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Monday, September 21, 2015

हम सब सांप-काटे हुए हैं

एक गांव में मैं ठहरा हुआ था, एक आदमी को सांप ने काट लिया था। कोई चिकित्सक गांव में नहीं है, और दूसरे गांव तक उसे ले जाना है, तो गांव के बुजुर्गों ने सलाह दी कि उसे सो मत जाने देना, जगाए रखना, क्योंकि अगर वह सो गया तो शायद उसका लौटना फिर मुश्किल हो जाए। तो दूसरे गांव उसे लोग ले जा रहे हैं, उसे जगाए रखे हुए हैं। उसे जगाए हुए हैं.. -उसे सोने नहीं देते, उसको पानी छिड़क रहे हैं, उसको उठा कर बिठाए हुए हैं, उसे हिला रहे हैं कि वह सो न जाए।

उस दिन उस गाड़ी में उनके साथ थोड़ी दूर मैंने भी यात्रा की और तब मुझे अचानक खयाल आया कि यह आदमी तो सांप का काटा हुआ है, लेकिन हम सब की भी हालत ऐसी ही है। अगर हमें चारों तरफ जगाने वाले लोग न हों तो हम भी खो जाएं और सो जाएं। पूरे वक्त हमें कोई जगाए रखे है। नई उत्तेजना चाहिए तो थोड़ी रौनक आती है। इसलिए देखते हैं, जब युद्ध छिड़ जाता है तो लोगों की आंखों में रौनक बढ़ जाती है; चेहरे पर ताजगी आ जाती है! नई घटना घट रही है! रोज नया अखबार सुबह! जो कभी ब्रह्ममुहूर्त में नहीं उठते, वे ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर अखबार की राह देखने लगते हैं! क्या हो रहा है? हैरानी की बात है, युद्ध से उदासी आनी चाहिए, लेकिन युद्ध से खुशी आती है, युद्ध से पीड़ा होनी चाहिए, लेकिन युद्ध से ताजगी मालूम होती है! मरी-मराई कौमें भी जिंदा मालूम पड़ने लगती हैं कि जिंदा हैं… कुछ खून दौड़ रहा है! क्यों?

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जैसा आदमी है, ऐसे आदमी के रहते हुए हमें लड़ाई जारी रखनी ही पड़ेगी; क्योंकि नहीं तो यह बिलकुल सुस्त… फिर इसको अच्छा ही नहीं लगता! कहीं न कहीं कुछ होते रहना चाहिए–कोई उपद्रव, नहीं तो हम सो जाएंगे। हम सब सांप-काटे हुए हैं।

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