Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Monday, January 15, 2018

हम जहां हैं, मन वहां नहीं है। जहां हम नहीं हैं, वहां मन है।



मैं एक अपने मित्र को लेकर, एक नाव पर उन्हें बिठा कर पहाड़ियों को दिखाने और नदी की यात्रा को ले गया। वे दूर से बाहर के मुल्कों से घूम कर लौटे थे। बड़े कवि थे। बहुत उन्होंने यात्रा की है। बहुत नदियां, बहुत पहाड़ देखे हैं। बहुत प्रकार के सुंदर स्थानों में वे घूमे हैं। मैं उन्हें घुमाने ले गया। वे मुझसे बोले, वहां क्या होगा? मैं तो बहुत झीलें, बहुत सुंदर पहाड़, बहुत प्रपात देखा हूं। मैंने कहा, फिर भी चलें। क्यों? क्योंकि मेरी मान्यता है कि हर चीज का अपना सौंदर्य है और किसी सौंदर्य की किसी दूसरे सौंदर्य से कोई तुलना नहीं हो सकती। क्योंकि इस जगत में हर चीज अनूठी है और कोई चीज दूसरी चीज जैसी नहीं है। एक छोटा सा कंकड़ का टुकड़ा भी अपने में यूनीक है, बेजोड़ है। आप सारी जमीन खोज लें, तो उस जैसा दूसरा टुकड़ा नहीं मिलेगा। एक छोटा सा फूल भी अपने में बेजोड़ है। वैसा दूसरा फूल पूरी जमीन पर खोजने से नहीं मिलेगा। लेकिन, मैंने उनसे कहा, चलें। जो छोटी सी पहाड़ियां हैं और छोटी सी नदी है, उसको ही देख लें।

 
मैं उन्हें लेकर गया। दो घंटे तक हम उन पहाड़ियों में, उस नदी के किनारे पर, नाव में सब तरफ घूमे। वे स्विटजरलैंड की झीलों की बातें करते रहे। कश्मीर की झीलों की बातें करते रहे। मैं सुनता रहा। फिर जब हम वापस लौटे दो घंटे बाद, तो उन्होंने कहा, बड़ी सुंदर जगह थी। मैंने उनके मुंह पर हाथ रख दिया। मैंने कहा, मत कहें। क्योंकि वहां मैं अकेला ही गया था। आप वहां नहीं गए। आप वहां नहीं थे, मैं ही वहां था, आप वहां नहीं थे। बोले, यह क्या आप बात कर रहे हैं? मैं आपके साथ हूं और दो घंटे वहां घूमा। मैंने कहा, आप मेरे साथ दिखाई पड़ते थे। आप मेरे साथ नहीं थे। आपका चित्त स्विटजरलैंड में रहा होगा, कश्मीर में रहा होगा, लेकिन ये जो छोटी सी पहाड़ियां हैं, यह जो छोटी सी नदी है, इसमें नहीं था। आप मौजूद नहीं थे। जो आपके सामने था, वह आपको दिखाई नहीं पड़ रहा था। स्मृति पीछे चल रही थी और स्मृति की फिल्म के कारण, जो मौजूद था, वह छिप गया था। फिर मैंने उनसे कहा, और अब मैं यह भी समझ गया कि स्विटजरलैंड की झीलों के बाबत जो आप कहते हैं, वह भी झूठ होगा। क्योंकि जब आप उन झीलों पर रहे होंगे, तो मन कहीं और रहा होगा। क्योंकि मैं आपके मन की आदत को समझ गया।

 
यह हमारे सबके मन की आदत है। हम जहां हैं, मन वहां नहीं है। जहां हम नहीं हैं, वहां मन है। इस भांति हम जीवन से वंचित रह जाते हैं। या तो हम अतीत के संबंध में सोचते रहते हैं और या भविष्य के संबंध में सोचते रहते हैं। दोनों ही स्थितियों में, जो मौजूद है, वह हमसे चूक जाता है। उससे हम वंचित हो जाते हैं।

