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Tuesday, September 29, 2015

जीवन-निषेध

कथा है: जनक ने एक बड़े विवाद की घोषणा की कि जो भी इस विवाद में जीत जाएगा, उसे एक हजार गाएं भेंट करूंगा। उन गायों के सींगों पर सोना चढ़वा दिया, हीरे जड़वा दिए। वे गाएं खड़ी हैं महल के द्वार पर। आने लगे विचारक, दार्शनिक विवाद के लिए। विवाद शुरू होने लगा।

दोपहर हो गई तब याज्ञवल्क्य आया उस समय का एक महर्षि। उसका बड़ा आश्रम था; जैसा आश्रम यह है, ऐसा आश्रम रहा होगा। याज्ञवल्क्य आया अपने शिष्यों के साथ और उसने कहा, कि गऊएं धूप में खड़े-खड़े थक गई हैं और उनको पसीना आ रहा है। शिष्यों से कहा कि बेटो! तुम ले जाओ गऊओं को आश्रम, विवाद मैं निपट लूंगा। और उसके शिष्य खदेड़कर गऊओं को ले गए। हजार गऊएं सोने के सींग चढ़ी, हीरे-जवाहरात जड़ी। जनक भी खड़ा रहा गया, और पंडित भौचक्के रह गए! क्योंकि यह तो विवाद के बाद पुरस्कार है मिलने वाला।
याज्ञवल्क्य ने कहा: चिंता ही मत करो, विवाद हम निपट लेंगे; विवाद में क्या रखा है! लेकिन गऊएं क्यों सतायी जाएं?

अब जिस आश्रम में हजार गऊएं हो सोने के सींग चढ़ी, वह तुम सोचते हो बंबई की झोपड़पट्टियां रही होंगी! तो हजार गऊओं को खड़ा कहां करोगे, बांधोगे कहां? हजारों विद्यार्थी आते थे गुरुकुलों में। और क्या तुम सोचते हो, ये जो तुम्हारे गुरुकुल के ऋषि-मुनि थे, ये जीवन से भगोड़े थे? इनकी पत्नियां थीं, इनके बेटे थे। और इनके पास जरूर सुंदर पत्नियां रही होंगी। क्योंकि कहानियां कहती हैं कि देवता भी कभी-कभी इनकी पत्नियों के लिए तरस जाते थे। कभी चंद्रमा आ गया चोरी से, कभी इंद्र आ गए चोरी से। तो पत्नियां भी कुछ साधारण न रही होंगी! क्योंकि कहानियां नहीं कहतीं कि राजाओं की पत्नियों के लिए देवता तरसते थे। कहानियां तो साफ हैं।

एक कहानी नहीं कहती कि राजाओं की पत्नियों से, राजमहल की पत्नियों से देवता तरसते थे। लेकिन ऋषि-मुनियों की पत्नियों से तरस जाते थे। सौंदर्य भी रहा होगा, ध्यान की गरिमा भी रही होगी तो सौंदर्य हजार गुना हो जाता है। तो सुंदर पत्नियां थीं। कभी-कभी ऐसा भी हो जाता था, कि गुरु का शिष्य भी गुरु की पत्नी के प्रेम में पड़ जाता था। कभी ऐसा भी हो जाता था कि गुरुकुल में पढ़ते हुए युवक और युवतियां…दोनों पढ़ते थे। तुम्हें शकुंतला की कथा तो याद ही है कि कभी राजा भी गुरुकुल में पढ़ती हुई युवतियों को देखकर मोहित हो उठता था। सुंदर थे, वैभव था, ऐश्वर्य था। जीवन के जीने की एक शैली थी; दरिद्रता, दीनता, सिकुड़ाव नहीं था।

इस देश में सिकुड़ाव की शुरुआत हुई जैनों और बौद्धों के प्रभाव से। जैनों और बौद्धों के प्रभाव में इस देश की संस्कृति मरी। जैनों और बौद्धों के प्रभाव में नकार पैदा हुआ, निषेध पैदा हुआ। और उनके साथ ही इस देश का पतन शुरू हुआ। कलिंग का पतन नहीं, एकाध सभ्यता का पतन नहीं, इस देश का पतन जैनों और बौद्धों के निषेध के कारण शुरू हुआ। दीनता और दरिद्रता, तपश्चर्या और जीवन-निषेध, इनके कारण इस देश का पतन शुरू हुआ। यह देश सिकुड़ता चला गया…। धीरे-धीरे इस देश ने सारी सामर्थ्य खो दी। कितने विदेशी आए, और यह देश सबसे हारता चला गया।

कहै वाजिद पुकार 

ओशो 

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