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Tuesday, June 7, 2016

प्रेम की पीड़ा

कुछ लोग प्रेम के कारण पीड़ित होते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं फलां व्यक्ति मुझे प्रेम करे। अब यह फलां व्यक्ति की स्वतंत्रता है कि तुम्हें प्रेम करे, या न करे। यह तुम्हारा आग्रह नहीं हो सकता। तुमने किसी के सामने जाकर और किसी के घर के सामने जाकर और बोरिया बिस्तर लगा दिया और कहा कि हम अनशन करेंगे, हम से प्रेम करो, हम सत्याग्रह करते है, नहीं तो हम मर जाएंगे।

ऐसा हुआ एक गांव में। एक आदमी ने ऐसा लगा दिया एक सुंदर युवती के द्वार पर। उसका बाप तो बहुत घबडाया सत्याग्रहियो से कौन नहीं घबड़ाता! और उसके दो चार साथी संगी भी थे, उन्होंने बाजार में जाकर खूब शोरगुल मचा दिया कि सत्याग्रह हो गया है। गांव भर उत्सुक हो गया, लोगों की भीड़ आने लगी, लोग उससे पूछने लगे कि क्या मामला है? वह बाप तो बहुत घबड़ाया। उसने कहा अब करना क्या है! शाम तक तो बहुत गांव में शोरगुल मच गया और सारा गांव उसके पक्ष में, क्योंकि उसने सत्याग्रह किया गांधीवादी। यह कोई पूछे नहीं कि सत्याग्रह किया किसलिए। अब मोरारजी ने अनशन किया था, किसी ने पूछा किसलिए किया था? वह गांधीवादी! कोई सत्ता पाने के लिए अनशन कर रहा है, यह तो बेचारा भला ही आदमी है, प्रेम पाने के लिए अनशन कर रहा है, कोई बुरा काम तो कर नहीं रहा है! लेकिन किसी ने यह सोचा ही नहीं कि वह युवती भी इसे प्रेम करती है या नहीं, अन्यथा यह जबर्दस्ती हो गई। सब तरह के सत्याग्रह जबर्दस्तिया है। उनके भीतर हिंसा है। ऊपर से अहिंसा का ढोंग है।

सांझ तक तो उसका बाप बहुत घबड़ा गया, उसने कहा ऐसा अगर चला तो… सारे गांव का दबाव पड़ने लगा, लोग फोन करने लगे, चिट्ठिया आने लगीं, अखबार में खबरें छप गइ, पोस्टर लग गए कि बहुत अन्याय हो रहा है, सत्याग्रही के साथ बहुत अन्याय हो रहा है, आमरण अनशन है, वह मर जाएगा। प्रेम के लिए ऐसा दीवाना कब देखा गया? मजनू ने भी ऐसा नहीं किया था। और बेचारा बिलकुल अहिंसक है! वहा बैठा है अपना खादी के कपड़े पहने हुए, कुछ बोलता नहीं, कुछ चलता नहीं, चुप बैठा है। किसी ने उस लड़की के बाप को सलाह दी कि अगर इससे निपटना हो तो एक ही रास्ता है, उससे ही निपट सकते हो। क्या रास्ता है? उसने कहा मैं हल कर देता हूं। वह भागा गया और एक बूढ़ी वेश्या को लिवा लाया। एक बिलकुल मरी मराई वेश्या। एक तो वेश्या और मरी मराई, उसको देखकर किसी का जी मिचला जाए, भयंकर बदबू उससे आ रही, उसको ले आया। उस युवक ने जब देखा, वह जो सत्याग्रह कर रहा था, उसने पूछा तू यहा किसलिए आई? उसने कहा मुझे तुम से प्रेम है। मैं भी यहीं सत्याग्रह करती हूं जब तक तुम मुझ से विवाह न करोगे, मर जाऊं भला! बस फिर घड़ी आधा घड़ी में युवक ने अपना बिस्तर समेटा और भागा। फिर सत्याग्रह समाप्त हो गया।

तो प्रेम तुम्हें कष्ट दे सकता है, अगर तुम जबर्दस्ती किसी पर थोपना चाहो। लेकिन यह प्रेम है? यह प्रेम ने कष्ट दिया, यह अहंकार ही है। यह हिंसा ने कष्ट दिया। तुम्हें हक नहीं है किसी पर अपना प्रेम थोपने का, न हक है जबर्दस्ती किसी से प्रेम मांगने का। प्रेम में जबर्दस्ती तो हो ही नहीं सकती। तो कष्ट पाओगे।

या, जिसे तुमने चाहा वह तुम्हें मिल गया। लेकिन मिलने के बाद तुमने उस पर बहुत अपने को आरोपित किया, तुमने उसे अपनी संपत्ति बनाना चाहा, तुमने उसके सब तरफ पहरे बिठा दिए, तुमने कहा, बस मुझ से प्रेम और किसी से भी नहीं, मेरे साथ हंसना और किसी और के साथ नहीं, और तुम बड़े भयभीत हो गए और तुम सुरक्षा करने लगे, और तुम सदा चिंता करने लगे और तुम जासूसी करने लगे और अगर तुमने अपनी पत्नी को या अपने पति को किसी के साथ हंसते और मुस्कुराते देख लिया तो तुम्हारे भीतर आग लग गई; इससे तुमने कष्ट पाया, इससे तुम पीड़ित हुए, लेकिन यह पीड़ित होने का कारण प्रेम नहीं है। दूसरे को संपत्ति मानने में ही पीड़ा है।
 
अथातो भक्ति जिज्ञासा 
 
ओशो 

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