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Monday, January 15, 2018

ज्ञान, सत्य-दर्शन, ईश्वर-दर्शन, क्या इन सबका एक ही अर्थ है?



बिलकुल एक ही अर्थ है। लेकिन अगर पंडितों से पूछिएगा, वे कहेंगे, बिलकुल अलग-अलग अर्थ हैं। वे कहेंगे, ईश्वर? जैन कहेगा, ईश्वर तो होता ही नहीं। आप कहेंगे, आत्मा। बौद्ध कहेंगे, आत्मा? आत्मा तो होती ही नहीं। आप कहेंगे, सत्य। कोई कहेगा, सत्य? सत्य तो कहा ही नहीं जा सकता। आत्मा या सत्य या ईश्वर, ऐसा लगेगा अलग-अलग हैं। जो है उसका कोई नाम नहीं है। नाम तो कामचलाऊ हैं। कोई भी नाम हम दे दें। 


आपका जो नाम है, आप समझते हैं, वह आपका नाम है? किसी भी चीज का जो नाम है, आप समझते हैं, वह उसका नाम है? नाम तो दिया हुआ है। लगाया हुआ है। कामचलाऊ है। आपको अगर राम किसी ने कह दिया है मां-बाप ने, तो आप राम हो गए हैं। तो आप सोचते हैं, राम आपका नाम है? आप कोई नाम लेकर पैदा हुए हैं? आप कोई नाम लेकर मरेंगे? यह लेबल तो लगाया हुआ है ऊपर से। बिलकुल साधारण है। जरा भी इसमें चिपकान नहीं है। जरा ही खींच दें, निकल जाएगा। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। चाहें अदालत में जाएं, एक रुपया जमा करें, नाम बदल लें। 


नाम कोई अर्थ नहीं रखता। किसी का कोई भी नाम नहीं है। सब अनाम हैं। नाम मनुष्य की ईजाद है। मनुष्य की कुछ ईजादें हैं, उनमें नाम भी उसकी ईजाद है। और सबसे खतरनाक ईजाद है, लेकिन बड़ी जरूरी है। इसलिए उसको करना पड़ता है। किसी का कोई भी नाम नहीं है। तो जो है, वह जो टोटेलिटी है, वह जो समग्र सत्ता है, सारे जगत की जो सत्ता है, उसका भी कोई नाम कैसे होगा


तो हम अपने बच्चों के नाम रखते हैं। बुद्धि हमारी गड़बड़ है। नाम रखने की आदत है। अब तो हम मकानों के भी नाम रखते हैं। भगवान का भी नाम रखते हैं। वही आदत। बच्चों का नाम रखते हैं; मकानों का नाम रखते हैं; सड़कों का नाम रखते हैं; चौगड्डों का नाम रखते हैं; भगवान का भी नाम रखते हैं। नाम रखने की आदत हमारे मन में है, क्योंकि बिना नाम के हम कैसे पहचानेंगे किसी को भी! इसलिए उसका भी कोई नाम रखते हैं। और फिर नामों पर लड़ते हैं, क्योंकि दूसरा कोई दूसरा नाम रख देता है, तीसरा कोई तीसरा नाम रख देता है। 


वह ऐसा ही मामला है कि एक बच्चा हो और तीन-चार उसके बाप हों और तय न हो कि कौन उसका बाप है, और वे सब उसका एक-एक नाम रख दें। और सारे लोग लड़ने लगें कि इसका नाम यह है और इसका नाम यह है। ऐसी परमात्मा की गति है। वह आपका पुत्र तो नहीं है, लेकिन बाप है, और बहुत उसके लड़के हैं, और वे सब उसका नाम रखे हुए हैं। और हरेक नाम वाला दावा करता है कि यही नाम सत्य है। 


कोई नाम नहीं है। जो है, उसका कोई नाम नहीं है। उसे सत्य कहें, उसे आत्मा कहें, उसे ईश्वर कहें। लेकिन इनमें ध्वनियां अलग-अलग हैं, क्योंकि हमने उन शब्दों को अलग-अलग ध्वनियां दे दी हैं। इसलिए उचित है कि सत्य कहें या उचित है कि कहें कि जो है वही। फिर अगर प्रेम मन में आता है, ईश्वर कहें, आत्मा कहें। लेकिन स्मरण रखें, उसका कोई नाम नहीं है। अगर दुनिया में कोई मनुष्य न हो, तो किसी भी चीज का कोई नाम नहीं होगा। मनुष्य की ईजाद है नाम। और नाम ने बड़ी दिक्कत खड़ी कर दी है। बहुत दिक्कत खड़ी कर दी है। बहुत कठिनाई खड़ी कर दी है। नाम पर कितने लोग लड़ गए और मर गए! और नाम पर कितनी हत्या हो गई! क्योंकि कोई उसे अल्लाह कहता है, कोई उसे राम कहता है, वे लड़ जाएंगे। नाम के पीछे कितना पागलपन हुआ है! और इस पागलपन को विचार करें तो बड़ी हैरानी होती है कि यह दुनिया कैसे धार्मिक हो सकती है जो नामों पर लड़ जाती हो? यह कितनी नासमझ दुनिया है कि जो नामों पर लड़ जाती हो!


