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Monday, December 28, 2015

मन के साथ खेलो

दो प्रकार के लोग है। एक वे जो मन के संबंध में पूर्णतया अचेत है। उनके मन में जो भी होता है उसके प्रति वे मूर्छित होते है। उन्‍हें नहीं पता कि कहां उनका मन उन्‍हें भटकाए जा रहा है। यदि मन की किसी भी चाल के प्रति तुम सचेत हो सको तो तुम हैरान होओगे। कि मन मैं क्‍या हो रहा है।

मन एसोसिएशन में चलता है। राह पर एक कुत्‍ता भौंकता है। भौंकना तुम्‍हारे मस्‍तिष्‍क तक पहुंचता है। और वह कार्य करना शुरू कर देता है। कुत्‍ते के इस भौंकने को लेकर तुम संसार के अंत तक जा सकते हो। हो सकता है कि तुम्‍हें किसी मित्र की याद आ जाए। जिसके पास एक कुत्‍ता है। अब यह कुत्‍ता तो तुम भूल गए पर वह मित्र तुम्‍हारे मन में आ गया। और उसकी एक पत्‍नी है जो बहुत सुंदर है अब तुम्‍हारा मन चलने लगा। अब तुम संसार के अंत तक जा सकते हो। और तुम्‍हें पता नहीं चलता कि एक कुत्‍ता तुम पर चाल चल गया। बस भौंका ओर तुम्‍हें रास्‍ते पर ले आया। तुम्‍हारे मन ने दौड़ना शुरू कर दिया।

तुम्‍हें बड़ी हैरानी होगी यह जानकर कि वैज्ञानिक इस बारे में क्‍या कहते है। वे कहते है कि यह मार्ग तुम्‍हारे मन में सुनिश्‍चित हो जाता है। यदि यही कुत्‍ता इसी परिस्थिति में दोबारा भौंके तो तुम इसी पर चल पड़ोगे: वहीं मित्र,वहीं कुत्‍ता, वहीं सुंदर पत्‍नी। दोबारा उसी रास्‍ते पर तुम घूम जाओगे।

अब मनुष्‍य के मस्‍तिष्‍क में इलेक्‍ट्रोड डालकर उन्‍होने कई प्रयोग किए है। वे मस्‍तिष्‍क में एक विशेष स्‍थान को छूते है। और एक विशेष स्‍मृति उभर आती है। अचानक तुम पाते हो कि तुम पाँच वर्ष के हो, एक बग़ीचे में खेल रहे हो। तितलियों के पीछे दौड़ रहे हो। फिर पूरी की पूरी शृंखला चली आती है। तुम्‍हें अच्‍छा लग रहा है। हवा, बगीचा,सुगंध, सब कुछ जीवंत हो उठती है। वह मात्र स्‍मृति ही नहीं होती, तुम उसे दोबारा जीते हो। फिर इलेक्‍ट्रोड वापस निकाल लिए जाता है। और स्‍मृति रूक जाती हे। यदि इलेक्‍ट्रोड पुन: उसी स्‍थान को छू ले तो पुन: वही स्‍मृति शुरू हो जाती है। तुम पुन: पाँच साल के हो जाते हो। उसी बग़ीचे में, उसी तितली के पीछे दौड़ने लगते हो। वहीं सुगंध और वहीं घटना चक्र शुरू हो जाता है। जब इलेक्‍ट्रोड निकाल लिया जाता है। लेकिन इलेक्ट्रोड को वापस उसी जगह रख दो स्‍मृति वापस आ जाती है।

यह ऐसे ही है जैसे यांत्रिक रूप से कुछ स्‍मरण कर रहे हो। और पूरा क्रम एक निश्‍चित जगह से प्रारंभ होता है और निश्‍चित परिणति पर समाप्‍त होता है। फिर पुन: प्रारंभ से शुरू होता है। ऐसे ही जैसे तुम टेप रिकार्डर में कुछ भर देते हो। तुम्‍हारे मस्‍तिष्‍क में लाखों स्‍मृतियां है। लाखों कोशिकाएं स्‍मृतियां इकट्ठी कर रही है। और यह सब यांत्रिक है।

मनुष्‍य के मस्‍तिष्‍क के साथ किए गए ये प्रयोग अद्भुत है। और इनसे बहुत कुछ पता चलता है। स्‍मृतियां बार-बार दोहरायी जा सकती है। एक प्रयोगकर्ता ने एक स्‍मृति को तीन सौ बार दोहराया और स्‍मृति वही की वही रही—वह संग्रहीत थी। जिस व्‍यक्‍ति पर यह प्रयोग किया गया उसे तो बड़ा विचित्र लगा क्‍योंकि वह उस प्रक्रिया का मालिक नहीं था। वह कुछ भी नहीं कर सकता था। जब इलेक्ट्रोड उस स्‍थान को छूता तो स्‍मृति शुरू हो जाती और उसे देखना पड़ता।

