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Monday, June 13, 2016

चैतन्य को जगाओ

लोग धन के लिए प्रेम करेंगे तो सब उलटा हो जाएगा। और लोग धन के लिए ही प्रेम कर रहे हैं। प्रेम के लिए भी पूछने जाते हैं ज्योतिषी से। प्रेम भी मां-बाप तय करते हैं। क्योंकि मां-बाप ज्यादा होशियार हैं। धन, पद, प्रतिष्ठा, सबका इंतजाम करेंगे। प्रेम का भी मौका मनुष्य को सीधा नहीं रह गया। वह भी दूसरे तय कर रहे हैं। और उनके निर्णय के आधार क्या हैं? लड़के के पास कितना धन है, कितनी शिक्षा है? लड़की के पास कितना दहेज है, कितनी शिक्षा है? 

लड़कियां कालेजों में पढ़ रही हैं केवल इसलिए कि उन्हें अच्छा वर मिल सके; पढ़ाई में किसी की उत्सुकता नहीं है।

मैं विश्वविद्यालय में शिक्षक था। मैंने एक लड़की नहीं देखी जिसको पढ़ाई में उत्सुकता हो। उनकी सारी उत्सुकता यह है कि किसी तरह अच्छी डिग्री मिल जाए, प्रथम श्रेणी मिल जाए। और स्वर्ण-पदक मिल जाए तब तो कहना ही क्या! मगर स्वर्ण-पदक, अच्छी डिग्री, पढ़ना-लिखना, इसमें कोई रस नहीं है। रस इस बात में है कि तब वे अच्छा पति फांस सकेंगी। नौकरी उसकी अच्छी होगी। डिप्टी कलेक्टर, कलेक्टर, डाक्टर होगा, इंजीनियर होगा।


हम जिंदगी को उलटा किए दे रहे हैं। हमने जिंदगी उलटी कर ली है।

एक युवती ने प्रदर्शनी में एक नये ढंग का कंप्यूटर देखा। प्रदर्शनी के संचालक ने बताया कि यह ऐसा यंत्र है जो इंसान जैसा मस्तिष्क रखता है और यह प्रत्येक प्रश्न का सही उत्तर देने की पूरी क्षमता भी रखता है।

युवती तो बहुत प्रभावित हुई। उसने एक कागज पर प्रश्न लिखा: मेरा बाप कहां है?

इस प्रश्न को मशीन में डाला गया और एक बटन दबाई गई। तुरंत मशीन में से एक पुर्जा बाहर निकला, जिस पर लिखा था: तुम्हारा बाप बंबई की एक शराब की दुकान में बैठा शराब पी रहा है।

एकदम गलत युवती बोली मेरे बाप को मरे तो बीस साल हो गए।

यह मशीन कभी कोई गलती नहीं करती संचालक ने पूरे विश्वास से कहा आप इसी प्रश्न को जरा दूसरे ढंग से पूछिए।

इस बार युवती ने अपने प्रश्न को इस प्रकार लिखा: मेरी मां का पति कहां है?

फिर से प्रश्न को मशीन में डाला गया और बटन दबाई गई। बटन के दबाते ही फटाक से एक पुर्जा बाहर आया जिस पर लिखा था: तुम्हारी मां के पति को मरे बीस साल हो गए हैं, लेकिन तुम्हारा बाप बंबई की एक शराब की दुकान में बैठा शराब पी रहा है।

तुम्हें अपना भी पूरा पता नहीं है। तुम्हारे भीतर भी कितना अचेतन कूड़ा-कचरा भरा है, उसका तुम्हें होश नहीं है। वह कूड़ा-कचरा कब तुम्हारे बाहर आ जाता है, तुम्हें पता भी नहीं चलता। तुम क्यों क्रोधित हो गए? तुमने क्यों क्रोध में कुछ कह दिया, कुछ तोड़ दिया, कुछ फोड़ दिया? पीछे तुम खुद ही अपना सिर धुनते हो। तुम कहते हो: मेरे बावजूद यह हो गया, मैं तो करना ही नहीं चाहता था।



यहां चरित्रहीन अपने को चरित्रवान समझ रहे हैं, क्योंकि उन्होंने ऊपर से एक ढोंग रच लिया है। यहां असाधु अपने को साधु समझ रहे हैं, क्योंकि उन्होंने ऊपर से एक व्यवस्था बांध रखी है। यहां सब उलटा हो गया है। इस उलटे को अगर सीधा करना हो–और करना जरूरी है, नहीं तो आदमी बचेगा नहीं–तो एक ही उपाय है कि मनुष्य को ध्यान की क्षमता दो, कि मनुष्य को ध्यान की शिक्षा दो, कि मनुष्य को ध्यान के द्वारा आत्म-साक्षात्कार के उपाय सिखाओ–कि वह स्वयं को पूरा-पूरा जान ले कि मैं क्या हूं, कौन हूं, कैसा हूं, क्या-क्या मेरे भीतर है, कितने कक्ष मेरे अंधकार में दबे पड़े हैं। जो व्यक्ति अपने को पूरी तरह पहचानता है उससे जीवन में फिर कुछ उलटा नहीं होता। और एक व्यक्ति सीधा हो जाए तो उसके आस-पास तरंगें पैदा होती हैं कि अनेक लोग सीधे होने लगते हैं।

मैं तुम्हें जो सिखा रहा हूं, सीधी-सादी बात है। मैं तुम्हें आचरण नहीं सिखा रहा। क्योंकि आचरण सिखाया गया सदियों तक, सिर्फ पाखंड पैदा हुआ, आचरण पैदा नहीं हुआ। मैं तुम्हें नीति नहीं सिखा रहा। क्योंकि नीति सिखा-सिखा कर मर गए लोग, न वे खुद नीतिवान हो सके, न दूसरों को नीतिवान कर सके। मैं तुम्हें एक नई ही बात कह रहा हूं। मैं तो कह रहा हूं: सब नीति, सब आचरण, सब बाह्य उपचार हैं। तुम चैतन्य को जगाओ। तुम चेतना बनो। तुम ज्यादा से ज्यादा चैतन्य हो जाओ। तुम्हारी चैतन्यता की क्षमता में ही तुम्हारे जीवन की क्रांति छिपी है। तुम जितने होश से भर जाओगे उतना ही तुम्हारा जीवन सहज, सीधा, नैसर्गिक, सरल, सत्य और प्रामाणिक हो जाएगा।

काहे होत अधीर 

ओशो 

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