एक मित्र मेरे घर मेहमान थे। वे एक साधु थे। सुबह-सुबह मुझसे बोले कि मैं मंदिर जाना चाहता हूं। मैंने कहा, किसलिए जाना चाहते हैं? उन्होंने कहा कि थोड़ा एकांत में शांति से वहां बैठूंगा। कुछ परमात्मा का स्मरण करूंगा। मैंने कहा, देखें, मंदिर तो यहां का बाजार में है। वहां बड़ी भीड़-भाड़, शोरगुल है। चर्च मेरे पास में है। तो यहीं चले जाएं। यहां बड़ी शांति है, बड़ा एकांत है। यहां कोई भी नहीं है, कोई गड़बड़ नहीं है। वे बोले, चर्च? आप कहते क्या हैं? मैंने कहा कि सिवाय नाम के और क्या फर्क है? कल आप खरीद लें, इस चर्च को हटा दें, इसकी जगह मंदिर का नाम रख दें, तो मंदिर हो जाएगा। यह मकान ही है न! इसमें कोई नाम का फर्क है


अभी कलकत्ते में मेरे मित्रों ने एक चर्च खरीद लिया और उसको मंदिर बना लिया, तो वह मंदिर हो गया। कल तक उसमें ईसाई जाते थे, अब कोई ईसाई नहीं जाता। अब उसमें जैनी जाते हैं, कल तक कोई जैनी नहीं जाता था। ऐसा पागलपन है। वह नाम! वह मकान वही का वह है, दीवालें वही की वह हैं, मिट्टी वही की वह है, सब वही का वह है; लेकिन अब वह मंदिर है, तब वह चर्च था। तब वह किसी दूसरे भगवान का डेरा था, अब वहां किसी दूसरे भगवान का डेरा है। जैसे भगवान बहुत हैं। 


लेकिन हमारी नाम की बड़ी गहरी पकड़ है। बहुत बचकानी, बहुत इम्मैच्योर, एकदम बालबुद्धि से भरी हमारी पकड़ है। और उस पर हम तलवारें उठा लेते हैं और उस पर हम कत्ल करेंगे और मुल्कों को नष्ट कर देंगे और आग लगा देंगे और तबाह कर देंगे। 


दुनिया में धार्मिक लोगों ने जितनी दुष्टता की है और जितनी मूर्खता की है, उतनी किसी और ने नहीं की। और सिर्फ नामों की वजह से। और फिर भी आंखें नहीं खुलतीं। फिर भी नाम को हम लेकर चिल्लाते हैं और पकड़ते हैं। और नाम पर हम न मालूम क्या-क्या करते रहे हैं। 


मैं आपको कहूं, नाम बड़ी भ्रामक बात है। नाम का कोई अर्थ नहीं है। सच्चाई को देखें। नाम को मत देखें। अन्यथा नाम पर अटक जाएंगे और सच्चाई नहीं देख पाएंगे। नाम को छोड़ दें और देखें कि मतलब क्या है। इसीलिए मैं सबका इकट्ठा प्रयोग करता हूं। मैं कहता हूं कि ईश्वर-दर्शन, आत्म-दर्शन या सत्य-दर्शन; इसीलिए ताकि वे अलग-अलग नामों वाले लोग समझें कि मैं किसी एक ही चीज की चर्चा कर रहा हूं। अगर मैं कहूं ईश्वर-दर्शन, तो बहुत से हैं जो समझेंगे कि मैं तो न मालूम हिंदू धर्म का आदमी हूं या क्या है। अगर मैं कहूं आत्म-दर्शन, तो कुछ समझेंगे कि पता नहीं ये कौन से धर्म के हैं कि ईश्वर की बात नहीं करते। मैं जान कर सबका इकट्ठा प्रयोग करता हूं ताकि आपको खयाल में आ सके कि जो है, उसका कोई नाम नहीं है, और उसका ही विचार करना है; उसको ही अनुभव करना है; उस पर ही प्रवेश करना है; उसका ही साक्षात करना है। सब नाम छोड़ दें और अनाम के प्रति जागें। वह जिसका कोई नाम नहीं है, उसके प्रति जागें। जिसका कोई रूप नहीं है, उसके प्रति जागें। जो कहीं भी, किसी सीमा में आबद्ध नहीं है, उसके प्रति जागें। वह जो सीमा में नहीं है, नाम में नहीं है, रूप में नहीं है, वही है। फिर चाहे उसे परमात्मा कहें, चाहे आत्मा कहें, चाहे सत्य कहें।

अमृत की दशा 

ओशो

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