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Saturday, January 20, 2018

मध्य को खोजना तपश्चर्या है।



बुद्ध एक दिन संध्या श्रोण के द्वार पर गए जिस झोपड़े में वह ठहरा था और उन्होंने कहा: श्रोण, मैं कुछ तुझसे पूछने आया हूं। मैं तुझसे पूछना चाहता हूं, मैंने सुना है, जब तू राजकुमार था और भिक्षु न हुआ था, तो संगीत में तेरी बड़ी गति थी, वीणा बजाने में तू बहुत कुशल था। तो मैं एक बात पूछने आया हूं, मैं यह पूछने आया हूं कि वीणा के तार जब बहुत ढीले होते हैं तो उनसे संगीत पैदा होता है या नहीं?


श्रोण ने कहा: कैसे पैदा होगा? तार ढीले होंगे तो संगीत कैसे पैदा होगा


बुद्ध ने कहा: और यह भी मुझे पूछना है, तार जब बहुत कसे होते हैं तब संगीत पैदा होता है या नहीं


उस श्रोण ने कहा: जब तार बहुत कसे होते हैं तब भी संगीत पैदा नहीं होता, तार टूट जाते हैं। 

फिर बुद्ध ने पूछा, संगीत कब पैदा होता है


उस श्रोण ने कहा: संगीत तब पैदा होता है, तार जब तो न ढीले होते हैं और न कसे हुए होते हैं। बीच में एक मध्य का बिंदु भी है, जब तार को न तो कहा जा सकता है कि ढीला है और न कहा जा सकता है कि कसा हुआ है। उस मध्य के बिंदु पर जब तार होता है तो संगीत पैदा होता है।


बुद्ध ने कहा: यही तुझे याद दिलाने आया हूं: जीवन की वीणा में भी तभी संगीत पैदा होता है जब तार न बहुत कसे होते हैं न बहुत ढीले। जीवन का संगीत भी ऐसे ही पैदा होता है। 


संयम से मेरा अर्थ है: जीवन में संगीत पैदा होने की विधि। संयम से मेरा अर्थ है: संगीत। संयम से मेरा अर्थ है: मध्य के बिंदु को खोजना। अति पर जाना बहुत आसान है। मध्य को खोज लेना सवाल है। मध्य को खोजना तपश्चर्या है। 


तो जीवन में देखें, जीवन की सारी क्रियाओं में संयम हो, मध्य हो, संगीत हो। अति न हो, एक्सट्रीम न हो। कोई दूसरा आपको यह नहीं बता सकता कि वह मध्य-बिंदु कहां होगा। वह तो निरंतर-निरंतर जीवन में जी कर आपको खोजना होगा। जो मेरे लिए मध्य-बिंदु है जरूरी नहीं आपके लिए मध्य-बिंदु हो। जो आपके लिए मध्य है वह दूसरे के लिए मध्य न होगा। 


तो जीवन की सारी क्रियाओं में, जीवन की सारी गति में, जीवन के सारे आचरण में मध्य के बिंदु को खोजना साधना है। जो व्यक्ति मध्य के बिंदु को खोजने से वंचित हो जाता है वह अतियों में भटकता है और दुख उठाता है। 


मैं आपसे कहूं, भोग भी अति है और त्याग भी। संसार भी अति है और संन्यास भी। ठीक-ठीक संयमी वह है जिसके जीवन के तार न तो कहे जा सकते कि ढीले हैं और न कहे जा सकते कि कसे हैं, जहां बिलकुल मध्य में जीवन के तार ठहरे हैं। जिसमें जीवन की हर क्रिया में--चाहे वह भोजन हो, चाहे वह वस्त्र हो, चाहे वह श्रम हो, चाहे वह विश्राम हो, चाहे वह जागना हो, चाहे सोना हो, जिसने जीवन की हर क्रिया में मध्य के बिंदु की खोज की है और धीरे-धीरे मध्य के बिंदु को उपलब्ध हो गया है। 


निरंतर सजग रहने से उस मध्य के बिंदु को खोज लेना कठिन नहीं है। बहुत कठिन नहीं है। जो सजग होकर अपने जीवन में खोजेगा, वह पाएगा कि मध्य का बिंदु पाया जा सकता है। मिल गया मध्य का बिंदु, यह कैसे समझेंगे हम? जैसे ही मध्य का बिंदु किसी भी क्रिया में मिलेगा, उस क्रिया से आप मुक्त हो जाएंगे। उस क्रिया का कोई भार, कोई बोझ, कोई टेंशन, कोई तनाव आपके ऊपर नहीं होगा। जीवन की जिस वृत्ति में मध्य का बिंदु मिल जाएगा, उसी वृत्ति के आप बाहर हो जाएंगे। उस वृत्ति की कोई पकड़ और जकड़ आपके ऊपर नहीं होगी। वह वृत्ति आपसे, आपके ऊपर बाधा नहीं होगी, बोझ नहीं होगी। 

धर्म और आनंद 

ओशो

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