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Thursday, December 31, 2015

बड़े पाप में पड़ा हूं, इससे छुटकारा दिलाएं

कल एक युवक आया। युवक है, तो स्वभावतः वासना जगेगी, कुछ आश्चर्यजनक नहीं है, न जगे तो ही आश्चर्यजनक है। युवक हो और अगर वासना न जगे तो उसका अर्थ यही हुआ कि कहीं न कहीं शरीर में, मन में कुछ कमी रह गई, कहीं कोई बात चूक गई। वासना तो स्वाभाविक है। लेकिन वह युवक अपने को बहुत निंदित और दलित मान रहा है, आत्मग्लानि से भरा है। वह कहता है, “मेरे मन में बड़े पाप उठ रहे हैं। कैसे पाप से छुटकारा हो?’

जिस चीज को तुमने पाप कह दिया, उससे छुटकारा कभी भी न हो सकेगा। क्योंकि जिस चीज को तुमने पाप कह दिया, उतने ही में मामला समाप्त नहीं हो गया; उसके कारण तुम पापी हो गए। और पापी परमात्मा के निकट कैसे हो सकेगा?

थोड़ासा भोजन में रस है, तो पाप। थोड़ा कपड़ा पहनने में रस हो, तो पाप। थोड़ी ज्यादा देर सो जाते हो सुबह, तो पाप। सब तरफ से पाप खड़ा कर दिया है निंदकों ने। जहर फैलानेवालों का बड़ा लंबा इतिहास है। उन्होंने सब तरफ तुम्हें निंदित कर दिया है। उसके पीछे कारण हैं।

तुम जितने निंदित हो जाओ, उतने ही पंडित पूजित हो जाते हैं। यह गणित है। तुम जितने निंदित हो जाओ, उतना ही पंडित पूजित हो जाता है। क्योंकि वह सुबह पांच बजे उठता है और तुम नहीं उठ पाते। वह ब्रह्ममुहूर्त में उठता है। वह उपवास करता है, तुम नहीं कर पाते। त्यागी त्याग करता है, तुम नहीं कर पाते। लेकिन तुम जानकर चकित होओगे कि सौ में से निन्यानबे त्यागी इसलिए त्याग कर रहे हैं कि उनका त्याग एक अस्त्र है, जिसमें वे तुम्हें निंदित करते हैं। उनका त्याग उनके अहंकार की एक व्यवस्था है। उपवास में मजा उन्हें भी नहीं आता, लेकिन उपवास के कारण भोजन करने वालों को नरक में भेजने की जो सुविधा उनके मन में आ जाती है, वही उपवास का रस है।


दूसरे को निंदित करना हो तो एक ही उपाय है कि तुम जिस बात की निंदा करते हो, उसको स्वयं न करो। और सरल से उपाय हैं कि कोई आदमी विवाह नहीं करता तो गैरविवाहित रहकर विवाहित लोगों की निंदा करता है। सारी दुनिया विवाहित लोगों की निंदित हो जाती है। उसके अहंकार की कोई सीमा नहीं रहती।

अब यह युवक, जो मेरे पास कल आया, वह कहता है, “बड़े पाप में पड़ा हूं, इससे छुटकारा दिलाएं।’

पाप कहां है? जो स्वाभाविक है उसमें कोई पाप नहीं। और ध्यान रखने की बात तो यह है कि अगर तुमने पाप समझा तो कभी छूट न पाओगे। अगर छूटना चाहा तो कभी छूट न पाओगे। और अगर तुमने प्रभु की अनुकंपा समझी इसे भी, तो इसके द्वारा भी तुम प्रभु को पास ले आए, दूर न किया। जरा सूक्ष्म है, ठीक से समझ लेना। अगर तुमने कहा पाप है, तो कितनी बातें घट रही हैं, तुम्हें पता नहीं है। किसी चीज को पाप कहा तो तुम पापी हो गए। किसी चीज को पाप कहा तो पूरी प्रकृति पापी हो गई, क्योंकि उसी प्रकृति से वह पाप जन्मा है। और किसी चीज को अगर पाप कहा तो बहुत गौर से देखना, परमात्मा भी पापी हो गया, क्योंकि उसके बिना इस जगत में कुछ भी नहीं घट सकता है। 

सुनो भई साधो 

 ओशो 

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