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Tuesday, January 2, 2018

एक मित्र ने पूछा है: हमसे तो कहा जाता है कि हम मां-बाप, गुरु को आदर दें, सम्मान दें और उनकी बात को हमेशा प्रमाणिक मानें, उस पर शक न करें, उस पर संदेह न करें। तो मेरा क्या विचार है इस संबंध में?



पहली बात, अगर कोई भी आपसे कहता हो मुझे आदर दो, तो उसे आदर कभी मत देना; क्योंकि यह मांग उस आदमी के भीतर आदर-योग्य होने की कमी का सूचक है। अगर कोई कहता हो; अगर गुरु यह कहता हो, मुझे आदर दो, उसे कभी आदर मत देना, क्योंकि यह आदमी गुरु होने के योग्य ही नहीं रहा। गुरु कभी आदर नहीं मांगता। जो आदर मांगता है, वह गुरु नहीं रह जाता। आदर की मांग बड़े क्षुद्र मन की सूचना है। आदर मांगा नहीं जाता; आदर मिलता है। 


मैं यह नहीं कहता कि मां-बाप को आदर दो। मैं यह कहता हूं, मां-बाप ऐसे होने चाहिए कि उन्हें आदर मिले। आदर मांगा नहीं जा सकता। और मांगा हुआ आदर एकदम झूठा होगा। अगर कोई देगा भी, वह झूठा होगा। अगर बच्चे आदर देंगे इसलिए कि मां-बाप मांगते हैं कि आदर दो, क्योंकि हम बुजुर्ग हैं, हमने जिंदगी देखी है और हमने यह किया और हमने वह किया। अगर इस वजह से वे आदर मांगते हैं, तो वे पक्का समझ लें, वे बच्चे में आदर नहीं, अनादर के बीज बो रहे हैं। हां, आज तो बच्चा कमजोर है इसलिए डर की वजह से आदर देगा। लेकिन कल आप कमजोर हो जाएंगे और बच्चा ताकतवर हो जाएगा; आप बूढ़े हो जाएंगे और बच्चा जवान हो जाएगा, तब? तब पासा बदल जाएगा। बच्चा सताएगा और अनादर देगा। ये जो जवान बच्चे अपने मां-बाप को अनादर दे रहे हैं, यह अकारण नहीं है। इनसे बचपन में जबरदस्ती आदर मांगा गया, उसका रिएक्शन है, उसकी प्रतिक्रिया है। जब इनके हाथ में ताकत आएगी, तो ये इसका बदला चुकाएंगे। आपके हाथ में ताकत थी, तो आपने आदर मांग लिया। अब इनके हाथ में ताकत है, तो अब ये उसका बदला चुकाएंगे कि जो आदर दिया था, उसको एक-एक रत्ती-रत्ती पाई चुकता कर लेंगे। 

 
सारी दुनिया में बच्चों की जो बगावत है, वह मां-बाप के प्रति नहीं है, मां-बाप के जबरदस्ती मांगे गए आदर के प्रति है। मां-बाप को कौन अनादर देगा? कोई कल्पना भी नहीं कर सकता उनको अनादर देने की। लेकिन मां-बाप होने तो चाहिए, वे हैं कहां? गुरु होने तो चाहिए, वे हैं कहां? इसलिए मैं यह नहीं कहता कि गुरु को आदर दो। मैं तो यह कहता हूं, जिसके प्रति तुम्हारा आदर खिंचा हुआ चला जाए, उसे गुरु समझ लो। मां-बाप को आदर मिलना नहीं चाहिए; दिया नहीं जाना चाहिए; मांगा नहीं जाना चाहिए। यह तो हद्द हो गई। अगर एक मां अपने बेटे से कहे कि तुम मुझे आदर दो, यह किस बात की खबर हुई? यह इस बात की खबर हुई कि वह मां मां होने में समर्थ नहीं हो सकीं। नहीं तो आदर तो मिलता। एक पिता अपने बेटे से कहे, मुझे आदर दो, क्योंकि मैं तुम्हारा पिता हूं। यह बात भी अगर कहनी पड़े और समझानी पड़े, तो बात खत्म हो गई। यह पिता पिता होने के योग्य नहीं था। 

