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Sunday, March 19, 2017

स्टाप एक्सरसाइज

गुरजिएफ था यूनान में एक अदभुत आदमी, कुछ वर्षों पहले उसकी मृत्यु हुई। वह एक छोटा सा प्रयोग अपने साधकों को कराता था। उस प्रयोग का नाम था: स्टाप एक्सरसाइज। एक छोटा सा प्रयोग वह अपने साधकों से कहता था: रुक जाओ।


हम यहां बैठे हैं। गुरजिएफ अगर अपना प्रयोग कराता तो वह यह कहता था कि जब मैं कहूं--स्टाप! रुक जाओ! तो जो जहां है, जैसा है, वैसा ही रुक जाए। अगर बोलने के लिए मुंह खोला है, तो फिर बंद मत करना, मुंह खुला ही रह जाए। अगर चलने के लिए पैर उठाया तो फिर हिलाना मत, पैर वहीं रह जाए, चाहे गिरो, चाहे मरो।

क्यों? यह क्या पागलपन की एक्सरसाइज है! इससे क्या मतलब है? लेकिन जिन लोगों ने उसके साथ यह प्रयोग किया वे दूसरे आदमी हो गए। और उन्होंने कहा, हम हैरान हो गए, इतना छोटा सा प्रयोग कितनी क्रांति करवा सकता है!

क्योंकि बहुत बल चाहिए इस बात में। आप अपने को धोखा देने की कोशिश करेंगे--कि कोई देख तो रहा नहीं, पैर इतना ऊंचा बहुत तकलीफ दे रहा है, थोड़ा नीचे करके रख लो। और अगर नीचे करके रख लिया तो किसी और का नुकसान नहीं किया, वह जो चक्र आपके भीतर जिसको विकसित करने के लिए वह एक्सरसाइज थी, वह बेमानी चला गया। लेकिन अगर आपने हिम्मत की और आप खड़े रह गए, वैसे ही जैसे आप थे--आंख खुली थी तो आंख खुली रह गई, अब पलक झपेगी नहीं; हाथ ऊपर उठा था तो ऊपर रह गया; मुंह खुला था तो मुंह खुला रह गया; एक पैर ऊपर उठा था, एक पैर ऊपर उठा रह गया; कमर झुकी थी तो झुकी रह गई; बहुत तकलीफ होगी, लेकिन अब हिलना भी नहीं है। और इस प्रक्रिया में जो खड़ा रह जाएगा, वह अपने को आज्ञा दे रहा है, वह अपने संकल्प को बल दे रहा है।

एक बार वह तिफलिस में ठहरा हुआ था गुरजिएफ, रूस के एक छोटे गांव में, अपने तीस मित्रों को लेकर। उनको साधना के लिए ले गया था। और उसने कहा था कि तीस दिन निरंतर स्टाप एक्सरसाइज के सिवाय कुछ भी नहीं करना है। जब भी मैं कहूं--स्टाप! तब तुम रुक जाना, जो जहां हो। कोई स्नान करता हो तो वहीं ठहर जाएगा, कोई भोजन करता हो तो वहीं ठहर जाएगा। जो जो कर रहा हो, बस वैसे ही ठहर जाना, जैसे मूर्ति हो गए।

पास ही, उस तंबुओं के पास जहां वे ठहरे थे, एक नहर बहती थी। नहर सूखी थी, कभी-कभी उसमें पानी छोड़ा जाता था। सुबह का वक्त था, सारे तीस लोग आस-पास घूमने निकले हुए थे। तीन आदमी उस नहर को पार कर रहे थे। सूखी नहर थी, पानी नहीं था। अचानक गुरजिएफ ने अंदर से चिल्लाया--स्टाप! तो सारे लोग रुक गए, वे तीन लोग भी रुक गए।


किसी ने पानी छोड़ दिया नहर का, पानी जोर से भागा हुआ आया। गुरजिएफ तंबू के भीतर बंद है। उन तीन आदमियों की कमर तक पानी भर गया, गले तक पानी भर गया। जब गले के ऊपर पानी बढ़ने लगा, तो एक आदमी छलांग लगा कर बाहर निकल गया। उसने कहा, उसे पता नहीं है, वे तो तंबू के भीतर बैठे हुए हैं, और हमारी यहां जान जाने के करीब आ गई। वह बाहर निकल गया।


उसे पता नहीं कि उसने एक मौका चूक गया। एक मौका, जब कि पूरा शरीर कह रहा था कि हट जाओ बाहर, तब सिर्फ संकल्प कह सकता था कि नहीं हटते हैं! जान दांव पर लगाते हैं, लेकिन बदलेंगे नहीं। तो वह जो चक्र सोया हुआ है, सक्रिय हो जाता। एक शॉक, एक धक्का, और वह चल पड़ता। लेकिन वह चूक गया; वह बाहर कूद गया। अक्सर लोग कूद जाएंगे। आप भी होते तो कूद गए होते। उसने कोई गलती नहीं की थी।


दो व्यक्ति रह गए। फिर इसके बाद मुंह तक पानी आ गया। और जब नाक तक पानी आया तो दूसरे ने भी सोचा कि अब खतरा है, वह भी छलांग लगा कर बाहर हो गया। लेकिन तीसरा आदमी खड़ा रहा। खतरा उसको भी दिखाई पड़ा, अंधा नहीं था। जान जाने की नौबत दिखाई पड़ी। मौत सामने आ गई। पानी सिर के ऊपर से निकल गया। लेकिन उसने कहा कि अब जो भी हो जाए, जो तय किया है तो तय किया है।


गुरजिएफ भागा पागल की तरह तंबू के भीतर से। वह नहर तो जान कर छुड़वाई गई थी। कूदा पानी में, उस आदमी को बाहर निकाला। वह आदमी दूसरा आदमी हो गया। गुरजिएफ ने कहा कि एक मौका मिला था, दो साथी तेरे चूक गए। इस दबाव में, इतने तेज दबाव में कि मौत सामने आ गई, लेकिन संकल्प नहीं बदला। तो फिर और कब चलेगा वह चक्र, वह चल पड़ा। वह आदमी दूसरा हो गया।


अब यह आदमी जो चाहेगा हो जाएगा। यह अपने विचार को कह दे कि रुक जाओ! तो फिर विचार चल नहीं सकते भीतर। यह आदमी कह दे कि श्वास रुक जाओ! तो फिर श्वास एक बार आगे नहीं चल सकती। यह आदमी कह दे कि मैं इसी वक्त मरता हूं! तो आप पाएंगे कि वह आदमी मर गया। यह आदमी अब जो चाहेगा अपने लिए, हो जाएगा।

तृषा गयी एक बूँद से 

ओशो

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