Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Friday, June 9, 2017

मैं क्या करूं? मेरो मन बड़ो हरामी!




संत! तुम पुराने संतों जैसी ही बात कह रहे हो। मेरो मन बड़ो हरामी! 

मन को गाली न दो! मन का उपयोग करना सीखो। मन एक बहुमूल्य यंत्र है। इससे अदभुत कोई यंत्र नहीं। मन परमात्मा की परम भेंट है तुम्हें। इसी मन से तुम चाहो तो संसार में उलझ जाओ और इसी मन से तुम चाहो तो संसार से सुलझ जाओ। इसी मन से तुम चाहो तो नरक की सीढ़ियों में उतर जाओ और इसी मन से तुम चाहो तो स्वर्ग तुम्हारा है। इसको हरामी न कहो! मन तुम्हें नहीं भटकाता, तुम भटकना चाहते हो, मन संगी-साथी हो जाता है। मन तुम्हारा नौकर है, तुम्हारा चाकर है। तुम चोरी करो तो मन चोरी के उपाय बताने लगता है और तुम भजन गाओ तो मन भजन निर्माण करने लगता है। पूजा करो तो मन अर्चना बन जाता है, पाप करो तो मन पाप बन जाता है। लेकिन मनुष्य की एक बहुत आधारभूत आदत है: दोष किसी पर डालना; दोष अपने पर नहीं लेना।

अब देखो संत, तुम कहते हो: "मैं क्या करूं?' 

तुमने अपने को अलग कर लिया। 

"मेरो मन बड़ो हरामी!

मन पर सब छोड़ दिया, कि मन है हरामी; मैं तो भला आदमी, मगर यह मन मुझे भटकाता है। तुमने मन से अपने को तोड़ लिया। तुमने मन पर दायित्व छोड़ दिया। यह तो हमारी तरकीब है। और इन्हीं तरकीबों के कारण तो हम उठ नहीं पाते, जग नहीं पाते। 

आदमी की आदत है: किसी न किसी पर दोष दे दे। कोई कहता है, भाग्य ही ऐसा है, क्या करें? कोई कहता है, परमात्मा ने ऐसा बनाया, हम क्या करें? कोई कहता है, मनुष्य तो प्रकृति के अधिकार में बंधा है। कार्ल माक्र्स कहता है कि मनुष्य तो समाज की व्यवस्था में जकड़ा है, क्या कर सकता है? सिगमंड फ्रायड कहता है कि मनुष्य तो अचेतन वृत्तियों के जाल में उलझा है, क्या कर सकता है? लेकिन सबकी बात का अर्थ एक ही है कि तुम जैसे हो, बस ऐसे ही रहोगे, कुछ हो नहीं सकता। क्योंकि दोष तुम्हारा है ही नहीं, दोष किसी और का है। उसको तुम नाम कुछ भी दे दो--अ ब स, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता।

मैं तुम्हें याद दिलाना चाहता हूं: मन तुम्हें नहीं भटकाता; तुम भटकना चाहते हो तो मन तुम्हें साथ देता है। तुम न भटकना चाहो तो मन तुम्हें उसमें साथ देगा। मन तो बड़ा प्यारा सेवक है। तुम क्रोध करना चाहो, मन क्रोध करता है। तुम करुणा करना चाहो, मन करुणा करता है। मन तो तुम्हारे पीछे चलता है। तुम उलटी बातें कर रहे हो। 

तुम कहते हो, मैं क्या करूं, यह छाया मुझे गलत जगह ले जाती है। छाया तुम्हारी है। तुम जहां जाते हो, वहां जाती है। लेकिन गाली तुम छाया को देते हो, कि मैं क्या करूं, यह छाया मुझे कल वेश्यागृह ले गई। माने ही न! बस एकदम वेश्यागृह की तरफ चलने लगी।

छाया तुम्हें वेश्यागृह ले जा सकती है? तुम गए वेश्यागृह, तो छाया को जाना पड़ा। तुम मंदिर गए होते, तो छाया मंदिर गई होती। मन तो तुम्हारी छाया है।

मैं तुम्हारी इस बात में सहयोग नहीं दे सकता। तुम अभी सोए हो, तुम अभी मूर्च्छित हो, इसलिए मन तुम्हें तुम्हारी मूर्च्छा में सहयोग देता है। तुम जरा जागो! मेरे पास भी मन है, मैं उसका उतना ही उपयोग कर रहा हूं जितना तुम--शायद उससे ज्यादा। बुद्ध के पास भी मन है। बुद्धत्व हो जाने के बाद, बयालीस साल तक निरंतर बुद्ध बोलते रहे। बिना मन के कैसे बोलेंगे? बिना मन के कौन बोलेगा? समझाते रहे; गांव-गांव, गली-गली, द्वारे-द्वारे दस्तक देते रहे। बिना मन के यह कौन करेगा? महावीर भी ज्ञानोपलब्धि के बाद चालीस वर्ष तक पहुंचाते रहे संदेश। बिना मन के कौन यह करेगा?

मन गालियां ही नहीं देता, गीत भी गाता है। अगर तुम गालियां ही गा रहे हो तो मन को गाली मत दो। मन तो अवश है। मन तो विवश है। मन तो तुम्हारा है। लेकिन हम एक चालबाजी कर लेते हैं, हम अपने को अलग कर लेते हैं। हम कहते हैं, हम तो अलग, हम तो बिलकुल दूध-धोए, और यह मन हरामी! यह कहता है ऐसा करो, तो करना पड़ता है। 

बात ऐसी नहीं है। जरा होश में आओ! जरा गौर से देखो! तुम मालिक हो, मन गुलाम है। तुम चूंकि मालिक की तरह सोए हुए हो, इसलिए मन भी करे तो क्या करे, वह तुम्हारा मालिक बन बैठा है। तुमने उसे मालिक बना दिया है। तुमने ही सोए रह कर उसे मालिक बना दिया है। तुम नौकर पर इतने निर्भर हो गए हो कि तुम नौकर से ही पूछते हो कि कहां जाएं? क्या करें?

प्रेम पंथ ऐसो कठिन 

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts