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Friday, June 3, 2016

जागरूक लोकमत

 प्रत्येक को अपने ढंग से जीने दो। लोकतंत्र का अर्थ ही यह होता है: जब तक कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे के जीवन में बाधा न डालने लगे, तुम बाधा न बनो। लोकतंत्र का अर्थ नकारात्मक होता है।

और जो करने योग्य है, वह तो करेंगे नहीं। संतति-नियमन होना चाहिए, वह तो करेंगे नहीं। शराब-बंदी होना चाहिए। जैसे शराब बंद हो जायेगी तो देश की समस्याएं हल हो जायेंगी, तुम सोचते हो! गरीबी मिट जायेगी, बीमारी मिट जायेगी, अशिक्षा मिट जायेगी? गऊ-वध बंद हो जायेगा तो तुम सोचते हो देश की समस्याएं मिट जायेंगी, गरीबी मिट जायेगी? एकदम धन की वर्षा हो जायेगी? अगर ऐसा होता तो अमरीका जैसे देश को तो दुनिया का सबसे गरीब देश होना चाहिए, क्योंकि गऊ-हत्या चलती है।

लेकिन ये तरकीबें हैं तुम्हारे मन को उलझाने की। गऊ-हत्या की बंदी होनी चाहिए, यह सुनकर हिंदू खुश हो जाता है, वोट दे देता है। गऊ-हत्या होने से, नहीं होने से कोई समस्या का हल नहीं है। और याद रखना, मैं यह नहीं कह रहा हूं: गऊ-हत्या होनी चाहिए। लेकिन एक वातावरण होना चाहिए। सुसंस्कार की एक हवा पैदा होनी चाहिए। जोर-जबर्दस्ती नहीं। धर्म-परिवर्तन तक की आजादी नहीं है, और जयप्रकाश नारायण कहते हैं: यह दूसरी आजादी आ गयी। अब कोई हिंदू अगर ईसाई होना चाहे तो नहीं हो सकता। कोई ईसाई अगर हिंदू होना चाहे तो नहीं हो सकता। क्यों? यह कैसा देश है! लेकिन हिंदुओं को खुश करना है। जनसंघी सत्ता में पहुंच गये हैं, उनको खुश रखना है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जहर सत्ता में है; उसको खुश रखना है। तो अब कोई हिंदू ईसाई नहीं हो सकता।


लेकिन अगर कोई हिंदू ईसाई होना चाहे, तो क्यों रोक होनी चाहिए? कोई ईसाई हिंदू होना चाहे तो क्यों रोक होनी चाहिए? अगर कोई व्यक्ति अपने धर्म को भी नहीं चुन सकता, तो यह कैसा लोकतंत्र हुआ, यह कैसी विचार की स्वतंत्रता हुई?


आश्वासन तो कोई पूरे नहीं हुए। ये आश्वासन, जो कभी नहीं दिये थे, ये पूरे किये जा रहे हैं। ये किसी ने मांगे भी नहीं थे।


देश को एक बहुत जागरूक लोकमत बनाना चाहिए।

मेरा राजनीति से कुछ लेना-देना नहीं है। मैं चाहता भी नहीं कि मेरे संन्यासियों का राजनीति से कोई लेना-देना हो। लेकिन फिर भी मैं कहूंगा कि मेरे संन्यासी को देश में एक जागरूक लोकमत पैदा करने में सहयोगी होना चाहिए, क्योंकि समस्याएं तुम्हारी भी हैं। देश की समस्या तुम्हारी समस्या है। मैं नहीं कहता कि तुम चुनाव लड़कर और लोकसभा में पहुंच जाओ। नहीं! मगर जहां हो हवा पैदा करो, जागरूकता थोड़ी पैदा करो। लोगों को कहो कि समस्याएं, असली समस्याएं क्या हैं। असली समस्याओं का समाधान क्या हो सकता है। झूठी समस्याओं को बताओ कि ये झूठी समस्याएं हैं; इनमें आदमियों का मन उलझाया जाता है। तुम्हारा मन हटाने के लिए झूठी समस्याएं खड़ी कर दी जाती हैं।


और लोगों को इतना सजग करो कि जब वे मत देने जायें, तो जो कम-से-कम झूठ बोलता हो–यह तो मैं कह ही नहीं सकता कि जो सच बोलता हो उसको वोट देना क्योंकि वह तो मुश्किल है–जो कम-से-कम झूठ बोलता हो, जो कम-से-कम राजनैतिक हो, जो कम-से-कम पद लोलुप हो, उसको ही मत देना। इसकी हवा पैदा करो। और जिंदा लोगों को मत दो। मुर्दों को, जो कभी के मर चुके हैं, जिन्हें कब्रों में होना चाहिए था, वे चूड़ीदार पाजामा पहनकर, अचकन पहनकर सत्ता कर रहे हैं! जिंदगी को मत दो, जवानों को मत दो! इसकी हवा जरूर पैदा करो।

सहज योग 

ओशो 

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