 
जब भी आदर मांगा जाता है तो समझ लेना चाहिए, समाज में आदर पाने योग्य लोग समाप्त हो गए। सचमुच योग्य व्यक्ति कभी आदर नहीं मांगता, सम्मान नहीं मांगता। और जिस व्यक्ति को इस बात का अहसास है कि वह जो कह रहा है, सच है, वह कभी यह नहीं कहता कि मेरी बात को प्रमाण मान लेना। जिस आदमी को अपनी बात पर शक होता है, वह हमेशा जोर देकर कहता है कि मेरी बात प्रमाण है, मैं जो कह रहा हूं, वह सत्य है। जिस आदमी को शक होता है अपनी बात पर, वह यह कहता है कि मैं जो कह रहा हूं, वह प्रमाणित है, इस पर शक करोगे, गर्दन काट देंगे। लेकिन जिसको अपनी सच्चाई पर, अनुभव पर, जिसे सीधा बोध होता है कि मैं जो कह रहा हूं, वह सच है, वह कभी ऐसा नहीं कहता। वह कहता है कि मुझे दिखाई पड़ता है कि यह सच है, तुम भी सोचना और खोजना। क्योंकि उसे इस बात का पता है कि अगर दूसरे व्यक्ति ने सोचा और खोजा, तो वह निश्चित ही इस नतीजे पर आ जाएगा, जो मैं उससे कह रहा हूं। लेकिन जिसको यह डर होता है कि मैं जो कह रहा हूं, पता नहीं, वह सच है या झूठ, वह कहता है, यह प्रमाणिक है। और मेरी बात को इसलिए मान लेना कि मैं तुम्हारा पिता हूं; इसलिए मान लेना कि मैं गुरु हूं; इसलिए मान लेना कि मेरी उम्र तुमसे ज्यादा है। ये बातें सब कमजोरी के लक्षण हैं और झूठ के लक्षण हैं, सत्य के लक्षण नहीं हैं। 


इसलिए कोई गुरु कभी नहीं कहता कि मेरी बात को प्रमाण मान लेना। वह कहता है, खोजना, अन्वेषण करना। वह यह नहीं कहता कि मेरी बात मान लो कि यही सच है। जो आदमी ऐसा कहता है, वह गुरु नहीं है, वह तो शत्रु है, क्योंकि वह आपके भीतर सोच-विचार के पैदा होने के बीज को नष्ट कर रहा है। वह आपको विश्वास की तरफ ले जा रहा है। विश्वास आपको अंधेपन की तरफ ले जाएगा। कल कोई दूसरा आदमी कहेगा कि मेरी बात मान लो, क्योंकि मेरी उम्र भी ज्यादा है, फिर आप उसकी बात भी मान लेना। परसों कोई तीसरा आदमी कहेगा कि मेरी बात मान लो, तो उसकी बात भी मान लेना।

दुनिया में बड़ा खतरा है विश्वास के कारण। क्योंकि जो लोग विश्वास करते हैं, वे किसी भी चीज पर विश्वास कर सकते हैं। उन्हें कोई भी चीज समझाई जा सकती है, क्योंकि विश्वास करने वाला आदमी कभी विचार नहीं करता। इसलिए दुनिया की हुकूमतें, दुनिया के पोलिटिशियंस, दुनिया के धर्म-पुरोहित, दुनिया के शोषण करने वाले लोग, कोई भी यह नहीं चाहते कि आप विचार करो। वे सब चाहते हैं, विश्वास करो। क्योंकि आप विश्वास करोगे, तो दुनिया में कोई क्रांति नहीं होगी, कोई बगावत नहीं होगी। आपका शोषण मजे से होता रहेगा, आपको मूढ़ बनाया जाता रहेगा और आप चुपचाप चलते रहोगे। विचार से वे सब घबड़ाए हुए हैं। और विचार के न होने का यह परिणाम है कि पांच हजार साल से आदमी कष्ट उठा रहा है, न मालूम कितने प्रकार के, जिनका कोई हिसाब नहीं है। विचार पैदा होना चाहिए। क्योंकि विचार बगावत है, विचार रिबेलियन है। विचार पैदा होना चाहिए, तो शायद बगावत भी पैदा हो और हम एक नई दुनिया बनाने में समर्थ हो जाएं। 

अंतर की खोज 

ओशो 

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