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Tuesday, September 15, 2015

भरोसा भरोसे को जन्माता है

एक बड़े मजे की बात घटती है कि हर रोज हर स्टेशन पर सारी दुनिया में सैकड़ों लोग अपना सामान अजनबियों के पास छोड्कर जाते हैं, लेकिन कभी उसकी चोरी नहीं होती। क्यों? क्योंकि जब तुमने भरोसा किया तो दूसरे ने भी भरोसा किया। भरोसा भरोसे को जन्माता है। तुमने जब श्रद्धा की तो दूसरे का तुमने इतना सम्मान किया कि अब तुम्हें धोखा दे, इतना दीन कोई भी नहीं, इतना हीन कोई भी नहीं। तुम संदेह करते तो शायद तुम्हें मजा चखा देता। क्योंकि तब तुम उसको चुनौती दे देते, कि अच्छा, तो तुमने समझा क्या है? तुम अगर उससे न कह कर पास में खड़े पुलिसवाले से कह गये होते, कि भई जरा देखना, यह मेरा सामान रखा है और यह आदमी बैठा है, इस पर मुझे शक है। तो शायद निश्चित ही वह आदमी कुछ न कुछ शरारत करता। करना ही पड़ता, आखिर अपनी आत्मरक्षा उसको भी करनी है। अपने सामने अपना आत्मगौरव उसको भी बचाना है। वह तुम्हें पाठ पढ़ाता। लेकिन तुम उसको ही कह गये। अब बहुत मुश्किल है। तुम अगर चोर से भी कह जाओ कि जरा मेरा सामान देखना, तो कोई चोर भी इतना ज्यादा गिरा हुआ नहीं है कि तुम्हें धोखा दे दे।

    जिस पर तुमने भरोसा किया, उसमें तुम भरोसे को जन्माते हो। और इस तरह भरोसा भरोसे को सहारा देता है। शिष्य जब गुरु पर भरोसा कर लेता है, गुरु जब शिष्य पर भरोसा कर लेता है, भरोसे का आदान प्रदान शुरू होता है। श्रद्धा सघन होने लगती है, गहन होने लगती है। एक ऐसी घड़ी आती है, सारे संदेह गिर जाते हैं, श्रद्धा ही रह जाती है। उसी श्रद्धा में उसे पाया जाता है, बहुत ही पास पाया जाता है। जरा भी दूर नहीं है वह, सिर्फ श्रद्धा का सेतु नहीं है।

मरो है जोगी मरो 

ओशो 

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