 
और मैंने कहा, जीवन सदा वर्तमान में है। तो अतीत में कोई जीवन है और भविष्य में कोई जीवन है।

 
यह जो हमारा चित्त है, यह जो हमारा मन है, यह जो निरंतर अतीत में और भविष्य में घूमता है, इसके कारण हम जीवन की जो निरंतर, जो निरंतर धारा है, उससे अपरिचित रह जाते हैं। तो जीवन का अध्ययन करिए। मन को अतीत में मत जाने दीजिए। मन को व्यर्थ भविष्य में मत भटकने दीजिए। उसे लाइए। जो मौजूद है, वहां मौजूद करिए। अगर चांद के पास नीचे बैठे हैं, तो थोड़ी देर को चांद के पास ही रह जाइए और मन के सारे अतीत और भविष्य के चिंतन को छोड़ दीजिए। अगर फूल के पास बैठे हैं, तो थोड़ी देर फूल के पास ही रह जाइए और मन के सारे चिंतन को छोड़ दीजिए। जीवन को देखिए और चिंतन को छोड़ दीजिए। और आप हैरान हो जाएंगे, जिसे शास्त्रों में खोजते हैं, वह निरंतर हाथ के पास मौजूद है। जिसे शास्त्रों में नहीं पा सकेंगे, वह निरंतर निकट है। लेकिन हम अनुपस्थित हैं। स्मरण रखें, सत्य सदा उपस्थित है, हम अनुपस्थित हैं। परमात्मा निरंतर उपस्थित है, लेकिन हम उसके प्रति उन्मुख नहीं हैं। हमारी आंखें बंद हैं या कहीं और भटकी हुई हैं।

 

मैं कहूंगा, अध्ययन जरूर करिए, लेकिन जीवन का। और जीवन के अध्ययन की शर्त है: विचार को छोड़ कर जीवन को देखिए।

 

कभी आपने किसी चेहरे को देखा है बिना विचार के? कभी आपने कोई आंखें देखी हैं बिना विचार के? कभी आपने आंख उठा कर ऊपर सूरज को देखा है बिना विचार के? कभी आपने सागर को देखा है बिना विचार के? कोई पहाड़, कोई पर्वत, कोई फूल, कोई दरख्त, कोई सड़क, राह पर चलते हुए लोग, कोई कभी देखे हैं बिना विचार के? अगर नहीं देखे तो जीवन से कैसे परिचित होंगे? आप अपने विचार से घिरे रहेंगे। जीवन बहा जाता है।



विचार को छोड़ दें और देखें; विचार को तोड़ दें और देखें; विचार को रुक जाने दें और देखें; तब जो आपको दिखाई पड़ेगा, वह जीवन है। और वह जीवन, उससे बड़ा कोई अध्ययन नहीं, उससे बड़ा कोई शास्त्र नहीं। सब शास्त्र मिट जाएं, सब शास्त्र नष्ट हो जाएं, तो भी सत्य नष्ट नहीं होगा। वह तो निरंतर मौजूद है। और शास्त्र ही शास्त्र बढ़ जाएं...और बहुत बढ़ रहे हैं। मैं सुनता हूं कि सारी दुनिया में कोई पांच हजार ग्रंथ हर सप्ताह छप जाते हैं। हर सप्ताह पांच हजार ग्रंथ! थोड़े दिनों में तो क्या स्थिति होगी! आदमी का रहना मुश्किल हो जाएगा, इतनी किताबें होंगी। और इन सारी किताबों के बावजूद क्या हो रहा है? आदमी कहां है? आदमी रोज गिरता जा रहा है। किताबें बढ़ती जा रही हैं और आदमी सिकुड़ता जा रहा है। किताबें बढ़ती जाएंगी, आदमी छोटा होता जाएगा। धीरे-धीरे किताबों के पहाड़ हो जाएंगे और आदमी का ज्ञान? आदमी का ज्ञान शून्य होता जा रहा है। शास्त्र से नहीं, शब्द से नहीं, जीवन के प्रति सजग होने से, जागने से।

अमृत की दशा 


ओशो

 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts