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Friday, May 5, 2017

बुद्ध के जीवन में उल्लेख है...



    बुद्ध को सभी सुख उपलब्ध थे, जो आप खोज सकते हैं। लेकिन सभी सुख उपलब्ध होने में एक बड़ा खतरा हो जाता है। और वह खतरा यह हो जाता है कि भविष्य की आशा नहीं रह जाती है।

दुख में एक सुविधा है, भविष्य में आशा रहती है। जो कार आप चाहते हैं, वह कल मिल सकती है, आज, अभी नहीं मिल सकती। श्रम करेंगे, पैसा जुटाएंगे, चोरी करेंगे, बेईमानी करेंगे, कुछ उपाय करेंगे। कल, समय चाहिए। जो मकान आप बनाना चाहते हैं, वक्त लेगा।

लेकिन बुद्ध को एक मुसीबत हो गई, एक अभिशाप, जो वरदान सिद्ध हुआ। उनके पास सब था, इसलिए भविष्य का कोई उपाय न रहा। जो भी था, वह था। महल बड़े से बड़े उनके पास थे। स्त्रियां सुंदर से सुंदर उनके पास थीं। धन जितना हो सकता था, उनके पास था। जो भी हो सकता था उस जमाने में श्रेष्ठतम, सुंदरतम, वह सब उनके पास था।

बुद्ध मुश्किल में पड़ गए। क्योंकि आशा का कोई उपाय न रहा। होप समाप्त हो गई। इससे बड़ा मकान नहीं हो सकता; इससे सुंदर स्त्री नहीं हो सकती; इससे ज्यादा धन नहीं हो सकता। बुद्ध की तकलीफ यह हो गई कि उनके पास सब था, इसलिए भविष्य गिर गया। और दुख दिखाई पड़ गया कि सब दुख है। वे भाग खड़े हुए। 

यह बड़े मजे की बात है, सुख में से लोग जाग गए हैं, भाग गए हैं, और दुख में लोग चलते चले जाते हैं! सुख में लोग इसलिए भाग खड़े होते हैं कि दिखाई पड जाता है कि अब और तो कुछ हो नहीं सकता। जो हो सकता था, वह हो गया, और कुछ हुआ नहीं। और भीतर दुख ही दुख है। भविष्य कुछ है नहीं। आशा बंधती नहीं। आशा टूट जाती है। आशा के सब सेतु गिर गए। बुद्ध भाग गए।

जब बुद्ध भाग रहे हैं, तो उनका सारथी उनसे कहता है कि आप क्या पागलपन कर रहे हैं! सारथी गरीब आदमी है। उसको अभी आशाएं हैं। वह प्रधान सारथी भी हो सकता है। वह सम्राट का सारथी हो सकता है। अभी राजकुमार का सारथी है। अभी बड़ी आशाएं हैं। वह बुद्ध को कहता है कि मैं का आदमी हूं; मैं तुम्हें समझाता हूं; तुम गलती कर रहे हो। तुम नासमझी कर रहे हो। तुम अभी यौवन की भूल में हो। लौट चलो। इतने सुंदर महल कहा मिलेंगे? इतनी सुंदर पत्नियां कहां मिलेंगी? इतना सुंदर पुत्र कहा पाओगे? तुम्हारे पास सब कुछ है, तुम कहा भागे जा रहे हो!

वह सारथी और बुद्ध के बीच जो बातचीत है, वह सारथी गलत नहीं कहता। वह अपने हिसाब से कहता है। उसको अभी आशाओं का जाल आगे खड़ा है। ये महल उसे भी मिल सकते हैं भविष्य में। ये सुंदर स्त्रियां वह भी पा सकता है। अभी दौड़ कायम है। उसे बुद्ध बिलकुल नासमझ मालूम पड़ते हैं कि यह लड़का बिलकुल नासमझ है। यह बच्चों जैसी बात कर रहा है। जहां जाने के लिए सारी दुनिया कोशिश कर रही है, वहां से यह भाग रहा है! आखिरी क्षण में भी वह कहता है कि एक बार मैं तुमसे फिर कहता हूं लौट चलो। महलों में वापस लौट चलो।

