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Sunday, January 14, 2018

कर्मयोग



मेरे प्रिय आत्मन,

कर्म के योग पर आज थोड़ी बात करनी है। 

बड़ी से बड़ी भ्रांति कर्म के साथ जुड़ी है। और इस भ्रांति का जुड़ना बहुत स्वाभाविक भी है। 

मनुष्य के व्यक्तित्व को दो आयामों में बांटा जा सकता है। एक आयाम है--बीइंग का, होने का, आत्मा का। और दूसरा आयाम है--डूइंग का, करने का, कर्म का। एक तो मैं हूं। और एक वह मेरा जगत है, जहां से कुछ करता हूं। 
 
लेकिन ध्यान रहे, करने के पहले "होना' जरूरी है। और यह भी खयाल में ले लेना आवश्यक है कि सब करना, "होने' से निकलता है। करना से "होना' नहीं निकलता। करने के पहले मेरा "होना' जरूरी है। लेकिन मेरे "होने' के पहले करना जरूरी नहीं है।


कर्म जो है, वह परिधि है। अस्तित्व जो है, वह केंद्र है। 

अस्तित्व आत्मा है। 

कर्म हमारा जगत के साथ संबंध है। 

ऐसा समझें, एक सागर पर बहुत लहरें हैं। सतह पर बहुत हलचल है। लहरें उठती हैं, गिरती हैं। इन लहरों का जो फैला हुआ जाल है, यह कर्म का जाल है। सागर सतह पर बड़ा कर्मरत है, लेकिन नीचे उतरें तो सन्नाटा है। और नीचे जायें तो बिलकुल सन्नाटा है। और नीचे जायें तो कोई लहर नहीं, कोई हलचल नहीं। गहरी चुप्पी है। सागर की लहरों के नीचे सागर का "होना' है। 

"होना' गहरे में है। कर्म का जाल, लहरों का जाल ऊपर परिधि पर है। 

प्रत्येक व्यक्ति की परिधि पर, सर्कमफरेंस पर, कर्म का जाल है। और प्रत्येक व्यक्ति के केंद्र पर होने का सागर है। 
 
लेकिन जब हम किसी व्यक्ति को देखते हैं तो उसका "होना' दिखायी नहीं पड़ता, उसका करना ही दिखायी पड़ता है! "होना' दिखायी पड़ भी नहीं सकता। 

सागर के पास जब आप जाते हैं तो आप कहते हैं कि सागर दिखायी पड़ रहा है। सागर दिखायी नहीं पड़ता, दिखायी पड़ती हैं सिर्फ लहरें। सागर आपको कभी दिखायी नहीं पड़ा होगा। लहरें ही दिखायी पड़ी होंगी। लहरें सागर नहीं हैं, क्योंकि कोई लहर सागर के बिना अस्तित्व में नहीं हो सकती। अगर हम लहर को सागर से अलग बचाना चाहें तो लहर मर जायेगी। लेकिन सागर बिना लहर के हो सकता है। सागर बिना लहर के मर नहीं जायेगा। इसलिए मूल सागर है, लहर बाइ-प्रोडक्ट है, लहर उप-उत्पत्ति है। इसलिए लहर नहीं हो सकती सागर के बिना। सागर बिना लहर के हो सकता है। 

कर्म नहीं हो सकता बिना आत्मा के। लेकिन आत्मा बिना कर्म के हो सकती है। अगर मैं नहीं हूं तो मेरे सब कर्म खो जायेंगे। लेकिन मेरे सब कर्म खो जायें तो भी मैं नहीं खो जाता हूं। 

इस बुनियादी भेद को सबसे पहले समझ लेना जरूरी है। लेकिन फिर भी जो मैं हूं, वह आपको दिखायी नहीं पड़ता। आप जो हैं, वह मुझे दिखायी नहीं पड़ते। आप जो करते हैं, वही दिखायी पड़ता है! मैं जो करता हूं, वही दिखायी पड़ता है! करना दिखायी पड़ता है। "होना' छिपा है। करना दृश्य है, "होना' अदृश्य है। करना ज्ञात है, "होना' अज्ञात है। 

नेति नेति 

ओशो




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