Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Saturday, July 2, 2016

प्रतीक

कश्मीर में एक शिवलिंग है, प्राकृतिक शिवलिंग, जो कि अपने आप उभरता है जब बर्फ गिरती है। यह बर्फ का शिवलिंग है। एक गुफा में बर्फ पड़ने से यह शिवलिंग निर्मित हो जाता है। वह शिवलिंग ध्यान के लिए श्रेष्ठतम है क्योंकि वह इतना ठंडा है चारों तरफ से कि वह उस आंतरिक घटना की झलक देता है, जब तुम्हारे भीतर, तुम्हारी चेतना में शिवलिंग प्रकट होता है, जब वह एक चित्र, एक प्रतीक, एक दर्शन बनता है।

ये प्रतीक सदियों सदियों की मेहनत और प्रयास से खोजे गये हैं। वे मन की एक विशेष दशा की ओर इशारा करते हैं। मेरे लिए, सभी पौराणिक देवी देवता व्यक्तिगत रूप से अर्थपूर्ण हैं। बाहर वे कहीं भी नहीं पाये जाते। और यदि तुम उन्हें बाहर पाने का प्रयास करो तो तुम अपनी ही कल्पना के शिकार हो जाओगे। क्योंकि तुम उन्हें पा सकते हो, तुम इतनी त्वरा से उन्हें प्रक्षेपित कर सकते हो कि तुम उन्हें पा भी सकते हो।

मनुष्य की कल्पना इतनी शक्तिशाली है, उसमें इतनी अधिक शक्ति है कि यदि तुम सतत किसी चीज की कल्पना करो तो तुम उसे अपने चारों ओर अनुभव कर सकते हो। तब तुम उसे देख भी सकते हो, तब तुम उसे पा भी सकते हो। वह एक वस्तु की तरह हो जायेगा। वह वस्तु की तरह है नहीं, लेकिन तुम उसे अपने बाहर अनुभव कर सकते हो। इसलिए कल्पना के साथ खेलना खतरनाक है, क्योंकि तब तुम अपनी ही कल्पना से सम्मोहित हो सकते हो, और तुम ऐसी चीजें देख और महसूस कर सकते हो जो कि वास्तव में नहीं हैं।


यह एक अपनी निजी कल्पना निर्मित करना है, एक सपनों का संसार बनाना है, यह एक तरह की विक्षिप्तता है। तुम कृष्ण को देख सकते हो, तुम क्राइस्ट को देख सकते हो, तुम बुद्ध को देख सकते हो, लेकिन यह सारी मेहनत बेकार है क्योंकि तुम सपने देख रहे हो न कि सत्य।


इसीलिए मेरा जोर सदा इस बात पर है कि ये पौराणिक आकृतियां सिर्फ प्रतीक हैं। वे अर्थपूर्ण हैं, वे काव्यात्मक हैं, उनकी अपनी एक भाषा है। वे कुछ कहती हैं, उनका कुछ अर्थ है, किंतु वे कोई वास्तविक व्यक्तित्व नहीं हैं। यदि तुम इस बात को स्मरण रख सको तो तुम उनका सुंदरता से उपयोग कर सकते हो। वे बहुत सहायक सिद्ध हो सकते हैं। किंतु यदि तुम उन्हें वास्तविक की तरह सोचते हो तो फिर वे हानिकारक सिद्ध होंगे, और धीरे— धीरे तुम एक स्वम्मलोक में चले जाओगे और तुम वास्तविकता से संबंध खो दोगे। और वास्तविकता से संबंध खोने का अर्थ है विक्षिप्त हो जाना। सदा वास्तविकता से संबंध बनाये रखो। फिर भी वस्तुगत वास्तविकता को भीतर की आत्मगत वास्तविकता को नष्ट मत करने दो। भीतर के जगत में सजग तथा सचेत रहो, लेकिन उन दोनों को मिलाओ मत।


यह हो रहा है. या तो हम बाहरी वस्तुगत सत्य को भीतर की आत्मगत वास्तविकता को नष्ट करने देते हैं, अथवा हम आत्मगत सत्य को वस्तुगत वास्तविकता पर प्रक्षेपित कर देते हैं, और तब वस्तुगत खो जाता है। ये दो अतियां हैं। विज्ञान वस्तुगत के बारे में सोचता रहता है और सब्जेक्टिव को, आत्मगत को इनकार करता रहता है, और धर्म आत्मगत की बात करता रहता है और वस्तुगत को इनकार करता रहता है।


मैं दोनों से बिलकुल भिन्न हूं। मेरा जोर इस बात पर है कि वस्तुगत वस्तुगत है और उसे वस्तुगत ही रहने दो, और आत्मगत आत्मगत है, उसे आत्मगत ही रहने दो। उन दोनों की शुद्धता बनाये रखो, और तुम ऐसा करके पहले से अधिक बुद्धिमान रहोगे। यदि तुम उन्हें मिला दोगे, यदि तुम उनमें भ्रम पैदा कर लोगे तो तुम विक्षिप्त हो जाओगे, तुम्हारा संतुलन डगमगा जायेगा।

केनोपनिषद 

ओशो 


No comments:

Post a Comment

Popular Posts