचार नहीं किया कि यह सब घटना कैसे घट रही है! भोजन जब कर चुका, तब जरा विचार उठा! नींद से सुस्ता लिया था, भोजन से तृप्त हुआ था, सोचा कि मामला क्या है, कहां से यह बिस्तर आया? मैंने तो सिर्फ सोचा था! कहां से यह सुंदर सुस्वादु भोजन आए, मैंने तो सिर्फ सोचा था! आसपास कहीं भूत-प्रेत तो नहीं हैं?…कि भूत-प्रेम चारों तरफ खड़े हो गए। वह घबड़ाया कहा कि अब मारे गए! बस उसी में मारा गया।


कल्पवृक्ष के नीचे तत्क्षण…समय का व्यवधान नहीं होता। ये किन्होंने बनाए होंगे कल्पवृक्ष? कामियों ने। ये चार्वाक वादियों की आकांक्षाएं हैं। साधारण चार्वाकवादी, साधारण नास्तिक तो इस पृथ्वी से राजी है। लेकिन असाधारण चार्वाकवादी हैं, उनको यह पृथ्वी काफी नहीं है; उन्हें स्वर्ग चाहिए, बहिश्त चाहिए, कल्पवृक्ष चाहिए। अलग-अलग धर्मों के अगर स्वर्गों की तुम कथाएं पढ़ोगे, तो तुम चकित हो जाओगे। उनके स्वर्ग में वही सब कुछ है जिसका वे धर्म यहां विरोध कर रहे हैं–वही सब, जरा भी फर्क नहीं है! यह कैबरे नृत्य का विरोध हो रहा है और इंद्र की सभा मैं कैबरे नृत्य के सिवाय कुछ नहीं हो रहा है! और उस इंद्र लोक में जाने की आकांक्षा है। उसके लिए लोग धूनी रमाए बैठे हैं, तपश्चर्या कर रहे हैं, सिर के बल खड़े हैं, उपवास कर रहे हैं। सोचते हैं कि चार दिन की जिंदगी है, इसे दांव पर लगाकर, तपश्चर्या कर के एक बार पा लो, स्वर्ग तो अनंत-कालीन। तुम्हें वे नासमझ समझते हैं, क्योंकि तुम क्षणभंगुर के पीछे पड़े हो; स्वयं को समझदार समझते हैं, क्योंकि वे शाश्वत के पीछे पड़े हैं। तुमसे वे बड़े चार्वाकवादी हैं। खाओ, पियो और मौज उड़ाओ–यही उनके जीवन का लक्ष्य भी है; यहीं नहीं आगे भी, परलोक में भी।
 
उनके परलोक की कथाएं तुम पढ़ो, तो वृक्ष हैं वहां जिनमें सोने और चांदी के पत्ते हैं, और फूल हीरे जवाहरातों के हैं। ये किस तरह के लोग हैं! हीरे-जवाहरातों सोने चांदी को यहां गालियां दे रहे हैं, और जो उनको छोड़कर जाता है उसका सम्मान कर रहे हैं। और स्वर्ग में यही मिलेगा। जो यहां छोड़ोगे, वह अनंत गुना वहां मिलेगा। तो जो यहां छोड़ता है, अनंत गुना पाने को छोड़ता है। और जिस में अनंत गुना पाने की आकांक्षा है, वह क्या खाक छोड़ता है!


अमी झरत बिसगत कंवल

ओशो 


 

 

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