तीन सौ बार दोहराने पर वह साक्षी बन गया। स्‍मृति को तो वह देखता रहा, पर इस बात के प्रति वह जाग गया कि वह और उसकी स्‍मृति अलग-अलग है। यह प्रयोग ध्‍यानियों के लिए बहुत सहयोगी हो सकता है। क्‍योंकि जब तुम्‍हें पता चलता है कि तुम्‍हारा मन और कुछ नहीं बस तुम्‍हारे चारों और एक यांत्रिक संग्रह है। तो तुम उससे अलग हो जाते हो।

इस मन को बदला जा सकता है। अब तो वैज्ञानिक कहते है कि देर अबेर हम उन केंद्रों को काट डालेंगे जो तुम्‍हें विषाद ओर संताप देते है, क्‍योंकि बार-बार एक ही स्‍थान छुआ जाता है। और पूरी की पूरी प्रक्रिया को दोबारा जीना पड़ता है।

मैंने कई शिष्‍यों के साथ प्रयोग किए है। वही बात दोहराओं और वे बार-बार उसी दुष्‍चक्र में गिरते जाते हे। जब तक कि वे इस बात के साक्षी न हो जाएं कि यह एक यांत्रिक प्रक्रिया है। तुम्‍हें इस बात का पता है कि यदि तुम अपनी पत्‍नी से हर सप्‍ताह वहीं-वहीं बात कहते हो तो वह क्‍या प्रतिक्रिया करेगी। सात दिन में जब वह भूल जाए तो फिर वही बात कहो: वहीं प्रतिक्रिया होगी।

इसे रिकार्ड कर लो, प्रतिक्रिया हर बार वही होगी। तुम भी जानते हो, तुम्‍हारी पत्‍नी भी जानती है। एक ढांचा निश्‍चित है। और वही चलता रहता है। एक कुत्‍ता भी भौंक कर तुम्‍हारी प्रक्रिया की शुरूआत कर सकता है। कहीं कुछ छू जाता है। इलेक्‍ट्रोड प्रवेश कर जाता है। तुमने एक यात्रा शुरू कर दी।

यदि तुम जीवन में खेलपूर्ण हो तो भीतर तुम कन के साथ भी खेलपूर्ण हो सकते हो। फिर ऐसा समझो जैसे टेलीविजन के पर्दे पर तुम कुछ देख रहे हो। तुम उसमे सम्‍मिलित नहीं हो। बस एक द्रष्‍टा हो। एक दर्शक हो। तो देखो और उसका आनंद लो। न कहो अच्‍छा है, न कहो बुरा है, न निंदा करो, न प्रशंसा करो। क्‍योंकि वे गंभीर बातें है।

यदि तुम्‍हारे पर्दे पर कोई नग्‍न स्‍त्री आ जाती है तो यह मत कहो कि यह गलत है, कि कोई शैतान तुम पर चाल चल रहा है। कोई शैतान तुम पर चाल नहीं चल रहा,इसे देखो जैसे फिल्‍म के पर्दे पर कुछ देख रहे हो।

और इसके प्रति खेल का भाव रखो। उस स्‍त्री से कहो कि प्रतीक्षा करो। उसे बाहर धकेलने की कोशिश मत करो। क्‍योंकि जितना तुम उसे बाहर धकेलोगे। उतना ही वह भीतर धुसेगी। अब महिलाएं तो हठी हाथी है। और उसका पीछा भी मत करो। यदि तुम उसके पीछे जाते हो तो भी तुम मुश्‍किल में पड़ोगे। न उसके पीछू जाओ। न उस से लड़ो,यही नियम है। बस देखो और खेलपूर्ण रहो। बस हेलो या नमस्‍कार कर लो और देखते रहो, और उसके बेचैन मत होओ। उस स्‍त्री को इंतजार करने दो।

जैसे वह आई थी वैसे ही अपने आप चली जाएगी। वह अपनी मर्जी से चलती है। उसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। वह बस तुम्‍हारे स्‍मृतिपट पर है। किसी परिस्‍थिति वश वह चली आई बस एक चित्र की भांति। उसके प्रति खेलपूर्ण रहो।

यदि तुम अपने मन के साथ खेल सको तो वह शीध्र ही समाप्‍त हो जाएगा। क्‍योंकि मन केवल तभी हो सकता है। जब तुम गंभीर होओ। गंभीर बीच की कड़ी है। सेतु है।

‘हे गरिमामयी लीला करो। यह ब्रह्मांड एक रक्‍त खोल है। जिसमें तुम्‍हारा मन अनंत रूप से कौतुक करता है।’


विज्ञान भैरव तंत्र 


ओशो 

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