तो बुद्ध कहते हैं, तुझे महल दिखाई पड़ते हैं, क्योंकि तू उन महलों में नहीं है। मुझे वहा सिर्फ आग की लपटें और दुख दिखाई पड़ता है। क्योंकि मैं वहां से आ रहा हूं। मैं उनमें रहकर आ रहा हूं। तू उनके बाहर है। इसलिए तुझे कुछ पता नहीं है। तू मुझे समझाने की कोशिश मत कर।

बुद्ध महल छोड़ देते हैं। और छ: वर्ष तक बड़ी कठिन तपश्चर्या करते हैं परमात्मा को, सत्य को, मोक्ष को पाने की। लेकिन छ: वर्ष की कठिन तपश्चर्या में भी न मोक्ष मिलता, न परमात्मा मिलता, न आत्मा मिलती।

बुद्ध की कथा बड़ी अनूठी है। छ: वर्ष वे, जो भी कहा जाता है, करते हैं। जो भी साधना—पद्धति बताई जाती है, करते हैं। उनसे गुरु घबड़ाने लगते हैं। अक्सर शिष्य गुरु से घबड़ाते हैं, क्योंकि गुरु जो कहता है, वे नहीं कर पाते। लेकिन बुद्ध से गुरु घबड़ाने लगते हैं। गुरु उनको कहते हैं कि बस, जो भी हम सिखा सकते थे, सिखा दिया; और तुमने सब कर लिया। और बुद्ध कहते हैं, आगे बताओ, क्योंकि अभी कुछ भी नहीं हुआ। तो वे कहते हैं, अब तुम कहीं और जाओ।

जितने गुरु उपलब्ध थे, बुद्ध सबके पास घूमकर सबको थका डालते हैं। छ: वर्ष बाद निरंजना नदी के किनारे वे वृक्ष के नीचे थककर बैठे हैं। यह थकान बड़ी गहरी है। एक थकान तो महलों की थी कि महल व्यर्थ हो गए थे। महल तो व्यर्थ हो गए थे, क्योंकि महलों में कोई भविष्य नहीं था।

इसे थोड़ा समझें, बारीक है। महलों में कोई भविष्य नहीं था। सब था पास में, आगे कोई आशा नहीं थी। जब उन्होंने महल छोड़े, तो आशा फिर बंध गई; भविष्य खुला हो गया। अब मोक्ष, परमात्मा, आत्मा, शांति, आनंद, इनके भविष्य की मंजिलें बन गईं। अब वे फिर दौड़ने लगे। वासना ने फिर गति पकड़ ली। अब वे साधना कर रहे थे, लेकिन वासना जग गई। क्योंकि वासना भविष्य के कारण जगती है। वासना है, मेरे और भविष्य के बीच जोड़। अब वे फिर दौड़ने लगे।

ये छ: वर्ष, तपश्चर्या के वर्ष, वासना के वर्ष थे। मोक्ष पाना था। और आज मिल नहीं सकता, भविष्य में था। इसलिए सब कठोर उपाय किए, लेकिन मोक्ष नहीं मिला। क्योंकि मोक्ष तो तभी मिलता है, जब दौड़ सब समाप्त हो जाती है। वह भीतर का शून्य तो तभी उपलब्ध होता है, या पूर्ण तभी उपलब्ध होता है, जब सब वासना गिर जाती है।

यह भी वासना थी कि ईश्वर को पा लूं सत्य को पा लूं। जो चीज भी भविष्य की मांग करती है, वह वासना है। ऐसा समझ लें कि जिस विचार के लिए भी भविष्य की जरूरत है, वह वासना है। तो बुद्ध उस दिन थक गए। यह थकान दोहरी थी। महल बेकार हो गए। अब साधना भी बेकार हो गई। अब वे वृक्ष के नीचे थककर बैठे थे। उस रात उनको लगा, अब करने को कुछ भी नहीं बचा। महल जान लिए। साधना की पद्धतियां जान लीं। कहीं कुछ पाने को नहीं है। यह थका बड़ी गहरी उतर गई, कहीं कुछ पाने को नहीं है। इस विचार ने कि कहीं कुछ पाने को नहीं है, स्वभावत: दूसरे विचार को भी जन्म दिया कि कुछ करने को नहीं है।

गीता दर्शन 

ओशो 



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