Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Friday, June 24, 2016

नीति का आविर्भाव

अगर दस चोर भी चोरी में कोई संगठन कर लेते हैं, तो भी अपने भीतर एक नैतिकता की व्यवस्था उन्हें निर्मित करनी पड़ती है। दस चोरों को भी! समाज के साथ वे अनैतिक होते हैं, लेकिन अपने भीतर, उनके गिरोह के भीतर अतिनैतिक होते हैं। और यह मजे की बात है कि चोर जितने नैतिक होते हैं अपने मंडल में, उतने साधु भी अपने मंडल में नैतिक नहीं होते!

उसका कारण है। उसका कारण है कि चोर भलीभांति समझता है कि अनैतिक होकर जब समाज में जीना इतना असंभव है और मुश्किल है, तो अगर हम अनैतिक भीतर भी हो गए, तो हमारा जो आल्टरनेटिव समाज है, जो वैकल्पिक समाज है, वह भी मुश्किल हो जाएगा। हम पूरे समाज के खिलाफ तो जी ही रहे हैं, वह मुश्किल हो गया है। अब अगर हम दस लोग भी, जो खिलाफ होकर जी रहे हैं, हम भी अगर अनैतिक व्यवहार करें, और रात में हम भी एक दूसरे की जेब काट लें, और वायदा दें और पूरा न करें, तो फिर हमारा जीना असंभव हो जाएगा।

इसलिए चोरों की अपनी नैतिक व्यवस्थाएं होती हैं। उनका अपना मारल कोड है। और ध्यान रहे, साधुओं से उनका मारल कोड हमेशा श्रेष्ठतर साबित हुआ है। उसका कारण है। उसका कारण है कि साधु तो समाज के साथ नैतिक होकर जीता है। उसे कोई अलग समाज नैतिक बनाकर जीने की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए दो साधुओं को इकट्ठा करना मुश्किल मामला है। दो साधुओं को इकट्ठा करना मुश्किल मामला है। सौ पचास साधुओं को इकट्ठा करना उपद्रव लेना है! लेकिन सौ चोरों को इकट्ठा करें, तो एक बहुत नैतिक समाज उनके भीतर निर्मित हो जाता है।
 
बुरे आदमी की अपनी नैतिक व्यवस्था है, क्योंकि वह यह समझता है कि बिना उस व्यवस्था के जीना असंभव है। बाहर तो वह लड़ ही रहा है, अगर भीतर अपने गिरोह में भी लड़े, तो अति कठिनाई हो जाएगी।

समाज को नैतिकता की व्यवस्था जारी रखनी ही पडेगी, क्योंकि आदमी इतना अज्ञानी है। लेकिन समाज यह भी जोर देता है कि जब तक कोई नैतिक न होगा, तब तक वह धार्मिक नहीं हो सकता। यह वक्तव्य जरूरी है, लेकिन खतरनाक है और असत्य है। सचाई उलटी है। सचाई यह है कि जब तक कोई धार्मिक न होगा, तब तक उसकी नैतिकता आरोपित, थोपी हुई, ऊपर से लादी हुई होगी, अस्थाई होगी, आंतरिक नहीं होगी, आत्मिक नहीं होगी।

धार्मिक होकर ही व्यक्ति के जीवन में नीति का आविर्भाव होता है। उस नीति का, जो किसी भय के कारण नहीं थोपी गई होती। न किसी प्रलोभन, न किसी पुरस्कार के लिए, न स्वर्ग के लिए; न नर्क के डर से, न स्वर्ग के लोभ से, न प्रतिष्ठा के लिए, न सम्मान के लिए, न सुविधा के लिए, बल्कि इसलिए कि भीतर अब नैतिक होने में ही आनंद मिलता है और अनैतिक होने में दुख मिलता है। लेकिन ऐसी नैतिकता का जन्म धर्म के बाद होता है।


गीता दर्शन 

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts