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Thursday, June 22, 2017

कल आपने एक कालेज के युवकों द्वारा आयोजित नाटक में बताया कि सीता मैया सिगरेट पी रही थीं। क्या आपको सीता मैया को सिगरेट पीते देख कर धक्का नहीं लगा?



खयालीराम! जब तुमको तक धक्का लगा--और तुम केवल खयालीराम हो! न आयाराम, न गयाराम, न जगजीवनराम--खयालीराम! बस खयाल में ही राम हो! तुम तक को धक्का लग गया तो मुझको न लगेगा? अरे मुझको भी लगा। बहुत धक्का लगा। छाती में बिलकुल जैसे कोई छुरा मार दे।

धक्का लगने का कारण था। पहला तो यह कि सीता मैया पनामा सिगरेट पी रही थीं। यह बिलकुल ठीक नहीं। पनामा भी कोई सिगरेट है? न गधा, न घोड़ा--खच्चर समझो। अरे इससे तो बीड़ी भी पीतीं तो कम से कम स्वदेशी! कम से कम गांधी बाबा का सिद्धांत पूरा होता! अब पनामा सिगरेट, न तो बीड़ी, न कोई सिगरेट। कुछ आदमी पीते हैं। आदमी क्या, जिनको पजामा समझो! पनामा सिगरेट! कम से कम सीता मैया को भी पिलानी थी तो पांच सौ पचपन! अमरीकी सिगरेट होती कोई, इंपोर्टेड होती। पांच सौ पचपन सिगरेट का टाइम में विज्ञापन निकलता है--दि टेस्ट ऑफ सक्सेस! सफलता का स्वाद! और सीता मैया से ज्यादा सफल और कौन? अरे राम जी पा गईं, अब और क्या पाने को बचा!

तो जब मुझे पता चला कि पनामा सिगरेट पी रही थीं तो बहुत दुख हुआ। और जिस गाड़ी में से उतरीं, वह भी एंबेसेडर गाड़ी! शर्म भी खाओ! संकोच भी खाओ! सीता मैया को एंबेसेडर गाड़ी में बिठाओगे? चलो धोबियों का बहुत डर भी रहा हो, न बिठालते रॉल्स रॉयस में, क्योंकि धोबी बड़े दुशट! कोई धोबी एतराज उठा दे। धोबियों को तो दिखाई ही पड़ते हैं धब्बे! लोगों की चादरें वगैरह धोते-धोते उनको धब्बे ही धब्बे दिखाई पड़ते हैं। चांद-सूरज में भी जब जिसने पहली दफे धब्बे देखे होंगे, वह धोबी रहा होगा। सीता मैया तक में उनको धब्बे दिखाई पड़े! तो कोई धोबी हो सकता है एतराज उठाता। उठाने दो, धोबियों से क्या बनता-बिगड़ता है!

मगर जब राम जी डर गए थे तो बेचारे कालेज के छोकरे, वे भी डरे होंगे। नहीं तो कम से कम इंपाला तो ले आते। सीता मैया को एंबेसेडर गाड़ी में बिठाया। एंबेसेडर गाड़ी में अगर गर्भवती स्त्री को बिठा लो तो जच्चा-अस्पताल के पहले ही बच्चा हो जाता है। और सीता मैया को दो-दो बच्चे पेट में थे, कुछ तो सोचो! दुख हुआ, बहुत दुख हुआ। छाती में छुरी लग गई!

खयालीराम, तुमने ठीक प्रश्न पूछा। कालेज के नालायक छोकरे ही ऐसा कर सकते हैं--जिनको न भारत के गौरव की कोई समझ है, न धर्म की कोई प्रतिशठा जिनके मन में है। नहीं तो ऐसा कहीं करते हैं!

लेकिन खयालीराम, भारत को थोड़ी क्षमता चाहिए व्यंग्य को समझने की, थोड़ा हंसने की क्षमता चाहिए। भारत भूल ही गया हंसने की कला। यहां बिलकुल चेहरे मातमी हो गए हैं।

तो मैं इस लिहाज से कुछ खुश हुआ कि चलो कुछ बात तो हंसने की हुई। मगर लोग ऐसे मूढ़ हैं कि चढ़ गए मंच पर, फिर उन्होंने न यह देखा कि सीता मैया हैं कि रामचं( जी, पिटाई-कुटाई कर दी। रामचं( जी और सीता मैया की पिटाई-कुटाई! अब यह तो हद्द हो गई! इससे मुझे और भी दुख पहुंचा। पनामा सिगरेट भी ठीक है, चलो एंबेसेडर गाड़ी भी ठीक है। जो हुआ सो हुआ। छोटी-मोटी भूलें थीं। मगर लोगों ने पिटाई कर दी। यह भी न देखा कि अब सीता मैया, कुछ भी हो, हैं तो सीता मैया! रामचं( जी माना कि टाई बांधे हुए थे और सूट पहने हुए थे, यह बात जंचती नहीं; मगर आधुनिक समय में इसमें क्या एतराज हो सकता है? और नाटक का नाम ही था: आधुनिक रामलीला!

मगर गांव के मूढ़, उन्होंने आग लगा दी, मंच जला दिया, परदे फाड़ डाले, पिटाई-कुटाई कर दी। इस बात से भी हमें थोड़ा समझना चाहिए कि इस देश में हंसने की क्षमता चली गई है। हमारा बोध ही चला गया है। हम बस गंभीर ही होना जानते हैं। और गंभीर होना कोई अच्छा लक्षण नहीं है--बीमारी का लक्षण है।

मैंने सुना है, पिकासो ने एक भारतीय की तसवीर बनाई, पोर्ट्रेट बनाया और एक मित्र को दिखाया। मित्र था डाक्टर। आधा घंटे तक देखता रहा। इधर से देखे, उधर से देखे। देखे ही नहीं, तसवीर को दबाए भी। पीछे भी गया तसवीर के।

पिकासो ने कहा: हद्द हो गई! बहुत देखने वाले देखे। तस्वीर के पीछे क्या कर रहे हो? और तस्वीर देखते हो कि दबाते हो?

उसने कहा कि इस आदमी को अपैंडिक्स की बीमारी है। इसके चेहरे से साफ जाहिर हो रहा है। यह बड़े दर्द में है।

पिकासो ने कहा: महाराज, दर्द वगैरह में नहीं है, यह भारतीय है। 

यह तो भारतीयों का बिलकुल राशट्रीय लक्षण है कि ऐसे गंभीर रहे आते हैं कि जैसे अपैंडिक्स में दर्द हो, कि प्राण निकले जा रहे हैं। हंसते भी हैं तो इतनी कंजूसी, जिसका हिसाब नहीं।

रहिमन धागा प्रेम का 

ओशो 

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