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Tuesday, June 14, 2016

ऊर्जा की गति

गुरजिएफ के पास बहुत से प्रयोग थे। एक प्रयोग कभी-कभी हमारी इस यंत्रवत्ता से इनकार करने का भी था। आपको भूख लगी है आप मना कर दें और अपने शरीर को कष्ट पाने दें। आप बिलकुल चुपचाप और शांति हो जाएं और याद रखें कि शरीर को भूख लगी। है। उसे दबाएं नहीं। उसे दबाएं नहीं कि वह भूखा नहीं है। वह भूखा है, आप जानते हैं। परन्तु साथ-साथ आप उससे कहते हैं कि मैं यह भूख आज मिटाने वाला नहीं हूं। भूख रही, कष्ट भोगो। परन्तु मैं आज इस मृत ढांचे में नहीं चलता। मैं अलग ही रहूंगा।


और आप ऐसा कर सकें तो अचानक आपको एक अंतराल मिलेगा। शरीर भूखा है, परन्तु आप में और उसमें कहीं दूरी है। परन्तु यदि आप अपने मन को कहीं और व्यस्त कर लेते हैं, तो आप फिर चूक गए। यदि आप मंदिर चले जाते हैं और कीर्तन करने में लग जाते हैं अपनी भूख को भूलने के लिए, तो फिर आप चूकते हैं। शरीर को भूखा रहने दें। अपने मन को व्यस्त न करें भूख से बचने के लिए। भूख रहें परन्तु अपने शरीर से कह दें कि आज मैं जाल में पड़ने वाला नहीं हूं। तुम रहो, तुम कष्ट भोगो।


ऐसे लोग हैं जो कि उपवास कर रहे हैं, परन्तु निरर्थक है क्योंकि जब कभी वे उपवास करते हैं तो मन को व्यस्त करने की कोशिश करते हैं ताकि भूख का पता न लगे और वह महसूस न हो। यदि भूख का अनुभव न हो तो समझिए आप सारी बात ही चूक गए। तब आप चालाकी कर रहे हैं। तब भूख अपनी समग्रता में नहीं है, अपनी गहनता में नहीं है। उसे होने दें। उससे बचें नहीं। उसके तथ्य को मौजूद रहने दें और आप अलग हट जाएं और शरीर से कह दें कि आज मैं कुछ भी तुम्हें देने नहीं जा रहा। कोई द्वंद्व, दबाव नहीं है और न ही कोई बचाव है। और यदि आप ऐसा कर सकें तो अचानक आप उस अंतराल के प्रति सजग होंगे। आपका मन कुछ मांगता है।


उदाहरण के लिए, कोई क्रोध में आ गया। वह आपसे क्रोधित है और मन प्रतिक्रिया करने लगता है क्रोधित होने के लिए। अपने मन से कहें कि आप इस बार जाल में गिरने वाले नहीं। सजग रहें। मन में क्रोध को रहने दें, परन्तु आप अलग हट जाएं। सहयोग न करें। उसके साथ तादात्म्य न जोड़ें। और आप महसूस करेंगे कि क्रोध कहीं और है। वह आपके चारों ओर है, परन्तु वह आप में नहीं है। वह आपसे संबंधित नहीं। वह एक धुएं की तरह आपके चारों ओर है। वह चलता चला जाता है आपकी प्रतीक्षा में कि आप आए और सहयोग करें।


हर तरफ से खिंचाव होगा: वही मतलब हैं खिंचाव का, प्रलोभन का। कोई शैतान नहीं है जो आपको प्रलोभन दे सके। आपका अपना मन ही खिंचता है, क्योंकि वही सब से ज्यादा आसान रास्ता है होने का और व्यवहार करने का। सुविधा ही प्रलोभन है सुविधा ही शैतान है। मन कहेगा, क्रोध करो। स्थिति मौजूद है और यांत्रिकता चालू हो गई है। सदैव जब कभी ऐसी स्थिति बनी है, आप क्रोधित हुए हैं इसलिए मन फिर आपको वही रास्ता पकड़ा देता है। जहां तक यह चलता है ठीक है, क्योंकि मन आपको वही प्रतिक्रिया जो कि आप करते रहे हैं फिर से उपलब्ध कर देता है। परन्तु कभी-कभी रास्ते से अलग हट कर खड़े हो जाएं और मन से कहें, ठीक है, क्रोध आ रहा है। बाहर मुझसे कोई क्रोधित है। तुम मुझे वही पुरानी प्रतिक्रिया दे रहे हो, परन्तु इस बार में सहयोग करने के लिए राजी नहीं हूं। मैं यहां खड़ा रहूंगा और देखूंगा कि क्या होता है। अचानक सारी स्थिति ही बदल जाती है। यदि आप सहयोग न दें, तो मन मृत हो कर गिर जाएगा: क्योंकि यह आपका सहयोग ही है जो कि उसे गति, उर्जा प्रदान करता है। वह आपकी उर्जा ही है परन्तु आपको उसका पता तब चलता है जब कि मन उसका उपयोग कर चुकता है। उसे कोई सहयोग न दें तो मन एक दम गिर जाएगा जैसे कि बिना रीढ़ की हड्डी के हो–मात्र एक मृत सर्प की तरह, बिना जीवन के। यह वहां होगा, और पहली बार आपको अपने भीतर अपनी एक खास शक्ति का पता चलेगा जो कि आपकी है और आपके मन की नहीं है।


यह उर्जा ही शुद्ध उर्जा है और इसके साथ ही कोई अज्ञात में प्रवेश कर सकता है। वस्तुतः यह उर्जा ही अज्ञात में गतिमान होता है, यदि यह मन से संबंधित न होती हो। यदि यह मन से संबंधित हो, तो यह ज्ञात में चलती है। यदि यह ज्ञात में चलती है तो पहले यह इच्छा बन जाती है। यदि यह अज्ञात में गतिमान होती है तो यह निर्वासना की शक्ल ले लेती है। तब केवल गति होती है ऊर्जा का एक खेल, मात्र उर्जा का नृत्य, सदैव अज्ञात में बहती हुई उर्जा, क्योंकि मन सदैव ज्ञात ही को प्रदान कर सकता है। और यदि आप स्वयं को मन से तोड़ सकें, तो उर्जा को गति करना होता है यह स्थिर नहीं रह सकती। यही मतलब होता है उर्जा का। उसे गति करना ही पड़ेगा। गति ही उसका जीवन है। वह कोई उर्जा का गुण नहीं, ऐसा नहीं है। 

आत्मपूजा उपनिषद 

ओशो 




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